अभिषेक श्रीवास्तव-
HELLBOUND: नर्क को अभिशप्त… किसी भी किस्म के अधिनायकवाद को एक सर्वोच्च सत्ता या कहें दैवीय किरदार की ज़रूरत पड़ती है। वो दैवीय किरदार कभी राजा में दिखाया जाता था, आधुनिक काल में यह किरदार किसी ऐसी सत्ता में निहित होता है जिसका संदेशवाहक राजा हो। चूंकि मामला दैवीय है तो उसके साथ पवित्रता, सत्यता और नैतिकता आदि मूल्य भी नत्थी किये जाने ज़रूरी हैं। इन मूल्यों का पैमाना तो दैवीय होता है लेकिन वास्तव में राजा ही उसका नियंता होता है। इस नियंत्रण के कई तरीके और मध्यम होते हैं। इसके अनुपालन के लिए आधुनिक अधिनायकवाद उन ताकतों पर ज़्यादा भरोसा करता है जो राज्येतर (non-state actors) हों। राज्य की शक्तियां राज्येतर शक्तियों की केवल पूरक होती हैं।
अक्सर हम लोग राज्य और राज्येतर के बीच फर्क नहीं बरत पाते। राज्येतर में भी किन्हीं दो शक्तियों के बीच रिश्ता इतना स्पष्ट नहीं होता है। मसलन, आजकल आरएसएस को हम मुख्यधारा का संगठन मानते हैं लेकिन किसी जिले के गौरक्षा दल या हिन्दू वाहिनी या सनातन/अभिनव भारत आदि को मीडिया फ्रिंज एलिमेंट कह के पुकारता और लिखता है। ये संज्ञाएं दरअसल अधिनायकवाद का पोषण करने वाली शक्तियों की पहचान को रोकने के लिए सत्ता के फैलाये धुंधलके की पैदाइश हैं, जिसका हम सब कहीं न कहीं गाहे-बगाहे शिकार हैं।
फासिज़्म की राजनीति को इस फ्रेम को समझने के लिए नेटफ्लिक्स की एक बेहतरीन कोरियन सिरीज़ सबको देखनी चाहिए- HELLBOUND. इसके केवल छह एपिसोड हैं। कुल पांच घन्टे का मामला है। मेटाफर मज़बूत है। पॉलिटिक्स अंडरकरेन्ट है। ड्रामा भरपूर है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि जिस धार्मिक कल्ट को फ़िल्म में दिखाया गया है वो अलग-अलग नामों से दुनिया भर में आज भी ऑपरेट कर रहा है। इससे मज़ेदार यह है कि घटनाक्रम का प्रोजेक्शन 2022 है, यानी अगला साल।
मतलब, नर्क दूर नहीं है!