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वेब-सिनेमा

गूगल सोशल मीडिया है या सर्च इंजन? रविशंकर प्रसाद मुद्दे पर बात नहीं कर रहे, भाषण दे रहे हैं!

संजय कुमार सिंह-

गूगल से पूछिए ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के बारे में… यह दिलचस्प है कि गूगल को भारतीय अदालत में यह कहना पड़ रहा है कि वह सर्च इंजन है, सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म नहीं। हाल में जब यह खबर हाई थी तो मैंने शेयर किया था। शुक्रवार, 4 जून को एक भक्त मित्र ने इकनोमिक टाइम्स में छपे केंद्रीय सूचना तकनालॉजी मंत्री का यह विशालकाय इंटरव्यू साझा किया।

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प्रिंट एडिशन में इसका प्रचारक वाला शीर्षक है, “पीएम मोदी की आलोचना कीजिए, मेरी, सरकार की पर भारत के नियमों का पालन कीजिए”। इंटरनेट पर या ई पेपर में इसका शीर्षक है, “अमेरिका में काम करने वाली भारतीय फर्में क्या वहां के कानून का पालन नहीं करती हैं”।

बेशक पढ़ने-सुनने में अच्छा लग सकता है और वोट बटोरू भी होगा पर गूगल वाले मामले में जवाब पढ़कर लगा कि यह इंटरव्यू आम काट कर खाते हैं या चूसकर – से बहतर नहीं है। गूगल वाले मामले में सवाल जवाब पढ़ लीजिए। अंग्रेजी में जिनके हाथ तंग हैं उनके लिए बता दूं कि गूगल ने कहा है कि वह सर्च इंजन है उसपर सोशल मीडिया के नियम लागू नहीं होने चाहिए। इसका जवाब यह होना चाहिए कि गूगल कैसे सोशल मीडिया है (या नहीं है) और है तो उसपर लागू होगा (नहीं है तो नहीं होगा)। या यह भी कि इसमें कहां विवाद है वह तो है ही, इन कारणों से। लेकिन मंत्री जी पूरे मामले को ही गोल कर गए।

इसी से पता चलता है कि कानून कैसा है और कैसे विदेशी कंपनियों को भारत में बिना मतलब परेशान होना पड़ रहा है और इसमें अदालत का भी समय खराब हो रहा है। मुझे नहीं लगता कि तकनीकी मामला अदालत को तय करना होता है और वहां से कुछ निकलेगा। पर जब स्वास्थ्य मंत्री ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की बात करेंगे तो आईटी मंत्री से क्या-क्या उम्मीद करें। साफ सीधा सा सवाल है कि भारतीय कानून के तहत (कानून तो आपने ही बनाया है) आप सर्च इंजन को सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म मानते हैं कि नहीं? पर जवाब में सोशल मीडिया पर भाषण है। अगर आईटी मंत्री जो पेशे से वकील भी है वह ऐसी बात करेगा तो मुद्दे पर कौन बात करेगा?

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ईज ऑफ डूइंग बिजनेस और ठेले पर सब्जी बेचने वाला

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने हाल में दावा किया था कि ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में भारत की रैंकिंग लगातार सुधरती जा रही है। भारत आज इस रैंकिंग में 63वें स्थान पर पहुंच गया है। लेकिन भारत वह देश है जहां 20, 000 रुपए से ऊपर के भुगतान पर टीडीएस काटने का नियम है और बैंक में खाता खोलने के लिए पैन कार्ड होना चाहिए इसलिए रिटर्न फाइल करना भी जरूरी है। अब आप बैंक में खाता खोलने से पहले पैन नंबर लीजिए रिटर्न फाइल करने के झंझट में फंस जाइए। कैसे और कितना कमाएंगे इसकी किसी की कोई जवाबदेही नहीं है। ठेला लगाएंगे तो सिपाही लूट लेगा कि नगर निगम वाला पलट देगा पता नहीं।

पकौड़े बेचने की दुकान किराए पर हो तो लॉकडाउन में किराया कहां से आए उसकी किसी को कोई परवाह नहीं है तब भी। और कुछ धंधा करते हों तो धंधा कहां से कैसे मिलेगा ये आप जानिए पर काम कीजिए, पैसे मिले तो टीडीएस कट जाएगा। आपका आयकर लगता हो या नहीं, कमाते हों या नहीं। इसे वापस लेने के लिए फिर रिटर्न फाइल करना जरूरी है। कई मामलों में रिटर्न फाइल करने का खर्चा (खुद कोई फाइल नहीं कर सकता है नौकरी पेशा लोगों की बात अलग है) वापस आने वाले पैसे से ज्यादा होता है। तो आप कमाइए या मत कमाइए रिटर्न फाइल कीजिए। पहले कुछ लोग नहीं करते थे। अब सरकार का नया फरमान आया है।

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इसके अनुसार जो टैक्स रिटर्न फाइल नहीं करते हैं उनका टैक्स ज्यादा कटेगा। इसका असर यह हुआ है कि जिसे टैक्स काटना है उसकी जिम्मेदारी है कि वह रिटर्न न फाइल करने वाले गरीबों का टैक्स ज्यादा काटे तो उसी को पता करना है कि आपने रिटर्न फाइल किया या नहीं। वैसे तो बहुत कम लोग रिटर्न नहीं फाइल करते होंगे। लेकिन जो करते हैं उन्हें भी परेशान करने वाला नियम। अब नए नियम का मतलब यह हुआ कि रिटर्न फाइल करो और सब पैसे देने वालों को बताओ कि भाई, फाइल कर दिया टीडीएस कम ही काटना नहीं तो सारा पैसा उसी में फंसा रह जाएगा धंधा कैसे करूंगा।

यह तो एक समस्या है। ऐसे सैकड़ों हजारों के बावजूद ईज ऑफ बिजनेस रैंकिग की एक तरफा घोषणा स्वास्थ्य मंत्री कर रहे हैं।

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