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सुख-दुख

पत्रकार और शिक्षक गोविंद सिंह ने एक लाख रुपये की पुरस्कार राशि अपने गांव के छात्रों के नाम की

नवभारत टाइम्स, अमर उजाला, हिंदुस्तान आदि में उच्च पदों पर गरिमामयी सेवाएं दे चुके और आजकल उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय परिसर में पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष प्रो. गोविंद सिंह ने पुरस्कार में मिली एक लाख की ईनामी राशि अपने गांव (सौगांव) पिथौरागढ़ के हाईस्कूल में छात्रवृत्ति के लिए दान की है. यह राशि उन्हें हाल में राष्ट्रपति के हाथों मिले गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार के तहत मिली थी. पुरस्कार राशि का इससे बेहतर सदुपयोग कुछ और नहीं हो सकता.

नवभारत टाइम्स, अमर उजाला, हिंदुस्तान आदि में उच्च पदों पर गरिमामयी सेवाएं दे चुके और आजकल उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय परिसर में पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष प्रो. गोविंद सिंह ने पुरस्कार में मिली एक लाख की ईनामी राशि अपने गांव (सौगांव) पिथौरागढ़ के हाईस्कूल में छात्रवृत्ति के लिए दान की है. यह राशि उन्हें हाल में राष्ट्रपति के हाथों मिले गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार के तहत मिली थी. पुरस्कार राशि का इससे बेहतर सदुपयोग कुछ और नहीं हो सकता.

मैं ये सोच रहा हूँ कि यदि ऐसा और भी लोग करें तो कितना अच्छा लगेगा. हर स्कूल से कोई न कोई प्रतिभा तो निकलती ही है या हर आदमी का कहीं न कहीं तो गाँव होता ही है. स्कूलों को सरकार की सदबुद्धि का इंतजार तो है ही, समाज से भी सहयोग की जरूरत है… गोविंद सिंह जी न्यूज और आजतक जैसे चैनलों में काम कर चुके हैं और आजकल के कई नामचीन पत्रकारों के शिक्षक भी रह चुके हैं…

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ज्ञात हो कि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने हिन्दी भाषा के प्रसार और विकास में उत्कृष्ट योगदान के लिए पिछले दिनों पांच पत्रकारों और दो वैज्ञानिकों सहित 28 लोगों को ‘हिन्दी सेवा सम्मान’ से नवाज़ा… हिंदी पत्रकारिता और रचनात्मक साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम करने के लिए 2011 का गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार वरिष्ठ पत्रकार प्रो. गोविंद सिंह और डॉ. शिवनारायण को दिया गया. वहीं 2010 का गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार और दिलीप कुमार चौबे को दिया गया.  उसी समय प्रो.गोविंद सिंह ने कहा कि वे पुरस्कार में मिली धनराशि से अपने गांव के राजकीय हाई स्कूल सौगाँव, पिथोरागढ़ के गरीब व होनहार बच्चों को छात्रवृत्ति देंगे. उन्होंने यह छात्रवृत्ति अपनी मां के नाम पर शुरू की है. यह हर वर्ष दी जाएगी.

गोविंद सिंह का जन्म 28 जून, 1959 को हुआ. पत्रकारीय स्वतंत्र लेखन 1978 से शुरू किया. 1982 में टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप में प्रशिक्षार्थी पत्रकार के रूप में शुरुआत की. धर्मयुग और नवभारत टाइम्स में प्रशिक्षण के बाद नवभारत टाइम्स, मुंबई में उप संपादक बने. 1990 से 1999 तक नवभारत टाइम्स दिल्ली में सहायक संपादक रहे.1999 से 2002 तक जी न्यूज और आजतक चैनलों में क्रमशः डिप्टी एडिटर और सीनियर प्रोड्यूसर रहे और उनके अनुसंधान विभागों के प्रभारी के तौर पर कार्य किया. 2002 में ‘आउटलुक’ साप्ताहिक शुरू होने पर वहां बतौर असोसिएट एडिटर जुड़े. 2003 में अमेरिकी दूतावास से प्रकाशित पत्रिका स्पैन के हिन्दी संस्करण के संपादक बने. 2005 से दैनिक अमर उजाला और बाद में हिन्दुस्तान और कादम्बिनी में कार्यकारी संपादक का दायित्व संभाला. दिल्ली विश्वविद्यालय के साउथ कैम्पस में पिछले 15 वर्षों से विजिटिंग फैकल्टी के तौर पर पत्रकारिता अध्यापन का कार्य भी कर रहे हैं. अगस्त 2011 से उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय, हल्द्वानी में पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग में प्रोफ़ेसर एवं अध्यक्ष के तौर पर कार्यरत हैं.

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लेखक दिनेश मानसेरा एनडीटीवी से जुड़े हुए हैं.

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0 Comments

  1. Prakash Hindustani

    September 26, 2014 at 6:31 am

    ”हर स्कूल से कोई न कोई प्रतिभा तो निकलती ही है या हर आदमी का कहीं न कहीं तो गाँव होता ही है.”
    अनुकरणीय कार्य किया है गोविंद जी ने.

  2. अभय प्रताप

    September 26, 2014 at 7:53 am

    गोविंद जी के इस नेक फैसले को शत-शत नमन!

  3. ira jha

    September 26, 2014 at 12:01 pm

    govind g ki snehi muskn aur bhalmansaht patrakrita me birli misal hai.

  4. anil bahuguna

    September 26, 2014 at 2:34 pm

    umda ………………………nazeer

  5. harish pathak

    September 26, 2014 at 3:50 pm

    is shandar pahal par meri shubhkamnaye.harish pathak

  6. Awadhesh kumar

    September 27, 2014 at 10:36 am

    गोविन्द सिंह जी से ऐसी ही उम्मीद थी। जब उनको और डा. दिलिप चौबे को पुरस्कार मिला तो मैंने मजाक किया था कि दोनों लोग पुरस्कार लेकर उत्तराखंड प्रस्थान कर गये, कुछ मित्रों पर भी खर्च करिये। जहां गोविन्द सिंह ने खर्च किया उनके मित्रों के लिये इससे ज्यादा खुशी की बात कुछ नहीं हो सकती। साधुवाद!

  7. DR Subodh Agnihotri

    September 28, 2014 at 4:52 pm

    Sir, Aapne bahut Badhiya karya kare ek misal pesh ki hai. Anya log bhi iska anukarn karein…accha laga…

  8. Rajeev Ranjan

    October 7, 2014 at 10:17 pm

    Govind Sir Jaise Sajjan Vyakti Patrakarita Me Bahut Kam Hain. Ek Patrakar Aur Vyakti Ke Taur Par Wah Anukaraniya Hain.

  9. Haridutt

    October 8, 2014 at 7:34 am

    गोविंद सिंह इतने अच्छे भी नहीं हैं। पब्लिसिटी के लिए यह सब कर रहे हैं। अपने विश्वविद्यालय में जनसंपर्क अधिकारी पद के लिए इन्होंने वीसी के साथ मिलकर कैसे एक खास को फायदा पहुंचाया और दूसरे उम्मीदवारों को बेवकूफ बनाया, यह किस्सा शायद चंद लोग ही जानते होंगे और वही किस्सा इनकी खासियत बताने को काफी है।

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