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सियासत

पत्रकारिता के लिटिल मास्टर हरिवंश ने राजनीति में भी ‘शानदार’ स्ट्रोक खेल दिया!


सचिन श्रीवास्तव-

(प्रभात खबर के पूर्व संपादक हरिवंश जी के नाम खुला पत्र!)

!! हरिवंश जी: रविवार से रविवार तक !!

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आदरणीय हरिवंश जी,

दो दिनों से आपके खिलाफ बहुत कुछ लिखा जा रहा है। बहुत कुछ बोला जा रहा है। मैं भी लिखना चाहता था, लेकिन बार बार मन उदास हो रहा था। टूट रहा था। अभी थोड़ा संयत है, तो लिख रहा हूं। पता नहीं यह पत्र आप तक पहुंचेगा या नहीं। पहुंच जाए तो जवाब अपने आप को दीजिएगा। वैसे निराला (Nirala Bidesia) को बता दूंगा, सुना है, उससे इन दिनों आप खूब बातें करते हैं।

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हरिवंश जी (जी लगाने का जी तो नहीं, लेकिन बुजुर्गियत का क्या कीजे) एक रविवार था, जिसने आपको इज्जत बख्शी, और एक रविवार आया, जिसमें उस इज्जत से उपजे विश्वास को खुद आपने ही तार तार कर दिया। अपनी पत्रकारिता के शुरुआती दिनों में मुझे आपके सानिध्य का सौभाग्य मिला, और गाहे बगाहे मित्रों के बीच पूरे गर्व से इसे बघारता भी रहा। जिन्होंने आपके साथ काम नहीं किया उनके चेहरे पर ईर्ष्या की जो लकीर उभरती थी, उसे देखकर सुकून होता था कि कुछ ढंग का किया है। आज वो गर्व आपने हमसे छीन लिया। हमसे मतलब हम सबसे जो झारखंड गठन के बाद की पत्रकारिता में प्रभात खबर का हिस्सा बने।

मुझे याद आ रहा है कि 2003 से 2005 के बीच जब जमीनी पत्रकारिता की बारीकियां समझ रहा था। झारखंड की विविध संस्कृतियों और समाजों के बीच के रिश्तों को टटोल रहे थे, तो कैसे “हरिवंश के प्रभात खबर की धमक” को हम सब सीने पर सजाए घूमते थे।

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हालांकि उस दौर में भी अश्विनी पंकज (Ak Pankaj) जैसे साथी थे, जो आपके मूल चेहरे की बारीकियों को निजी बातचीत में उघाड़ते थे, लेकिन तब आपका जादू था हम पर। ​

इसकी वजह भी हैं न। असल में रविवार के उप संपादक हरिवंश का प्रभात खबर की कमान संभालना और पत्रकारिता के नए प्रतिमान रचना एक सच्चाई है। इससे किसी को इनकार नहीं होना चाहिए कि बतौर पत्रकार अपने शुरुआती और युवा दिनों में आपने पत्रका​रिता की और खांटी पत्रकारिता की। फिर संपादकीय समझ से भी पत्रकारिता को परिष्कृत किया। झारखंड आंदोलन के दौरान “अखबार नहीं आंदोलन” की टैग लाइन को आपने साकार किया। जाहिर है इसमें हरिनारायण सिंह जी से लेकर बैजनाथ मिश्र जी तक की धारा थी। और फैसल अनुराग जी, श्रीनिवास जी, मधुकर जी, विनोद जी, अनिल जी से लेकर अनुज सिन्हा, अनुराग अन्वेषी और अविनाश दास और फिर विजय पाठक जी से लेकर जीवेश रंजन सिंह तक की रचनात्मक टीम थी जिसने प्रभात खबर को संवारा, तेवर से नवाजा और झारखंड की अवाम की आवाज बनाया। यह पूरी टीम अपने अपने काम में अव्वल थी। यहां फैसल अनुराग के सामाजिक सरोकार थे, तो किसलय जी की महीन नजर भी, विजय पाठक जी का उत्साह था, तो ​मधुकर जी की प्रशासनिक पकड़। कुल मिलाकर अलग—अलग सरोकार, समझ और रचनात्मकता। लेकिन इस टीम को एक समुच्चय तो आपने ही बनाया था। और माहौल भी ऐसा कि हम जैसे पत्रकारिता के नवांगतुकों को भी सवाल करने और रचनात्मक आजादी का पूरा स्पेस था। यह वह दौर था जब प्रभात खबर से जुड़ना पत्रकारिता को जीवन में उतारना हुआ करता था। हम उतरे भी।

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2005 याद है आपको हरिवंश जी। जनवरी की कडकडाती ठंड थी। जब कॉमरेड महेंद्र सिंह की हत्या हुई थी। मैं सीपीआई एमएल के आफिस में था। फैसल जी, सत्य प्रकाश के साथ। तब हम बगोदर जाने की तैयारी कर रहे थे। लेकिन आपने मुझे फोन करके बुलाया था और कहा था कि तुम यहीं रुकना। स्पेशल पेज बनाने की जिम्मेदारी दी थी। विजय पाठक जी उस दिन सुबह की मीटिंग के बाद घर नहीं गए थे। लगातार काम किया सबने। आप बगोदर गए थे। प्रभात खबर में तब माहौल गमगीन था। हर आंख की कोर भीगी हुई थी। लेकिन अखबारी जिम्मेदारी भी सभी पूरी लय में निभा रहे थे। एक अखबार का समाज के जीवन से जुड़ा होना इसी को कहते हैं। ऐसे कई मौके आए जिनमें आपसे असहमतियां हुईं, लेकिन उन्हें दर्ज भी किया जा सकता था।

हालांकि तब भी आपकी तीखी आवाज और गुस्से की लहरें न्यूज रूम में हलचल मचाने लगी थीं। प्रोवेंशियल डेस्क के कई साथी तो आपके न्यूज रूम में आने के बाद बस नजरें कम्प्यूटर स्क्रीन पर जमाए बस ये इंतजार करते थे कि कब आप अपने केबिन में जाएं।

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आप थोड़ा गौर करें हरिवंश जी। वह शुरुआत थी। 2005 के विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद से आपके तेवर बदलने लगे थे। केंद्र में यूपीए सरकार थी और प्रभात खबर ने पत्रकारिता को समाज से राजनीतिक दल की तरफ मोड़ने की शुरुआत कर दी थी। पुराने साथी जो सवाल कर सकते थे, जो आपकी आंख में आंख डालकर बात करते थे, उन्हें आपने किनारे लगाना शुरू कर दिया था। फैसल जी इसकी शुरुआती कड़ी थे।

2005 के आखिर तक आते आते मैंने आपका साथ छोड़ दिया था। अन्य साथी भी गए। आपने किसी को रोकने की कोशिश नहीं की। क्योंकि आपका सीधा सिद्धांत था कि “कम वेतन पर सरोकारी काम की पुढ़िया” थमाते रहना है।

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आखिर पतन की ढलान पर लुढकते हुए आप 20 सितंबर 2020 तक पहुंचे। फिर रविवार। आज वह प्रभात खबर भी शर्मिंदा है। रविवार यह भी है, लेकिन इस रविवार ने उसूलों, आदर्शों, सिद्धांतों की ढींगे हांकने वाले “संपादक हरिवंश” को “तुच्छ राजनीतिक हरिवंश” में बदल दिया।

सच सच बताना हरिवंश जी, क्या आपको नियमों की जरा सी भी परवाह नहीं थी। एक सीढ़ी और उपर जाने के लिए इतनी व्यग्रता। संभव है कि आप उपराष्ट्रपति बन जाएं, जैसा कि साथी सत्य प्रकाश (Satya Prakash Chaudhary) ने आकलन किया है। संभव है आप उससे भी अधिक उंचे ओहदे पर बैठे, लेकिन आप उन सैंकड़ों दिलों से तो बाहर हो गए न जो जाने अनजाने आपसे प्रभावित हुए जिन्होंने आपको अपना आदर्श बनाया।

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हरिवंश जी क्रिकेट में मैं सचिन तेंदुलकर का फैन था, आपको पत्रकारिता का लिटिल मास्टर कहता था। आप लिटिल मास्टर तो बने, लेकिन अब पत्रकारिता के नहीं, राजनीति के। शानदार स्ट्रोक खेला। लेकिन खेल भावना के विपरीत।

और आखिरी बात, आपने जो धोखा दिया है, उसका अंदाजा तो था, लेकिन इतने निर्लज्ज ढंग से भरोसा तोड़ेंगे यह नहीं सोचा था।

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आपको राजनीतिक उंचाइयां मुबारक सर

आपका
सचिन
(जिसे आपने कभी पत्रकारिता का ककहरा सिखाया था)

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