मिथिलेश धर दुबे-
- बरेली में 23 साल के टीचर की स्कूल में प्रार्थना के दौरान हार्ट फेल से मौत हो गई
- प्रयागराज में क्रिकेट खेलते समय 25 साल के युवा की हार्ट फेल से मौत हो गई
- लखनऊ में वरमाला हाथ में लिए खड़ी दुल्हन की हार्ट फेल से मौत हो गई
- मेरठ में कुछ दोस्त पैदल जा रहे थे, अचानक एक को छींक आई गिरकर उसकी मौत हो गई
- गाजियाबाद में 35 साल के जिम ट्रेनर की हार्ट अटैक से मौत हो गई
- लोग नाचते, गाते काल के गाल में समा जा रहे
इन मौतों के लिए #heartattack को वजह बताया जा रहा। क्या ये महज संयोग है? महामारी बने, उससे चेतने की जरूरत है। कहीं देर ना हो जाए!
नरेंद्र नाथ मिश्रा-
अचानक मौत के बारे में दो दिन पहले मैंने पोस्ट लिखा। उसपर आए कुछ जवाब इस चिंता-डर को और पुख्ता करती है। एक पोस्ट पर आए कुछ जवाब को पढ़ें-
1-
Sir mere mohalle mein bhi ek bhaiyya the jo 45 saal ke kareeb honge unki bhi death heart attack se ho gai. (Pichle hafte)
2-
भुक्तभोगी हूँ… पति बिल्कुल ऐसे ही गिरे और फिर उठे ही नहीं… अस्पताल पहुँचते-पहुँचते सब ख़त्म.
इस पीड़ा को वही समझ सकता है जिसने अपना करीबी ऐसे एकदम औचक खोया हो…
3- मैंने पिछले महीने बाप को खोया इसी वजह से
4-
मेरे जेठ जी भी रेलवे स्टेशन पर। ऐसे ही गिरे फिर नही उठे।मात्र 50 की उमर में
5-
मेरे भाई की भी 35 साल की उम्र में हार्ट अटेक से मृत्यु हो गयी
6-
मेरे यहां एक फुटबाल का खिलाड़ी जिसकी आयु लगभग 20, 21वर्ष की होगी कल दिनांक 03,12,2022 को हार्ट अटैक से मौत हो गई है
7-
मैंने अपने बाप को इसी वजह से खो दिया पिछले महीने
बस सिद्ध नहीं कर पा रहा हूँ
8-कल एक हमारे फैमली अंकल उनको भी ऑफिस में हार्ट अटैक आया हॉस्पिटल ले जाया गयामेरे गांव में एक 20 साल का बॉडी बिल्डर ओर खूबसूरत लड़का हार्ट अटैक से मौत हो गई 5 मिनट भी जिंदा नही रहा था एक पास के शहर का लड़का जो रोज जिम जाता था हार्ट अटैक से मर चुका है
,dr ने बोल दिया खतम हो गये
संजय सिन्हा-
आप दुनिया में रहेंगे तभी तो कुछ कर पाएंगे? जब रहेंगे ही नहीं तो काहे की दुनिया? अपने रहने का इंतज़ाम पुख्ता कीजिए। कम से कम जितना जीना चाहिए, उतना तो जीने की जुगत लगाइए।
पर कैसे? क्या जीवन, मरण पर किसी का जोर है? किसी के वश में है जीवन-मरण? फिर भी आप बच सकते हैं। खुद को जागरूक करके, दूसरों को जागरूक करके।
नौ साल पहले मेरा छोटा भाई पुणे के अपने ऑफिस में बैठे-बैठे अचानक मर गया था। कोई अचानक मरता है क्या? न कोई बीमारी, न कोई शिकायत। फिर ऐसे ही मौत आ जाए तो ज़िंदगी पर यकीन ही कौन करेगा? मेरा यकीन भी हट गया था जीवन से। लगने लगा था कि ऐसा जीवन किस काम का, जिसमें कब सांस थम जाए पता ही नहीं। आदमी संसार में आता है चले जाने के लिए। लेकिन कोई भी वाक्य जब तक उसमें पूर्ण विराम न लगा हो, अधूरा माना जाता है। वाक्य पूरा होना चाहिए। जीवन का भी चक्र पूरा होना चाहिए। एक अघोषित गारंटी होनी चाहिए। लेकिन नहीं है।
आपकी कोई घरेलू मशीन खराब हो जाती है, आप यू ट्यूब पर उसके वीडियो देखने बैठ जाते हैं कि समस्या आई क्यों? उसे ठीक करने का उपाय क्या है? लेकिन आपके आसपास किसी के शरीर मे दिल अचानक धड़कना बंद कर देता है तो आप चुप्पी साध जाते हैं। होनी मान लेते हैं। सोचिए फिर कोई कैसे बचेगा? खबर बनाने से जीवन नहीं बन जाता। जीवन बनाने के लिए मृत्यु के दंश को समझना होगा। उनकी चाल समझनी होगी, उसके षडयंत्र को समझना होगा।
समझना होगा कि इस षडयंत्र में शामिल हैं यमराज के कामचोर चंपू कार्यकर्ता। उन्हें ऊपर से टार्गेट मिलता है इतना ले आओ और वो निकल पड़ते हैं। जो आसानी से मिला, उसे उठा लिए। टार्गेट पूरा। इस तरह आत्मा को लाने में जुटे यमराज के चंपुओं को तो धत्ता बताना ज़रूरी है।
कल खबर पढ़ रहा था कि उत्तर प्रदेश के किसी छोटे से शहर में शादी में जयमाल के समय दुल्हन को दिल का दौरा पड़ा और वो मर गई। सबके सामने मर गई। वैसे ही जबलपुर में एक सरकारी बस ड्राइवर को बस चलाते हुए अचानक दिल का दौरा पड़ा, ड्राइवर रेड लाइट पर खड़ी गाड़ियों, स्कूटर को कुचलते हुए मर गया। दिल्ली मे एक लड़की और लड़का सड़क पर जा रहे थे, अचानक लड़का गिरा, मर गया।
और एक दुखद खबर ये कि हमारे पिछले न्यूज़ चैनल के कैमरा मैन राजू भाई जो एकदम ठीक थे, परसों अचानक मर गए।
ये अचानक मर जाना इन दिनों खूब चल रहा है। आदमी दुनिया में आया है और एक दिन मर जाएगा इसी भाव से आदमी का मोह से नाता पहली बार टूटा होगा। गौतम बुद्ध बने ही शरीर के नश्वर होने के ज्ञान के बाद। लेकिन इस तरह चलते-फिरते आदमी मरने लगे तो फिर ज़िंदगी का भरोसा ही कौन करेगा?
मेरा छोटा भाई ऐसे ही एक दिन पुणे के ऑफिस में बैठा था। अचानक मर गया। तब पहली बार मुझे हृदयघात (सडेन कार्डियक अरेस्ट) के बारे में पता चला था। मेरे भाई को इस दुनिया से गए नौ साल बीत गए। इस बीच मैंने न जाने कितनी बार लोगों को सडेन कार्डियक अरेस्ट यानी हृदय घात के बारे में बताया है। लाइव डेमो दिया है। पर पत्रकार ही अब तक खुद को नहीं सुधार पाए हैं और इस तरह की मौत को हार्ट अटैक लिख देते हैं, तो बाकियों की क्या कहूं। हैरानी होती है ना-जागरुकता देख कर। इतनी भी क्या बेपरवाही? पहले बीमारी तो समझिए, फिर इलाज मिलेगा।
मैंने बार-बार कहा है कि आपके आसपास कोई यूं ही अचानक गिर कर मर जाए तो आप उसे बचा सकते हैं। पर कैसे? कोई आपको जागरूक करेगा तब न? एक सावित्री आसन के प्रयोग से ही आप मुर्दा को समय पर उपचार देकर ज़िंदा कर सकते हैं।
ज़रूरी है आपके जीवित रहने के लिए दूसरों को इस विद्या का पता होना। आप विद्या जानेंगे तो दूसरे बच सकते हैं, लेकिन आप खुद को नहीं बचा सकते हैं। खुद को बचाने के लिए ज़रूरी है सडेन कार्डयक अरेस्ट का अर्थ पहले खुद समझाना फिर दूसरों को समझना। उसका उपचार समझना, समझाना।
सचमुच इस तरह अचानक मर जाने का सिलसिला बहुत बढ़ गया है। कोई भी यूं ही सोते-जागते मरने लगे तो सरकार की नींद के आगे नगाड़ा बजाना चाहिए। सरकार को चाहिए कि सब छोड़ कर कुछ दिन आंदोलन के स्तर तक इस विद्या का प्रचार और प्रसार करे। दुनिया में आए हैं तो जीकर जाइए ।
आप प्लीज़ ऐसा बिल्कुल मत सोचिएगा कि यमराज के चंपू केवल उनके लिए आए थे, जिनकी खबरें आपने पढ़ी हैं। वो चंपू बहुत शातिर हैं। इधर-उधर घूमते हुए न जाने किस पर उनकी नज़र पड़ जाए। प्लीज़ उनका सामना कीजिए। उन्हें बताइए कि हमें लड़ना आता है, हृदयघात से। स्कूल, कॉलेज में इसे अनिवार्य पाठ्यक्रम बनाएं। ध्यान रखिएगा, हार्ट अटैक से आप अस्पताल पहुंच कर बच सकते हैं, पर इस हदय घात से सिर्फ इस विद्या से बच सकते हैं, नहीं तो रिपोर्टर घूम ही रहे हैं हार्ट अटैक बता कर आपकी खबर छाप देने के लिए।