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सुख-दुख

गूगल के लिये बहुत क्रिटिकल समय आ रहा है

नितिन त्रिपाठी-

सत्तर के दसक में कोडक कंपनी ने विश्व के सबसे पहले डिजिटल कैमरे की खोज की. पर दो समस्याएँ उनके आड़े आईं. पहली और सबसे बड़ी समस्या यह कि कोडेक का सारा बिज़नस मॉडल कैमरा रील, पेपर, फ़ोटो प्रिंटिंग मशीन बेचने पर आधारित था. डिजिटल कैमरा आ जाने से कोडेक का तो सारा व्यवसाय ही समाप्त हो जाता. दूसरी समस्या यह कि कोडेक सामान्य कैमरा में विश्व में नंबर एक था.

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तो ज़ाहिर सी बात है आरंभिक डिजिटल कैमरे लुक, वेट. क्वालिटी में उन कैमरों का मुक़ाबला न कर पाते और कोडेक की विभागीय मीटिंग में सबको लगता कि डिजिटल कैमरों का कोई भविष्य नहीं है. वह यह बेसिक बात भूल जाते कि नई टेक्नोलॉजी आरंभ एक छोटे पौधे से होती है समय के साथ वह बरगद बन जाता है.

रेस्ट इस हिस्ट्री. डिजिटल कैमरे समय के साथ छा गये. नई पीढ़ी को तो पता भी न होगा कि रील वाले कैमरे जो बस बीस वर्ष पूर्व तक छाये हुवे थे कैसे दिखते थे.

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गूगल सर्च इंजन के साथ भी ऐसा ही हो रहा है. आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में सबसे ज्यादा कार्य गूगल ने किया, सबसे एडवांस टेक्नोलॉजी उनके पास है. लेकिन वह chatgpt जैसा एप्लीकेशन नहीं दे पाये. वजह यह कि गूगल का सारा रेवन्यू मॉडल इसी पर बेस्ड है कि आप गूगल पर जायें वह दस वेबसाइट दिखायेगा, साथ में कुछेक विज्ञापन. अगर वह पूरा उत्तर स्वयं ही देने लग जाये जैसे chatgpt देता है तो दूसरी वेबसाइट के विज्ञापन का खेल ख़त्म. साथ ही ज़ाहिर सी बात है chatgpt न्यू टेक्नोलॉजी है. इसके रिज़ल्ट्स उतने अच्छे न आयेंगे जितने बीस साल और ट्रिलियन खर्च कर बने गूगल के आज हैं. पर दो सालों में chatgpt टेक ओवर कर लेगी.

मजबूरी में गूगल को आनन फ़ानन में chatgpt जैसा ही google bard लॉंच करना पड़ा. अब गूगल बार्ड की तुलना सामान्य गूगल से की जायेगी और ज़ाहिर सी बात है बार्ड तो अभी बिगिनिंग है. पचास कमियाँ निकली, शेयर डाउन हुआ और गूगल ने एक दिन में उससे ज्यादा खो दिया जितना अदानी ने दो सप्ताह के डाउनफ़ल में नहीं खोया था.

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गूगल के लिये बहुत क्रिटिकल समय आ रहा है. Chatgpt को माइक्रोसॉफ़्ट अपने सर्च इंजन बिंग में प्रयोग कर रहा है. विश्व के हर कोने में जो भी chatgpt का ठीक प्रयोग कर लेता है वह गूगल में दुबारा कभी कभार ही जाता है.

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