Skand Shukla : अशोक जोड़ों का दर्द लेकर डॉक्टर के पास पहुँचे थे, लेकिन उन्हें तब ताज्जुब हुआ जब उनसे आँखों और मुँह के कुछ विशिष्ट लक्षणों के बाबत पूछताछ की गयी। डॉक्टर जानना चाहते थे कि क्या उन्हें आँखों में कुछ गड़न सी महसूस होती है। ऐसा लगता है कि कुछ रेत या मिट्टी आँखों में गड़ रही है और उसे तत्काल आँखों से धोकर निकाल दिया जाए?
या फिर उनकी पलकें सोकर उठने के बाद चिपकती हैं? उनमें अक्सर कीचड़ आता है? अथवा मुँह में लार का बनना इस कदर कम हो चुका है कि वे सूखी वस्तुएँ ब्रेड-बिस्कुट-पँजीरी बिना पानी के खा सकने में असमर्थ हैं? या फिर दाँत बहुत ख़राब हो रहे हैं और मुँह पक आता है और उससे बदबू आती है?
इन सब सवालों के माध्यम से डॉक्टर यह जानना चाहते हैं कि अशोक को कहीं शोग्रेन सिण्ड्रोम नामक गठिया-रोग तो नहीं। और जब अशोक कई प्रश्नों का उत्तर ‘हाँ’ में देते हैं, तो डॉक्टर की शंका बलवती हो जाती है। वे उन्हें कुछ जाँचें कराने को कहते हैं, ताकि इस रोग की पुष्टि की जा सके।
शोग्रेन सिंड्रोम के मरीज़ों में आँखों की अश्रु-ग्रन्थियाँ और लार-ग्रन्थियाँ मुख्य रूप से प्रभावित होती हैं। इन्फ्लेमेशन के कारण इन ग्रन्थियों की आँसू और लार बना सकने की क्षमता कम होने लगती है और इसी कारण रोगियों में लक्षण पैदा होते हैं। आँसुओं का काम आँखों की धुलाई और उन्हें संक्रमणों से बचाना है। लार की उपस्थिति मुँह के भीतर भोजन का ढंग से पाचन कराने के साथ-साथ मुँह को तमाम संक्रमणों से सुरक्षित रखती है। जब इन दोनों द्रवों अनुपस्थिति हो जाती है, तो रोगियों को ऊपर बतायी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
कई अन्य गठिया-रोगों की तरह शोग्रेन सिंड्रोम भी एक ऑटोइम्यून रोग है। यानी इसमें शरीर की अपनी ही श्वेत रक्त कोशिकाएँ अपने ही अंगों पर हमला बोल देती हैं। श्वेत रक्त कोशिकाओं की इसी कार्यवाही के कारण अश्रु-ग्रन्थियाँ और लार-ग्रन्थियाँ प्रभावित हो जाती हैं। लेकिन इस रोग में शरीर के अन्य अंग भी प्रभावित हो सकते हैं। नतीजन रोगियों को सही उपचार तक पहुँचने में बहुत भटकना पड़ सकता है।
आँखों और मुँह में लक्षण प्रमुख होने के कारण इस रोग के मरीज़ बहुधा ऑफ़्थैल्मोलॉजिस्ट या डेंटिस्ट-ईएनटी-चिकित्सक के पास पहुँचते हैं। जबकि इस रोग को पूरी सम्पूर्णता में समझना इसके सही इलाज के लिए ज़रूरी है। ऐसे में डॉक्टरों के बीच आपसी तालमेल बहुत ज़रूरी हो जाता है और सही जाँचों के बाद अंगों पर प्रभाव के अनुसार इस रोग की चिकित्सा की जाती है।
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