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मजीठिया वेज बोर्ड की लड़ाई : न मीडिया मालिक जेल जाएंगे, न अफसर, हारे हुए हम होंगे!

Yashwant Singh : यूपी के जंगलराज में तब तक कुछ नहीं होता जब तक कि कपार पर कस के डंडा न मारा जाए… जागरण के मालिकों को तलब कर लिया है श्रमायुक्त ने, सुप्रीम कोर्ट के डर से.. ( पढ़ें ये लिंक : http://goo.gl/cEjFk8 ) लेकिन मुझे नहीं लगता इन चोट्टों का कुछ होने वाला है… अफसर माल लेकर मस्त और मालिक शोषण करके मालामाल… सत्ताधारी महाचोरकट नेता इन सभी से थोक में माल लेकर और निहित स्वार्थी मित्रता की डील करके गदगद. न्यायपालिका कितना और कब तक इनको ठोंकती जगाती सिखाती समझाती रहेगी…मजीठिया वेज बोर्ड का मामला एक ऐसा मामला है जिसे आप गौर से देख पढ़ जान लें तो आपका लोकतंत्र पर से पूरा भरोसा उठ जाएगा.

Yashwant Singh : यूपी के जंगलराज में तब तक कुछ नहीं होता जब तक कि कपार पर कस के डंडा न मारा जाए… जागरण के मालिकों को तलब कर लिया है श्रमायुक्त ने, सुप्रीम कोर्ट के डर से.. ( पढ़ें ये लिंक : http://goo.gl/cEjFk8 ) लेकिन मुझे नहीं लगता इन चोट्टों का कुछ होने वाला है… अफसर माल लेकर मस्त और मालिक शोषण करके मालामाल… सत्ताधारी महाचोरकट नेता इन सभी से थोक में माल लेकर और निहित स्वार्थी मित्रता की डील करके गदगद. न्यायपालिका कितना और कब तक इनको ठोंकती जगाती सिखाती समझाती रहेगी…मजीठिया वेज बोर्ड का मामला एक ऐसा मामला है जिसे आप गौर से देख पढ़ जान लें तो आपका लोकतंत्र पर से पूरा भरोसा उठ जाएगा.

कांग्रेस, भाजपा, सपा… सब इस केस में नंगे हैं. किसी की औकात नहीं बेइमान मीडिया मालिकों को नियम कानून का पाठ पढ़ाने की. सब अपनी अपनी पूंछ दबाए बचाए मालिकों को अभयदान दिए घूम रहे हैं. मीडिया मालिक खुद को लोकतंत्र का राजा माने बैठे इतरा रहे हैं जिनके अधीन सब कुछ है- नेता, अफसर, कानून, पत्रकार, जज… सब… ये नए किस्म का फासीवाद है. मीडिया के माफिया में तब्दील होकर दीमक की तरह लोकतंत्र, आजादी, समानता, मानवता, न्याय को चट कर जाने का फासीवाद.

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इस बाजारवादी दौर में न्याय, संघर्ष, सच्चाई, ईमानदारी आदि शब्द बेहद अल्पसंख्यक हो गए हैं.. इनके साथ वो खड़े हैं जो पीड़ित हैं या जो मजबूर हैं. बाई डिफाल्ट हर कोई बाजारवादी हो जाना चाहता है, यानि किसी तरह से ढेर सारा धन हासिल कर लेना चाहता है ताकि हर उपलब्ध सुख को खरीद कर घर में समेट सके. यह सच भी है कि ढेर सारे सुख पैसे से मिलते हैं. हेल्थ से लेकर पर्यटन तक और खाने से लेकर मकान तक, सोचने से लेकर सुरक्षित सुखकर नींद लेने तक के लिए पर्याप्त पैसा जेब में होना चाहिए… आप इस दौर तक हासिल हर वैज्ञानिक तकनीकी हेल्थ टूरिज्म रिलेटेड उपलब्धियों से उपजी चीजों को जीना, जीवन का हिस्सा बनाना चाहते हैं तो आपके पास ठीकठाक पैसे होने चाहिए. तब सच में आप आधुनिक जीवन के हिसाब से जीवन जी सकेंगे और ठीकठाक तरीके से सोच सकेंगे. हम हाशिए के लिए अभी अभाव के चलते स्वत:स्फूर्त उत्तेजना को समेटे आदिम किस्म का जीवन जी रहे हैं और उसी हिसाब से सोच रहे हैं.

बाजारवाद ने ईमानदारी से पैसा पाने कमाने के रास्ते बेहद सीमित कर दिए हैं. या तो कट्टा उठा लीजिए या फिर बेइमान बन जाइए. बहुत तेज दिमाग वाले और करोड़ों में पगार लेने वाले सीईओ-एडिटर-हेड टाइप नौकर लोग संख्या में कितने फीसदी होंगे, बहुत कम. फिर भी उनके दिल से पूछिए कि वो खुद के लिए कितना वक्त निकाल पाते हैं. उनका जीवन एक रोबोट की तरह किसी दूसरे के मकसद के लिए होम खर्च होते बीतता रहता है और वे खुश इस बात में होते रहते हैं कि वो ठीकठाक पैसा कमा रहे हैं. आजकल हो ऐसा गया है कि जिन्हें जीवन जीना नहीं आता, वे पैसे वाले होते जा रहे और जो सचमुच प्रकृति के करीब हैं, जीवन जीना आता है, वे तंगहाल परेशान हैं. क्या यही कंट्रास्ट, यही अंतरविरोध ही जीवन है या प्रकृति है, या गति है?

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फिलहाल यह प्रवचन लंबा हो रहा है. आजकल खुद बोलने लिखने से बचता हूं या फिर होइहें वही राम रचि राखा टाइप फील कर सब कुछ को प्रकृति का हिस्सा मान इगनोर मार देता हूं. लेकिन जब सीधे सपाट तरीके से सोचने लगता हूं तो कपार में खून चढ़ने लगता है और धड़कन तेज होने लगती है…

मुझे देश भर के उन हजारों मीडियाकर्मियों से प्यार है जिन्होंने अपनी अपनी नौकरियों को दांव पर लगाकर अपने हक के लिए अपने मीडिया मालिकों से मोर्चा पंगा लिया और सुप्रीम कोर्ट में मालिकों के खिलाफ केस लगाकर लड़ रहे हैं. बहुत लंबी खिंच गई लड़ाई. मालिकों, सरकारों और सिस्टम ने पीड़ित पत्रकारों को बहुत छला, बहुत खींचा केस, बहुत समय लगाया, इतना कि न्याय मांगने वाले टूट जाएं. हो भी यही रहा है. जाने किस आशा दिलासा पर सब उम्मीद से भरे हैं, लड़े जा रहे हैं. ये हार जाएंगे तो मुझे बहुत अफसोस होगा.

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एक बड़ी हार पिछले दिनों हो चुकी है, सुप्रीम कोर्ट में ही हो चुकी है, हिंदुस्तान टाइम्स केे उन सैकड़ों कर्मियों की जिन्होंने छंटनी के खिलाफ एचटी प्रबंधन से सौ करोड़ मुआवजे व नौकरी पर रखे जाने की जीत हाईकोर्ट से हासिल कर ली. उनके जीतने की खबर हमने भड़ास पर बल्ले बल्ले स्टाइल में चलाई थी (पढ़ें जीतने वाली खबर : http://goo.gl/rDte7V ) . अब वो हार गए. प्रबंधन सुप्रीम कोर्ट गया. जाने क्या खेल तमाशा हुआ. एचटी के मालिक जीत गए. सौ करोड़ हड़प गए. सैकड़ों की नौकरियां खा तो चुके ही थे, जीने की उम्मीद भी छीन ले गए. इसलिए यह मत मानकर चलिए कि सुप्रीम कोर्ट कोई हनुमान जी की गदा टाइप चीज है.

जब सब कुछ मेनुपुलेट हो / किया जा रहा है, जब सब कुछ बाजार / मालिकों / पैसेवालों के अनुकूल बनाया जा रहा हो ताकि अर्थव्यवस्था की व्यवस्था उछाल मारती रहे तो सुप्रीम कोर्ट के माननीय जज लोग कोई एलियन नहीं जो दिल्ली के प्रदूषण से निकले खतरनाक आक्सीजन को अपने अंदर धकेलने से इनकार कर अपने किसी दूसरे ग्रह वाले देस से ओरीजनल बूटी बिटामिन हवा मंगा कर खींच रहे हैं. वे भी सत्ता और सिस्टम के नीति नियमों दशा दिशा के संकेतों को अच्छे से पढ़ते समझते हैं और अपने हाथों इस मालिक फ्रेंडली व मजदूर विरोधी अर्थव्यवस्था की स्पीड धड़ाम करने के आरोप मढ़े जाने से बचना चाहते हैं. जैसे हर जगह एक मेनस्ट्रीम होता है वैसे ही जजों में भी एक मेनस्ट्रीम है जो सत्ता सिस्टम के अनुकूल होती है. कम ही जज ऐसे हैं जो वाकई ईमानदार हैं, क्योंकि ईमानदारी भी अब दो किस्म की है. एक है मेनस्ट्रीम वाली ईमानदारी. एक है जनता के प्रति पक्षधरता वाली ईमानदारी. जैसे मेनस्ट्रीम मीडिया में जनपक्षधर लोगों के लिए स्पेस नहीं है, या है तो उन्हें पगलेट या एलियन माना जाता है, उसी तरह जुडीसिरी में भी अब जनपक्षधर ईमानदारों के लिए जगह बहुत कम है. ऐसे जजों को पगलेट, खतरनाक मानते हैं बाकी साथी जज.

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जाने क्यों हम हाशिए के लोग उम्मीद से भरे होते हैं, कोई न कोई तर्क जीने हंसने खुश होने के लिए खोज लेते हैं और नीके दिन आने पर बनत न लागे देर टाइप श्लोगन कविता बांचते हुए अच्छे दिनों की उम्मीद में एक के बाद एक बुरे वक्त को अपने आसपास आमंत्रित करते रहते हैं. शायद ज़िंदगी यही है. शायद ज़िंदगी यह नहीं है.

भड़ास के एडिटर यशवंत सिंह की एफबी वॉल से. संपर्क : [email protected]

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0 Comments

  1. Dharmendra Pratap Singh

    August 11, 2016 at 10:17 am

    यशवंत भाई… नमस्कार।
    आज के आपके आलेख में जबर्दस्त जज्बात छिपा है ! आपने लिखा तो कटु सत्य है, मगर भाई… मेरे एक सहयोगी ने ऑफिस से बाहर निकल कर मुझे फोन किया। वह काफी निराश थे। एक अहम बात का उन्हें दुख था कि यशवंत जी लिखते तो बहुत अच्छा है, किंतु आज उनके आलेख को पढ़कर बहुत निराशा हुई।
    भाई, संभव है कि सच में हमारे बंधु कमजोर पड़ने लगें… इसलिए कुछ समय तक कृपया वो सब मत कहिए / लिखिए, जो सच है !
    उम्मीद करता हूं कि तथ्यों से भरा एक और आलेख आप जल्दी ही लिखेंगे, जिससे कि हमारी बिरादरी के सुस्त पड़े मित्रों की रगो में बिजली कौंध जाए… वे भी अदालत की शरण लेकर कुछ हसीन सपने देखने लगें ! धन्यवाद

  2. Kashinth Matale

    August 11, 2016 at 11:22 am

    Com. Yashwant Singh Sahab ne Sahi Likha hai. Court me do prakar law upyog me hote hai. Ek Case Law. Aur Doosra Face law. Phir bhi anyay ke khilap ladahi ladhna hi chahiye.
    Koi bhi case ka ek simit samay me faisla hona chahiye. Date pe Date rahegi to Nyay milne ki sambhavam kam ho jati hai. Ladhnewala Thak jata hai, aur doosara ladahi ladhneke liye aagae pichhe dekhta hai. Phir bhi Ummid Chhodna nahi chahiye.
    (Is space me Hindi kaise type hota hai?)
    United We Stand !!!
    Divided We Fall !!!

  3. Ravinder

    August 11, 2016 at 4:28 pm

    यशवंत जी। जिस व्यक्ति ने खुद लोगों में जोश भरा और सैकड़ों लोगों को उम्मीद दिखाकर इस जंग में झोंका और अब निराशा का भाव दिखा दिया। ऐसे समय में जब सैकड़ों लोग मजीठिया की जंग में शत्रू की सेना के बीच जान की बाजी लगाए लड़ रहें हैं, एक सिपहसालार का हथियार डालना घातक भूल है। वैसे भी इतनी दूर आकर पीछे हटने की बात बेमानी है। अब ऐसी निराशाजनक बातों से किसी का भला नहीं होने वाला, उल्टा विरोधियों का ही फायदा होगा। वैसे भी सैनिक हमेशा लडऩे के लिए मैदान में उतरते हैं, हार या जीत उनकी हिम्मत दिलाती है। इसे बनाए रखना जरूरी है।

  4. bhavishya menaria

    August 11, 2016 at 6:25 pm

    bahut khub yashwant g, aap jaisa aadmi nirash ho jaega socha nahi tha. maine apni company par case kiya vo apna haq lene ke liye na ki malikon ko jail bhejne ke liye. kher iska faisla bhi sc kar dega or aage unhe ishvar ko bhi jawab dena he. yahi baat afsaro par bhi lagu hogi. me 1 saal se ghar baitha hoo lekin nirash nahi hoo chahe faisla jo bhi aae. gao jaunga or kheti karunga lekin faisla aane tak negetive nahi sochunga. jai hind

  5. samir

    August 12, 2016 at 7:56 am

    Jab Supreme court hi Immplement karna Layak nahi hai to Phir Aase Wage board Koy Nikalata Hai. Hazaaro Logo ki Aassha Par nirasha ho Jata Hai…

  6. samir

    August 12, 2016 at 7:57 am

    Jab Supreme court hi Immplement karna Layak nahi hai to Phir Aase Wage board Koy Nikalata Hai. Hazaaro Logo ki Aassha Par nirasha ho Jata Hai… India me Janma Hai Lena pap hai. Pura desh Correpation se Khadbada hai…

  7. Dr. Sandeep Saini

    August 15, 2016 at 3:58 am

    बहुत नाम सुना था (आपका), काटा तो कतरा खून भी न निकला, संघर्षरत कर्मचारियों को निरूसाहित करने के धन्‍यवाद,
    मित्र, जंग में हार जीत तो लगी रहती है पर जंग के दौरान ही हार मान लेना असली हार है । अाजादी के लिए भी लोग भी लडे थे, पतलपाड पत्रकार व तलुवे चाट लोग तब भी कहते थे कि अंग्रेजों का कुछ नहीं होगा, और सबने देखा कि क्‍या हुआ। चाहे हम जंग हार जाएं परंतु जिंदगी में अफसोस तो नहीं होगा कि प्रयास नहीं किया लडे ही नहीं। आपको लोग रोल माडल मानते थे परंतु इस पोस्‍ट के बाद लगता है आप भी मालिकों की गोद में बैठ गए। हालांकि कोर्ट की बाते हमें कुछ डराती हैं तो कुछ उत्‍साहित भी करती हैं जैसा सलमान के केस में और सरकार के खिलाफ असम, उतराखंड में देखने को मिला। इसमें कोई दो राय नहीं कि अभी तक कोई महत्‍वपूर्ण कदम कोर्ट की ओर से नहीं दिखा है। परंतु इन लडाइयों में समय लगता है। तत्‍काल तो कुछ नहीं होता, होता है तो तलुवे चाट लोगों को कुछ हडडी मिल जाती है जिसे न छोड बनता है न खाए। महाभारत, राम-रावण की जंग में लाखों लोग मारे गए थे परंतु हक पाने व सत्‍य के लिए लडने वाले लोग लगे रहे और जीत उन्‍हें मिली। चूंकि आशावाद पर दुनिया टिकी है। अास है तो सांस है। आप भी इस साइट के द्वारा बिजनेस, प्रोफिट की आस लगाए हुए है जिसमें सफल भी हुए है। आगे की बात फिर कभी……

  8. Kashinath Matale

    August 16, 2016 at 1:31 pm

    Dear sir,
    Bhadas ne Suru se hi Majithia Wage Board me baremene Har jankari prakashit ki. 7 February, 2014 ke SC me judgement ke Bad bhi bahot likh rahe hai. Yahatak ki Claim kaise kare? Calculation Kaisa? Uske liye Workshop ki Jankari. Adv Umesh Sharma ki Jankari, CA Narayan ke Bareme etc jankari prakisht ki.
    Karmchariyone cases kiye hai. Calculation ke liye CA ko paise bhi hai. manie Khud paise Diya hu. Parntu CA Narayan ne calculation Barabar nahi kiya hai. Iske bareme maine aapko aur CA Narayan ko Bar Bar likha. CA Narayan ne usi calculation ko Mere kahane nusar year (Sal) Likha diya. Fitment kaisa hota hai. Existiting Emoluments Kitne hote hai. Yeh Mubhut jankari unhone nahi likhi. CA Narayan ne khali data feed karne jaisa kam kiya hai. Is tarah ki salary sheet ya claim court ke samne nahi rakh sakte. Maine mere hisab se sathi calculation kiya hai.
    labour Department case karo. Case ko Industrial Tribunal me ref. ke liye asst. labour commnr. ko bolo.
    Ummid mat chhodo, Dhiraj ka phal mitha hi hoga.
    Thanks !!

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