हरेश कुमार-
निधि राज़दान ने कल संबित पात्रा को स्टूडियो से भाग जाने को कहा तो अचानक एक पुराना किस्सा याद आया। इन फैक्ट… एक नहीं दो बार एक ही तरीके से घटा किस्सा, जब उनके महाताकतवर पिताजी ने मुझे अपने कमरे से भगाया था।
हुआ यों कि मैं यूएनआइ में नौकरी करता था और तनख्वाह बहुत कम थी। सुनते थे कि पीटीआइ में तनख्वाह ज्यादा मिलती है। वैकेंसी आई तो मैंने भर दी। उपसंपादक की नौकरी के लिए। हमेशा की तरह लिखित परीक्षा में फर्स्ट आ गया। इंटरव्यू के लिए गया। पीटीआइ के शाश्वत महाप्रबंधक श्री एम.के. राज़दान यानी निधि के पिताजी और हिंदी सेवा के संपादक मधुकर उपाध्याय साक्षात्कार लेने बैठे थे।
राज़दान ने पूछा कि भारत की तीन बुनियादी समस्याएं क्या हैं। मैंने कहा- बिपासा यानी बिजली पानी और सड़क। वे भड़क गए। मैंने उन्हें समझाया कि आजकल इन तीनों के लिए ‘बिपासा’ काफी चलन में है। उन्होंने कहा- गेट आउट!
पांच साल बाद वहां मुख्य उप-संपादक की वैकेंसी आई। मैं हमेशा की तरह अंडरपेड था, सो फिर से भर दी। इस बार फिर लिखित में मैं फर्स्ट आया। इंटरव्यू में वे फिर मिले। उसी कमरे में। बस संपादक बदला हुआ था। कोई निरीह-सा प्राणी था। पता नहीं क्या नाम था… डीडी समथिंग। बात शुरू हुई।
उन्होंने पूछा कि आप यहां पहले आ चुके हैं क्या। मैंने कहा- हां। फिर पूछा- मैंने ही लिया था इंटरव्यू? मैंने फिर कहा- हां। वे बोले- ”अगर उस वक्त आपको नहीं रखा तो कोई बात रही होगी। बताइए इस बार आपको क्यों रखा जाए?”
मूड तो इतने में ही खराब हो चुका था। मैंने कहा- ”सर, दो बार से टॉप कर रहा हूं लिखित परीक्षा में। रखना तो बनता है।” वे फिर भड़क गए- ”अब आप मुझे बताएंगे कि क्या बनता है और क्या नहीं?”
मुझे अचानक एक घटना याद आई जिसमें एक कर्मचारी ने राज़दान को पटक कर मारा था। दिमाग में खुराफ़ात सूझी। मैंने उनसे कहा, ”सर, वो चोट लगी थी आपको, ठीक हुई या नहीं।” बोले- कौन सी चोट? मैंने कहा- ”वो जो आपको मारा गया था गिरा के?” उनका अगला वाक्य था- गेट आउट!