सरकार को आइना दिखाने का नतीजा…. थाने में किया तलब… उत्तराखंड सरकार बेबाक लेखन करने वालों को लगातार कर रही प्रताड़ित…. त्रिवेंद्र के कार्यकाल में सबसे ज्यादा मीडिया का उत्पीड़न… उत्तराखंड में मीडिया या तो बिकाऊ है या फिर उत्पीड़न की शिकार… चौथे खंभे को लोकतांत्रिक नजरिए से देखने की ट्रेनिंग नहीं पा सके हैं त्रिवेंद्र रावत…. अपनी आलोचना से घबराने वाले सीएम फौरन करते हैं पावर का इस्तेमाल…
वाह! मेरी डबल इंजन त्रिवेंद्र सरकार तम तो ग़जब ही ढा रहे हो। खुद तो अपराधी साथ लिए चल रहे हो और निर्दोषों पर जुलम ढा रहे हो। हम पूछना चाहते हैं क्यों अपनी बर्बादी का रास्ता बना रहे हो। जिन पत्रकारों को जेल में होना चाहिए उनको मलाई और जो आइना दिखाएं उन्हें जेल, मुक़दमें, गैंगस्टर लगाने की साजिश। ये तो ग़जब ही ढाया जा रहा है…
त्रिवेंद्र भाई आप स्वयं आकर बताइए आखिर क्या अपराध किया देहरादून के पत्रकार Gunanand Jakhmola व मसूरी के Shoorveer Bhandari जैसे बेबाक पत्रकारों ने, सिवाय तथ्यों के साथ रिपोर्टिंग करने के… इसी से खफा होकर आपकी पुलिस ने उन पर मुकदमा कायम कर थाने में तलब कर लिया है…
सीएम Trivendra Singh Rawat भैजी, कार्यवाही किस पर करनी है, किसका सम्मान करना है… इस बारे में आपके नालायक सलाहकार नहीं बता पा रहे हैं तो हमसे पूछिये हम बताएंगे… साथ ही पत्रकार Avikal Thapliyal जी की संलग्न रिपोर्ट पढ़िए…
सरकारी जांच को आंच नहीं, कलमकारों को थाने में बुलावा… न्याय की लाठी पिक एंड चूज नहीं करती मेरे सरकार!
उत्तराखंड के आकाश में बदली भी छायी है और उमस भी है। इस उमस में आई एक खबर ने कसक भी बढ़ा दी। दरअसल, मुख्यमंत्री ने खुफिया विभाग को सोशल मीडिया पर नजर रखने की विशेष सलाह दी है। पूरे विश्व में सोशल मीडिया जनता की आवाज बन चुका है। ये इसलिए भी तेजी से हो रहा है कि मुख्यधारा का मीडिया तमाम तरह के आरोपों में घिरता जा रहा है।
इस खबर के बाद मुझे लगभग दो महीने पूर्व घटित हुए दो बहुचर्चित व अवाक कर देने वाले शासकीय हादसे याद हो आएं। सचिवालय से जुड़े इन प्रकरणों में शासकीय गलती ने सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए जो किसी भी कीमत पर अक्षम्य नहीं कहे जा सकते। इन दोनों मामलों में शासन स्तर पर चल रही जांच किस मोड़ तक पहुंची, यह किसी को नही पता। कौन दोषी, किसे मिले सजा। यह सब भी अंधेरे में है।
दरअसल, मुख्यमन्त्री जी को अपनी खुफिया टीम का बेहतर इस्तेमाल उन अधिकारियों की खुफियागिरी में करना चाहिए जो दिन रात माल बनाने में लगे हैं। जांच ऐसे लोगों की होनी चाहिए जो सत्ता की हनक में जमीनों के कब्जे समेत वन टू का फोर और फोर, टू का वन कर रहे हैं।
पहला मसला, उत्तराखंड शासन द्वारा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के स्वर्गीय पिता के श्राद्ध कर्म के लिए निर्दलीय विधायक अमनमणि का पास जारी करना। पास का लिखित आदेश करने वाले अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश व अन्य अधिकारियों पर महामारी एक्ट व आपदा एक्ट के उल्लंघन का गंभीर मामला बनता है। योगी जी के स्वर्गीय पिता के कर्म कांड से जुड़े इस अजब गजब मुद्दे पर उच्च न्यायालय ने भी पूछा है कि किन परिस्थितियों में अमनमणि को कड़े लॉकडाउन में उत्तराखंड के बद्रीनाथ और केदारनाथ का पास जारी किया गया। लेकिन अभी तक इस हाई प्रोफाइल मामले में अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश यह नहीं बता पाए हैं कि वो पास किसके कहने पर जारी किया गया। नियमों का खुला उल्लंघन कर पास कैसे जारी हो गए। इस प्रकरण को दो महीने से अधिक हो गए, लेकिन शासन की जांच का अता पता नहीं। अलबत्ता, अपने उच्चाधिकारी ओमप्रकाश के लिखित आदेश के बाद पास जारी करने वाले पीसीएस अधिकारी का रुद्रप्रयाग तबादला कर दिया गया। यहां यह भी बता दें कि अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश मुख्यमन्त्री त्रिवेंद्र जी के विश्वस्त और मुख्य सचिव की कुर्सी के प्रबलतम दावेदार हैं। इस प्रकरण में किसी भी जिम्मेदार अधिकारी पर मुकदमा नहीं।
दूसरा मसला, उत्तराखंड के करोड़ों की छात्रवृत्ति के मामले में निलंबित अधिकारी गीता राम नौटियाल की शासन स्तर पर चुपचाप बहाली। इसकी जांच मुख्य सचिव स्तर पर हो रही है। बहाली का यह मसला उठने के बाद पता चला कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र जी और समाज कल्याण मंत्री यशपाल आर्य को तो पता ही नही था। बहाली का शोर मचने के बाद अगले दिन गीता राम नौटियाल को फिर निलंबित कर दिया गया। करोड़ों रुपये के बहुचर्चित छात्रवृत्ति घोटाले के आरोपी गीता राम नौटियाल की बहाली करने के पीछे कौन-कौन अधिकारी थे। इस रहस्य का खुलासा अभी तक नहीं हुआ है। जबकि जांच मुख्य सचिव स्तर से हो रही है।
लेकिन, कुछ वास्तविक पत्रकारों की कलम से निकले शब्दों पर तत्काल थाने में मामला दर्ज हो रहा है। सुना है कि वास्तविक पत्रकार गुणानंद जखमोला और शूरवीर भंडारी को देहरादून थाने में तलब किया गया है। इसमें कोई दोराय नहीं कि ये दोनों पत्रकार दलाल व ब्लैकमेलर कैटेगरी में कतई नहीं है।
चैतू, न्याय की लाठी तो समान रूप से पड़नी चाहिए। कुछ बहुचर्चित माल खींचू अधिकारियों की खुफियागिरी करवाइए सरकार। ऐसे सफेदपोशों पर मामला दर्ज करवाइए। माल भी निकलेगा और कलंक भी हटेगा। न्याय की लाठी पिक एंड चूज नही करती मेरे सरकार! बोल चैतू, जय उत्तराखंड, जय बद्रीविशाल।
Bhargava Chandola की फेसबुक वॉल से.
नोट : गुणानंद सहारा मीडिया के खिलाफ मजीठिया वेजबोर्ड का मुकदमा लड़ रहे हैं. उन्हें देहरादून लेबर कोर्ट से एक मामले में जीत हासिल हो चुकी है. दूसरा मामला अभी चल रहा है. गुणानंद प्रशासन की कमियों के खिलाफ लगातार बेबाक लेखन करते रहते हैं.