बुरा मत मानिएगा लेकिन भारत में हिन्दी न्यूज चैनलों की दुर्गति देखकर शर्म या हंसी नहीं आती, अब गुस्सा आता है. लगता है कि -पत्रकार- का पत्र कहीं दूर छूट गया है, सिर्फ -कार- ही बची है. कोई चैनल बेशर्मी से भारत में गर्मी के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहरता है (कम पढ़े-लिखे लोगों के मन में पाकिस्तान के खिलाफ भावनाएं भड़काने के लिए वे भड़काऊ हेडिंग चलाते हैं) तो किसी चैनल का मालिक मोदी सरकार के एक साल पूरे होने के कार्यक्रम में अपने एडिटर-इन-चीफ के साथ खुद मंच पर विराजमान हो जाता है, भाषण देता है और फिर मंच पर विराजमान केंद्रीय मंत्रियों से गुफ्तगू के लिए लालायित अपने सम्पादक से मंच से ही कहता है कि (पढ़िए हड़काता है) –आप सरकार को नम्बर देते रहिए, लेकिन ख्याल रखिएगा. मैं मानता हूं कि एक साल का समय काफी नहीं होता किसी सरकार के काम को आंकने के लिए. और चैनल का सम्पादक “सर-सर” कहता हुआ चैनल मालिक की सार्वजनिक जी-हुजूरी करता रहता है.
एक हिन्दी का विश्वसनीय-गंभीर चैनल है, लेकिन वह घोर कांग्रेसी बन गया है. यानी बात-बात में मोदी सरकार के कामकाज पर बाल की खाल निकालता है. इस चैनल की नजर में मोदी सरकार का हर काम नौटंकी है लेकिन कांग्रेस राज में यही चैनल उस तरीके से कांग्रेसी मंत्रियों के कामकाज की समीक्षा नहीं करता था, जैसा अब कर रहा है.
एक और चैनल है, जो लगता है कि मोदी सरकार का मुखपत्र बन गया है. जब देखो, मोदी वंदना. इस चैनल की चले तो वह घोषित कर दे कि नरेंद्र मोदी, अकबर-अशोक-सिकंदर से भी महान चक्रवर्ती पीएम हैं. दूसरी ओर एक चैनल के मालिक सह सम्पादक जब प्राइम टाइम में अपना शो लेकर आते हैं तो खबर देने के साथ-साथ व्यू भी देते हैं. पब्लिक को बताते हैं कि खबर के पीछे की खबर क्या है यानी एक तरह से एडिटोरियल टाइप का वक्तव्य देते हैं. और जाहिर है कि उनका व्यू मोदी सरकार के पक्ष में होता है. देश में विपक्ष की सारी कवायद और सारे स्वर उनकी नजर में नौटंकी है. हांलांकि स्क्रीन पर वे बहुत ही निष्पक्ष पत्रकार बनने की कोशिश करते हैं लेकिन उनकी खबरों के एंगल और उनके प्रवचन से पब्लिक ताड़ ही जाती है कि भाई साहब कर क्या रहे हैं.
हिन्दी न्यूज चैनलों की कूपमंडूकता और छिछलापन तब और स्पष्ट होकर उभरा, जब रामदेव के पुत्रबीजक नामक दवा पर छिड़े विवाद पे सब भूखे भेड़ियों की तरह पिल पड़े. रात को प्राइम टाइम पर हर हिन्दी न्यूज चैनल बाबा रामदेव और दवा पर संसद में सवाल उठाने वाले केसी त्यागी को लाइव स्क्रीन पर भिड़ाने में जुट गए. एक चैनल के तो मैनेजिंग एडिटर ही एंकर बनकर इस -मुर्गा लड़ाई- का आनंद लेते दिखे. पूरी बहस में मु्द्दे की बात कुछ नहीं थी, बस तमाशा था.
इसी तरह एक बड़े दूसरे चैनल की -तेजतर्रार- महिला एंकर जब रामदेव और त्यागी की -मुर्गालड़ाई- में स्क्रीन पर दिखीं तो कोशिश करने लगीं कि रामदेव स्क्रीन पर ही लाइव ये घोषणा कर दें कि वे अपनी दवा का नाम बदलेंगे. एंकर बड़े जोशोखरोश के साथ रामदेव से बालहठ करने लगीं कि दवा का नाम बदलिए ना ! और तब तंग आकर रामदेव ने कहा कि ठीक है, हम विचार करेंगे. रामदेव का इतना कहना था कि चैनल ब्रेकिंग पर ब्रेकिंग ठोंकने लगा कि रामदेव अपनी दवा का नाम बदलेंगे !
जब देश में पुत्रबीजक औषधि को लेकर हाहाकार मचा हो, संसद में चर्चा और बहस हो रही हो तो सेठजी का चैनल कैसे पीछे रहता. हालांकि रामदेव और त्यागी इनके हाथ देर से लगे लेकिन इस चैनल का एंकर और मैनेजिंग एडिटर भी बड़ी बेशर्मी से इस -मुर्गालड़ाई- का अम्पायर बनकर प्रकट हुआ. बेशर्मी इन लोगों ने अभी तक घोलकर पी नहीं थी, सो चैनल के वॉटम बैंड पर त्वरित फ्लैश चलने लगा–एक्सक्लूसिव. यानी रामदेव और त्यागी की जिस बहस को शाम से दर्शक हर दूसरे चैनल पर देख-देखकर बाल नोच रहे थे. हिमान नवरत्न वाला ठंडा-ठंडा तेल लगाने को बाध्य हो गए थे, उन्ही दोनों की बहस को ये साहब अपने चैनल पर एक्सक्लूसिव बता रहे थे.
कहने का मतलब ये है कि देश के हिंदी न्यूज चैनलों में घोर अराजकता का माहौल है. सब कुछ भेड़ियाधंसान है, भेड़चाल है. पता नहीं क्यों, हर चैनल का सम्पादक हिन्दी के दर्शक को इतना मूर्ख और पिछड़ा क्यों समझता है? न्यूज के नाम पर तमाशा तो है ही, हर चैनल ने केंद्र सरकार के पक्ष में या विपक्ष में अपनी लाइन तय कर दी है. और ये लाइन स्क्रीन पर साफ दिखती है. हर चैनल पर उसके मालिक के हितों की छाया स्पष्ट रूप से झलकती है.
यह अभूतपूर्व है. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ. हिन्दी टीवी न्यूज का मीडिया स्पष्ट रूप से दो धड़ों में बंट गया है. एक बीजेपी के साथ है और दूसरा बीजेपी के खिलाफ यानी विपक्ष के साथ. एकाध चैनल हैं जो दोनों नाव पर सवारी को कोशिश करते नजर आते हैं लेकिन समय-समय पर वो भी एक्सपोज होते रहते हैं. कहने का मतलब ये कि उनके मालिक कन्फ्यूज्ड हैं. रातभर पहले तक वो मोदी चालीसा बजा रहे होते हैं और अगले ही दिन वो राहुल की ट्रेन यात्रा तो देश की सबसे बड़ी खबर के रूप में पेश कर देते हैं. घंटा-दो घंटा इस पर खेलते हैं और फिर -पुराने -एजेंडे पर वापस आ जाते हैं. ऐसे कई उदाहरण में गिना सकता हूँ.
लेकिन कांग्रेस-विपक्ष और बीजेपी को साधने की कोशिश में लगे इन न्यूज चैनलों के फोकस से देश के असली सरोकार गायब है. किसान चैनल सरकार ने तो कल शुरु कर दिया लेकिन किसान की स्टीरो, उनकी वेदनाएं न्यूज चैनलों की खबर का हिस्सा नहीं होतीं. FDI पर मोदी सरकार के यूटर्न का किसी भी चैनल ने विश्लेषण नहीं किया. जिस विषय से देश के करोड़ों कारोबारियों की रोजी-रोटी जुड़ी हो, उसे सबने डाउन प्ले किया. क्यों किया, पता नहीं! लेकिन सबको पता है कि क्यों किया होगा. पूरे देश मे इतना कुछ हो रहा है, इतने सारे सामाजिक-राजनीतिक-आर्थिक-भौगोलिक मुद्दे हैं लेकिन वो हिन्दी न्यूज चैनलों की प्रोग्रामिंग और न्यूज लिस्ट का हिस्सा नहीं हैं. ले-देकर पूरी बात सरकार और विपक्ष (विपक्ष में भी सिर्फ राहुल गांधी, बाकी सब दल तो गायब हैं) पर आ जाती है और फिर रात के प्राइम टाइम में इस पर एक बहस करा दी जाती है. एंकर चिल्लाता है, सारे नेता चिल्लाते हैं और फिर प्रोग्राम खत्म होते ही एक-दूसरे से हाथ मिलाते हुए, थैंक यू बोलते हुए सब घर चले जाते हैं. आज का शो कम्प्लीट हुआ. कल फिर एक नया विषय, नई बहस. लेकिन दर्शकों के लिए उसमें कुछ नया नहीं होता.
मुझे लगता है कि ये सब कुछ इतनी जल्दी खत्म नहीं होने वाला. केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार के आने के बाद मीडिया की कार्यशैली और उसका अंदाज अभूतपूर्व तरीके से बदला है. खेमाबंदी हुई है और ये नेताओं को सूट करता है. इमरेजेंसी के बाद डरी-सहमी कांग्रेस ने भी इस नए प्रकरण से बहुत कुछ सीखा है. सो 5 साल बाद अगर सरकार बदली यानी कांग्रेस सत्ता में आई तो वो भी मीडिया को हैंडल करने के इस मॉडल को जरूर अपनाएगी. बल्कि यूं कहें कि उसे और कसेगी. आखिर सत्ता को तो हमेशा ही ये सूट करता है कि मीडिया उसके इशारे पर नाचे. फिलहाल तो मदारी का नाच जारी है.
वरिष्ठ पत्रकार नदीम एस अख्तर के एफबी वाल से
Ashok Upadhyay
May 28, 2015 at 7:38 am
आपने चेनलों के नाम क्यों नहीं लिखे ……क्या डर था ?
Arun sathi
May 28, 2015 at 11:05 am
इस हमाम में सब नंगे है ..किसका नाम लिखते …सटीक लेख
pankaj
May 28, 2015 at 8:17 pm
Apko channel ke naam bhi likhne chahiye, waise aapne bikul succhi bat likhi h