Sumant Bhattacharya : बोलना जरूरी है… माफ कीजिएगा, तुनु पर ना बोला तो सो ना पाऊंगा। इंडिया टीवी की पत्रकार तनु ने खुदकुशी कर ही ली थी, पर शुक्र है अभी सांस चल रही है… टीवी पत्रकारिता के ग्लैमर से आकर्षित लड़कियों के लिए तनु की कोशिश एक चेतावनी है,. टीवी पत्रकारिता के बारे में सिर्फ इतना ही कहना काफी है, इस माध्यम में ज्यादातर वो आए, जो कभी इंडियन एक्सप्रेस, जनसत्ता, हिंदुस्तान या टाइम्स के दफ्तरों में घुस भी ना पाए. वो भी आए जो कारपोरेट दलाली में दक्ष और ग्लैमर की दुनिया से जिंदा गोश्त आपूर्ति कराने में और भी माहिर हैं…
सो यदि आप किसी छोटे शहर की लड़की हैं, जीवन में मूल्य हैं, तन बेचने में गुरेज है, तो बेहतर होगा कम पैसों में ही सही, शुरुआत प्रिंट से करें…। मुझे याद आता है कि कुछेक साल पहले सीएनईबी चैनल में एक सीनियर को एक लड़की ने भरे न्यूज रूम में करारा चांटा लगाया था, आवाज बाहर तक गूंजी थी…बाद में यह शख्स एक हिंदी की पत्रिका में चले गए और वहां के संपादक की दलील बड़ी गजब की थी… उनका कहना था कि भाई प्रबंधकीय चुनौतियों में यह सब चलता है, मैनेजमेंट तो उनके साथ है. अब यह शख्स नहीं है, एक बड़े आदमी के साथ कार में कहीं जा रहे थे, दुर्घटना में मारे गए, वरना नाम जरूर लिखता, पर उस लड़की को आज मैं दुबारा सैल्यूट करता हूं..काश तनु ने यह रास्ता चुना होता…
मुझे लगता है कि टीवी के एक दो संपादकों का नाम ना लूंगा तो शायद वो भी इन कनकटों में तौल उठेंगे…सतीश के सिंह, एनके सिंह, मुकेश कुमार…एऩपी, मिलिंद खांडेकर, प्रांजल शर्मा, अमिताभ, आशीष मिश्र के अलावा भी कुछेक नाम (मुझे याद नहीं आ रहे हैं) ऐसे हैं, जिन्हें टीवी में ऐसे लोग मााना जा सकता है, जिनके साथ कोई भी महिला बैखौफ और पूरे सम्मान के साथ काम कर सकती है…..
कई बड़े हिंदी-अंग्रेजी अखबारों और न्यूज चैनलों में काम कर चुके पत्रकार सुमंत भट्टाचार्या के फेसबुक वॉल से.
nimita jain
June 23, 2014 at 7:19 am
yes, absolutely true.. there are few editors with whom you can work safely. mr bhattacharya has given names of these editors and i endorse him because i have worked with some of them. these people are true professionals to the core of their heart.
akanksha
June 23, 2014 at 7:22 am
thank god there are some editors with whom you can work.
Mukesh Kumar Singh
June 24, 2014 at 2:53 pm
किसी पत्रकार का ऑफ़िस के बाहर कहीं भी हुआ उत्पीड़न ख़बर हो सकती है, लेकिन ऑफ़िस में होने वाले ज़्यादतियाँ संवैधानिक हैं! वाह रे हमारा पेशा!!
Narain
June 25, 2014 at 7:26 am
सुमंतजी ने ठीकलिखा है. इन संपादकों में से दो के साथ मैंने काम किया है. बहुत ही बढ़िया लोग हैं. बेहद साफ माहौल रखने वाले और खुले दिमाग के लोग हैं. बेहतरीन पेशेवर होने के साथ साथ पत्रकारिताकी गरिमा को समझने वाले लोग हैं. इन लोगों केसाथ सिर्फ काम करने वाले लोग ही टिक पाते हैं बाकी को इन्हें समझने में देर नहीं लगती. ऐसे लोगों के वजह से ही टीवी चैनलों कोलेकर कुछ उम्मीद बची है.
अनामी शरण बबल
May 12, 2021 at 4:28 pm
रजत शर्मा जैसे दल्ला और बेईमान पत्रकार सेवर क्या उम्मीद करते हैं? TV चैनल के नाम पर रजत ने कोठा खोल रखा हैं जिसका main दल्ली आंटी खुद हैं और बाकी सब……. इस तरह लिख क़र अपनी जुबान क्यों गंदी करू? पत्रकारिता के ये बेशर्म लोग इसके शर्मनाक फेस और घटिया चेहरे हैं?