देश के मशहूर पत्रकारों में एक, राजस्थान पत्रिका के संपादक -मालिक गुलाब कोठारी ने प्रधानमंत्री को दी गई सोनिया गांधी की पांच सलाह में से तीन को ‘साधारण’ कहा है। मुझे नहीं पता इसका क्या मतलब है, मान लेना चाहिए, नहीं मानना चाहिए या मान लेने में कोई हर्ज नहीं है या मानने न मानने से कोई फर्क नहीं पड़ता। बाकी दो पर उन्होंने एतराज किया है। एक मीडिया को दिए जाने वाले विज्ञापन बंद कर दिए जाने चाहिए। इसपर मैं उनका कष्ट समझ सकता हूं और मुझे कुछ नहीं कहना।
पर पांचवां, पीएम केयर्स फंड से संबंधित है जो उनसे अपेक्षित नहीं था। इस संबंध में पहले सुझाव जो उन्होंने लिखा है, पीएम केयर्स फंड की राशि प्रधानमंत्री राष्ट्रीय सहायता कोष में स्थानांतरित कर दी जाए। वहां पारदर्शिता अधिक होगी, कार्य की दक्षता और गुणवत्ता भी ज्यादा है। इसपर संपादक जी ने लिखा है, इस सुझाव में कोई गंभीरता, विवेक, चिन्तन या दूरदर्शिता दिखाई नहीं देती है। दोनों ही कोष प्रधानमंत्री के नियंत्रण में हैं। क्या एक में पारदर्शिता अधिक एवं दूसरे में कम संभव है? अथवा प्रधानमंत्री केयर्स कोष के संचालन पर अंगुली उठाकर राजनीति की है? यह ऐसा है तो पद की गरिमा के अनुकूल नहीं है (शायद कांग्रेस अध्यक्ष, कार्यवाहक के)। प्रधानमंत्री के पद की गरिमा का ख्याल तो खुद प्रधानमंत्री नहीं रख रहे। उसपर तो किताब लिखी जा सकती है। समस्या यह है कि छापेगा कौन?
मुझे लगता है संपादक जी संतुलित पत्रकारिता के दबाव में आ गए हैं या अच्छे की तारीफ करना जरूरी समझ रहे हैं। मान लिया है कि नया है इसलिए इसलिए अच्छा है। उन्होंने लिखा है, इस सुझाव में गंभीरता, विवेक, चिन्तन या दूरदर्शिता दिखाई नहीं देती है। लेकिन यह नहीं बताया है कि एक कोष के रहते दूसरे समानांतर कोष की क्या जरूरत? जब दोनों कोष प्रधानमंत्री के नियंत्रण में हैं तो दो की क्या जरूरत? प्रधानमंत्री केयर्स (जो बिल्कुल नया है और रातों-रात बना है) पर उंगली उठाना क्या गैर कानूनी है? कल रात मैंने इसपर वायर डॉट इन की खबर शेयर की है। इसका शीर्षक ही है, क्या नरेन्द्र मोदी पीएम केयर्स पर कुछ सवालों के जवाब देने का कष्ट (केयर) करेंगे? इसे पढ़ने के बाद नहीं कहा जा सकता है कि सोनिया गांधी के सुझाव में गंभीरता, विवेक, चिन्तन या दूरदर्शिता दिखाई नहीं देती है। उल्टे गुलाब कोठारी जी का विरोध बगैर तैयारी के लगता है।
मेरा मानना है कि प्रधानमंत्री राहत कोष में कोई गड़बड़ी / कमी थी तो उसे ठीक किया जाना चाहिए था। प्रधानमंत्री ने कहा है कि यह कोविड की सहायता देने के इचुछुक लोगों के लिए है। इसके पक्ष में यही एक तर्क है। पर प्रधानमंत्री को ऐसे लोगों की बात मानने की बजाय कहना यह चाहिए था कि आप उसी में दान करें उसमें विपक्ष का भी प्रतिनिधित्व है वह ज्यादा पारदर्शी है। मुझपर आरोप लगेंगे। पारदर्शिता जरूरी है। पर हो उल्टा रहा है। लोग पूछ रहे हैं कि उसमें कांग्रेस अध्यक्ष को क्यों होना चाहिए। ठीक है, कांग्रेस अध्यक्ष को नहीं होना चाहिए पर विपक्ष का कोई क्यों नहीं होना चाहिए? भाजपा (सरकार) का पिछला रिकार्ड ऐसा नहीं है कि उसने सब ठीक ही किया है। कहीं काम का पुरस्कार कहीं और देने से लेकर आधी रात की कार्रवाई कर दागियों को ईनाम देने से लेकर यौनकुंठित और यौनअपराधियों का साथ देने के उदाहरण हैं। ऐसे में कैसी पारदर्शिता की बात कर रहे हैं गुलाब कोठारी जी? मैं पहले दिन से पीएम केयर्स के खिलाफ लिखता रहा हूं, अब सब दोहराने की जरूरत नहीं है।
वरिष्ठ पत्रकार और अनुवादक संजय कुमार सिंह का विश्लेषण!।