Shashi Shekhar : सर, तब आपने पत्रकारिता के मुद्दों को बदला था, आज राजनीतिक मुद्दों को बदलवा दीजिए… जहर बन चुके हवा, पानी, जमीन को राजनीतिक मुद्दा बनवा दीजिए… करीब दो साल पहले इंटरनेट पर माखलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविध्यालय के किसी छात्र ने अपने शैक्षणिक कार्य के लिए प्रभात खबर पर एक रिसर्च किया था.
आज फिर से वह रिसर्च पेपर ढूंढने की कोशिश की. नहीं मिला. उसे पढना चाहिए. वैसे भी प्रभात खबर के अनुज सिन्हा ने प्रभात खबर की यात्रा पर एक विस्तृत किताब लिखी है. उस रिसर्च पेपर और इस किताब को सबको पढना चाहिए. यह निराशा से भरे, नकारत्मकता से भरे और अपना उत्साह खो चुके लोगों के लिए बहुत प्रेरक है.
आज राज्यसभा में प्रधानमंत्री जी ने काफी बेहतर रिसर्च किया हुआ भाषण दिया. कोई फैचुअल मिस्टेक नहीं था. उन्होंने सही कहा कि जब हरिवंश जी प्रभात खबर की कमान संभालने गए तो उस वक्त उस अखबार का सर्कुलेशन 500 था. वहां से आगे बढते हुए अकेले बिहार में 4 एडिशन निकालना, झारखंड का नंबर एक अखबार बनना बहुत बडी बात है.
हरिवंश
खैर, कोई भी बडी यात्रा पहले कदम से ही शुरू होती है. मेरी जानकारी के मुताबिक, जन चन्द्रशेखर जी की सरकार गिरी और उनके सूचना सलाहकार के रूप में हरिवंश जी की पारी भी पीएमओ में समाप्त हुई, तब चन्द्रशेखर जी ने उन्हें राजनयिक बनाने का ऑफर दिया था. लेकिन, हरिवंश जी ने मना कर दिया और अपने पत्रकारीय करियर को एक नई दिशा में ले जाने का फैसला किया और उस प्रभात खबर की कमान संभाली, जिसका सर्कुलेशन 500 था.
500 सर्कुलेशन से दर्जन भर से अधिक एडिशन तक पहुंचने की यात्रा कई प्रेरक कहानियों से भरी है. जहां तक मैं जानता हूं, जब उन्होंने रांची से अखबार निकालना शुरु किया, तब सारा फोकस स्थानीय मुद्दों पर दिया. सारे अखबार कुछ और खबर छपते थे, लेकिन प्रभात खबर में रांची के किसी इलाके में पडी डकैती की खबर छपती थी. ऐसी ही कोई खबर थी, जिसकी हेडिंग मुझे याद नहीं, लेकिन उसमें उस घर की महिला को फोकस करते हुए लीड खबर बनाई गई थी. स्थानीयता (प्रॉक्सिमिटी) खबर की परिभाषा का एक अहम हिस्सा है. इस अहम हिस्से पर ध्यान देते हुए प्रभात खबर अपनी यात्रा आगे बढाता रहा.
कहने का आशय ये है कि हरिवंश जी की दृष्टि ही थी, जिसने तब पत्रकारिता के मुद्दों को पुनर्पारिभाषित किया. आज वे राज्यसभा के डिप्टी चेयरमैन बन गए हैं. उनसे उम्मीद की जानी चाहिए कि वे राजनीति के मुद्दों को भी बदलने का काम करेंगे. वे डेटा/फैक्ट्स के जानकार है. निश्चित ही देश की मूल समस्या समझते हैं.
मैं चाहूंगा और उम्मीद करूंगा कि वे अगर राज्यसभा के भीतर एक सदस्य के तौर पर, उपसभापति के तौर पर राजनीतिक मुद्दों को भी पुनर्पारिभाषित करेंगे. ऐसा कर पाए, तो पत्रकारिता के बाद, देश के लिए, देश की जनता के लिए उनका ये सबसे बडा योगदान होगा. सर, मूल मुद्दा क्या है? बस, जहर बन चुके हवा, पानी, जमीन के मुद्दे को राजनीतिक मुद्दा बनवा दीजिए.
देखें हरिवंश के जीतने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण…
https://youtu.be/GpJGhWPgSz0
Nirala Bidesia : चंद्रशेखर टू नीतीश कुमार से इतर हरिवंशजी की राजनीतिक चेतना… हरिवंशजी आज देश के एक शीर्ष राजनीतिक पद के लिए चुन लिये गये.. अधिकांश लोग यह जानते हैं कि उनकी राजनीतिक यात्रा पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर से शुरू हुई थी, नीतीश कुमार के रास्ते होते हुए यहां तक पहुंची. जयप्रकाश नारायण के गांव सिताबदियारा के दलजीत टोला में जनमे हरिवंशजी के इलाके के जो लोग होंगे, वे ऐसी बात नहीं करेंगे. वे जानते हैं कि वह जो सिताबदियारा का इलाका है, वह घनघोर रूप से राजनीतिक इलाका है. माटी में राजनीति का ही राग है. अभी सिर्फ उसी इलाके से कुल जमा चार—पांस सांसद हैं देश में.
आप कभी जायेंगे उस इलाके में तो मालूम चलेगा कि दियारा के उस इलाके के रहनिहारों के रग—रग में राजनीति कैसे समाया हुआ रहता है. खैर, यह तो एक बात हुई. स्कूली पढ़ाई वहीं हुई तो राजनीति का खादपानी वहीं से मिला. और वहां से जैसे ही निकले, उसका असर दिखने लगा. पहले इलाहाबाद विश्वविद्यालय गये पढ़ने, फिर बनारस के यूपी कॉलेज में आ गये. यूपी कॉलेज के बाद बीएचयू. बनारस में जब पढ़ने लगे तो वहां छात्रजीवन में ही चुनाव लड़े. चुनाव छोटा था लेकिन राजनीति का खादपानी मिला था तो आजमा लिये. और बनारस मे रहते सबसे पहले जुड़े कृष्णनाथजी से. काशी विद्यापीठ में अर्थशास्त्र के प्राध्यापक थे कृष्णनाथजी और बाद में लोहियाजी के सबसे करीबी हुए. तीन आना बनाम तेरह आना सिद्धांत के सूत्रधार. छात्रजीवन में मौज—मस्ती का दिन होता है लेकिन हरिवंशजी तब कृष्णनाथजी के यहां जाने लगे और फिर राजघाट पर सर्वोदय संघ में. बाद में जब पत्रकारिता में आये और धर्मयुग से जुड़े तो पोलिटिकल रिपोर्टिंग ही ज्यादा करते रहे. रविवार से भी जुड़कर वही करते रहे. बिंदेश्वरी दुबे पर जो रिपोर्ट उन्होंने की थी, उसकी कॉपी ब्लैक में बिकी थी.
अब तक उनका सीधा परिचय चंद्रशेखरजी से नहीं हुआ था लेकिन धर्मयुग अपने जमाने की मशहूर पत्रिका थी. सात लाख कॉपी बिकनेवाली पत्रिका तो उसके पॉलिटिकल रिपोर्टर का पूरे देश में परिचय हो जाना स्वाभाविक था लेकिन हरिवंशजी पर उसका असर नहीं पड़ा. बाद में जब वे प्रभात खबर आये तब चंद्रशेखरजी उनको पीएमओ ले गये. पीएमओ गये हरिवंशजी तो अखबार में भी प्रधान संपादक नहीं बने रहे, छोड़कर गये. लेकिन जब लौटे तो बचपन से मिले राजनीति के खाद—पानी का असर दिखने लगा. प्रभात खबर चूंकि रांची जैसे छोटे जगह से निकलता था इसलिए देश की पत्रकारिता ने उसे नोटिस नहीं लिया लेकिन जिस किस्म की राजनीतिक पत्रकारिता प्रभात खबर कर रहा था या हरिवंशजी कर रहे थे, वह देश में दुर्लभ ही था.
झारखंड आंदोलन की लड़ाई तब चल रही थी, हरिवंशजी ने प्रभात खबर को झारखंड आंदोलन के राजनीतिक स्वर को तेज करने का मंच बना दिया. रामदयाल मुंडा,बीपी केशरी, रोज केरकेट्टा से लेकर न जाने कितने लोग झारखंड आंदोलन को अखबार के जरिये मजबूत स्वर देने लगे. उसी वक्त दिल्ली में एक सेमिनार करवाया हरिवंशजी ने. अखबारों की कटिंग का एक कोलाज बनाये. दिल्ली में दक्षिण बिहार के नेताओं को जुटाये, बिहार के नेताओं को जुटाये और दक्षिण बिहार के साथ होनेवाले भेदभाव पर बोलने को बोले. यह उनकी राजनीतिक चेतना थी. एक पत्रकार के रूप में यह उनकी राजनीतिक भूमिका थी. बाद में अखबार में राजनीतिक रिपोर्टिंग को लेकर जो करते—करवाते रहे, वह तो एक बात है. देश भर में फैले राजनीति के टॉप लोगों से लिखवाना शुरू किये. उनलोगों से नहीं जो बड़े नेता हों, बड़े पद पर हो बल्कि उन लोगों से जो खांटी राजनीति के आदमी हो, सामाजिक राजनीति के आदमी हों. उसी दौरान उन्होंने ‘भारत किधर’ नाम से अखबार की ओर से व्याख्यानमाला शुरू किया.
देश की चुनौतियों पर बात करने के लिए. चंद्रशेखर, कामरेड विनोद मिश्रा, दत्तोपंत ठेंगड़ी, सिताराम येचुरी, गोविंदाचार्य,जावेद अख्तर, जस्टिस पीवी सामंत, प्रभाष जोशी, योगेंद्र यादव, लालू प्रसाद यादव, कृष्णनाथ, कृष्णबिहारी मिश्र जैसे लोग आते रहे. देश की राजनीति पर बात होती रही. इन सबसे इतर भी पत्रकार रहते हुए राजनीतिक चेतना दिखती रही. कितने राजनीतिक काम किये, यह भी जानने की चीज है. एक ही उदाहरण देता हूं. 2007—08 में हरिवंशजी ने एक परचा छपाया. गाड़ी के पीछे रखा. परचा क्या था तो यह बताना कि राजनीति से घृणा नहीं कीजिए, राजनेता कोई काम नहीं करता, बुरा है तो उसे बदलिये, यह आपके हाथ में है. वोट डालिये, इस दुनिया में लोकतंत्र से बेहतर कोई मॉडल नहीं है. उस परचा के साथ हरिवंशजी झारखंड के सुदूर इलाके में घूमने लगे. कॉलेज में जाना, विश्वविद्यालयों में जाना, कस्बे में जाना, छोटे—छोटे शहरों में जाना और फिर दिन भर तपती गरमी में घूमने के बाद रात में पास के किसी शहर में भी बोलना. गले में चूना लग गया था सातवें दिन.
बोलने से गला बैठ गया था लेकिन धनबाद, जमशेदपुर,रांची से लेकर तमाम इलाके में यह अभियान उन्होंने चलाया. उस पूरी यात्रा में साथ था तो गवाह था. टूंडी की एक घटना बताता हूं. वहां पहुंचने के बाद एक भी आदमी नहीं थे सुननेवाले. तीन लोग थे. हरिवंशजी को बोला कि क्या बोलिएगा यहां, उनका गला भी फंसा हुआ था लेकिन तीन लोगों के बीच लोकतंत्र, चुनाव आदि पर बोलना शुरू कर दिये. धीरे—धीरे आसपास की दुकानें बंद होने लगी, लोग जुटने लगे. और देखते ही देखते ढेरों लोग. रास्ता में पूछा कि आप तो तीन लोगों के बीच भी बोलने लगे थे सर, उनका जवाब था—जेपी के गांव से हैं न. जेपी लोगों का इंतजार नहीं करते थे. दो लोगों के बीच भी बोलते थे. हम यहां प्रचार कर के थोड़ी आये हैं कि लोग रहेंगे. जहां लोग मिलेंगे, वहीं बोलेंगे. राजनीतिक चेतना पर और बातें फिर कभी. हजारीबाग से लेकर पलामू तक के ढेरों प्रसंग हैं, जिनसे मालूम चलेगा कि वे सक्रिय राजनीति में भले बाद में दिखते हों लेकिन राजनीति तो उनकी रग—रग में रहा है. पलामू में ज्यांद्रेज के साथ वाली यात्रा, सूचनाधिकार पर अरविंद केजरीवाल के साथ किया हुआ काम.
प्रतिभाशाली पत्रकार द्वय शशि शेखर और निराला बिदेसिया की एफबी वॉल से.
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