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हिंदी के अच्छे संपादक वही हुए हैं जिनका हिंदी के साथ अंग्रेजी पर समान अधिकार रहा

Sumant Bhattacharya : हो सकता है कि मेरे कहने से हिंदी भाषी आहत महसूस करें, लेकिन गौर करें तो हिंदी के अच्छे संपादक वही हुए हैं जिनका हिंदी के साथ अंग्रेजी पर समान अधिकार रहा। स्वर्गीय अज्ञेय,मनोहर श्याम जोशी, राजेंद्र माथुर, प्रभाष जोशी से लेकर मौजूदा वक्त में प्रमोद जोशी और नीलाभ मिश्र पर ध्यान दें तो यह बात समान रूप से लागू होती है। शुष्क आंकड़ों और नीतियों को समझने की इनकी क्षमता अद्भुत है। दिवंगत सुरेंद्र प्रताप सिंह को मैं इसमें अपवाद रखता हूं, बावजूद नीतियों पर अंतरदृष्टि देते हुए एसपी की कोई रिपोर्ट मेरी नजर से कभी नहीं गुजरी। इसे फिलहाल मैं अपनी कमी मान सकता हूं।

<p>Sumant Bhattacharya : हो सकता है कि मेरे कहने से हिंदी भाषी आहत महसूस करें, लेकिन गौर करें तो हिंदी के अच्छे संपादक वही हुए हैं जिनका हिंदी के साथ अंग्रेजी पर समान अधिकार रहा। स्वर्गीय अज्ञेय,मनोहर श्याम जोशी, राजेंद्र माथुर, प्रभाष जोशी से लेकर मौजूदा वक्त में प्रमोद जोशी और नीलाभ मिश्र पर ध्यान दें तो यह बात समान रूप से लागू होती है। शुष्क आंकड़ों और नीतियों को समझने की इनकी क्षमता अद्भुत है। दिवंगत सुरेंद्र प्रताप सिंह को मैं इसमें अपवाद रखता हूं, बावजूद नीतियों पर अंतरदृष्टि देते हुए एसपी की कोई रिपोर्ट मेरी नजर से कभी नहीं गुजरी। इसे फिलहाल मैं अपनी कमी मान सकता हूं।</p>

Sumant Bhattacharya : हो सकता है कि मेरे कहने से हिंदी भाषी आहत महसूस करें, लेकिन गौर करें तो हिंदी के अच्छे संपादक वही हुए हैं जिनका हिंदी के साथ अंग्रेजी पर समान अधिकार रहा। स्वर्गीय अज्ञेय,मनोहर श्याम जोशी, राजेंद्र माथुर, प्रभाष जोशी से लेकर मौजूदा वक्त में प्रमोद जोशी और नीलाभ मिश्र पर ध्यान दें तो यह बात समान रूप से लागू होती है। शुष्क आंकड़ों और नीतियों को समझने की इनकी क्षमता अद्भुत है। दिवंगत सुरेंद्र प्रताप सिंह को मैं इसमें अपवाद रखता हूं, बावजूद नीतियों पर अंतरदृष्टि देते हुए एसपी की कोई रिपोर्ट मेरी नजर से कभी नहीं गुजरी। इसे फिलहाल मैं अपनी कमी मान सकता हूं।

वास्तविकता तो यह है कि फिलवक्त हिंदी के मौजूदा ज्यादातर संपादक और पत्रकारों का अंग्रेजी ज्ञान शून्य है, हालांकि यह कोई काबलियत नहीं है पर अंग्रेजी की गैरहाजिरी वैश्विक होने की राह में रोड़ा तो है ही। मुमकिन है कि आप कहें कि हिंदी पत्रकारिता ज़मीनी पत्रकारिता कर रही है तो मैं कहूंगा, यकीनन वो रियल इस्टेट की पत्रकारिता कर रही है। कम से कम बांग्ला का अनुभव तो यही रहा है। सूचनाओं का जितना कचरा हिंदी अखबारों और पत्रकारिता में होता है, शायद ही किसी अन्य भारतीय भाषाओं की पत्रकारिता में होता है। अभी इतना ही..अब मुझे कोसना और गाली देना शुरू करें, और मेरे सरनेम को भी इसें शामिल कर लें।

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वरिष्ठ पत्रकार सुमंत भट्टाचार्या के फेसबुक वॉल से.

Arvind K Singh : हिंदी का मौसम… जैसे बारिश आती है और मेढकों की टर्र-टर्र की आवाज सुनायी पड़ती है, कुछ वैसी ही आवाज मुझे हिंदी सप्ताह, हिंदी दिवस और हिंदी पखवाड़े पर हिंदी के नियंताओं की सुनाई पड़ती है। आज क्या कोई ऐसा हिंदी का अखबार है जो अच्छी हिंदी सिखाता हो। अंग्रेजी में तो हैं, जो अच्छी अंग्रेजी सिखाते हैं। और अन्य भाषाओं में भी हैं। लेकिन इस महान भाषा के विद्वान आज तक देशों के नाम और दुनिया की तमाम हस्तियों के नामों में एकरूपता या मानक स्थापित नही कर सके हैं। हिंदी के अखबारों और न्यूज चैनलो में भी अंग्रेजीदां लोगों का कब्जा है। वे मौके पर अंग्रेजी वाले हो जाते हैं, और किसी मौके पर हिंदी के भाग्य विधाता….बात बहुत है…लेकिन मैं मौसम का मिजाज खराब करने का इरादा नहीं रखता…हिंदी विश्व भाषा बन गयी है। लेकिन उसकी गुणवत्ता की चिंता हिंदी बोलने वाले करें, हिंदी में नौकरी करने वालों को तो सरकार ने खैरात दे रखी है।

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वरिष्ठ पत्रकार अरविंद कुमार सिंह के फेसबुक वॉल से.

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4 Comments

4 Comments

  1. sudhakar

    September 3, 2014 at 10:04 am

    शायद मृणाल पाण्डेय का नाम भूल गए।

  2. सिकंदर हयात

    September 3, 2014 at 1:06 pm

    भारत जैसे विशाल देश में अंग्रेजी से फायदे भी बहुत हुए हे तो नुक्सान भी बहुत हुए हे फायदों की चर्चा बहुत होती हे लेकिन नुक्सान की होने नहीं दी जाती यक़ीन मानिये नुक्सान भी बहुत हुए हे जैसे देखे की हिंदी पत्रकारिता का स्तर तभी बेहद गिरा जब इसने और इसके लोगो ने अंग्रेजी के वर्चस्व के सामने बिल्ल्कुल हथियार डाल दिए हे भट्टाचार्य जी की ही पूर्व पत्रिका आउटलुक की ही बात करे तो अच्छी अंग्रेजी वाले नीलाभ जी के बावजूद इसका स्तर आलोक जी के मुकाबले बेहद गिरा हुआ हे कई साल हो चुके हे ?( अब मेने भी हथियार दाल दिए यानी खरीदना बंद कर दिया हे )अंग्रेजी की कटटर समर्थक मृणाल पाण्डेय जी के दौर में ही हिन्दुस्तान कादम्बिनी का बेहद स्तर गिरा हे और हमारा साथ छूटा

  3. सिकंदर हयात

    September 3, 2014 at 1:26 pm

    किसी भी समझदार आदमी को अंग्रेजी की जयजयकार करने में लोगो को अंग्रेजी का महत्व बताने में अपना समय नहीं बर्बाद करना चाहिए अंग्रेजी से भारत में फायदे होते हे ये बात भारत में बच्चो को शायद अभिमन्यु की तरह पेट में ही समझ आ जाती होगी सबको पता हे सबको फिर किसे बताने की जरुरत हे भला ? शायद ही कोई हो जो जानबूझ कर अंग्रेजी नहीं सीखता हो जहा जिसके बस का हे वो सीख रहा हे माँ बाप आधे पेट रहकर भी बच्चो को अंग्रेजी स्कूल में भेज़ना चाहते हे एक तो ये हे लेकिन फिर भी जैसे सभी लोग हथियार नहीं उठा सकते सभी लोग अक्लमंद दबंग बहादुर चतुर या बईमान लालची नहीं बन सकते वैसे ही सभी अंग्रेजी नहीं सीख सकते सीख भी ले तो अंग्रेजी का महत्व और फायदा ही खत्म हो जाएगा जैसे भारत में 1 करोड़ टन सोना निकल जाए तो सोने का फायदा खत्म हो जाएगा भारत में असल मसला हे भयावह असमानता और हम चाहे जितनी अंग्रेजी बेहतर कर ले उससे असमानता कम या खत्म नहीं होगी

    • विनीत कुमार

      June 4, 2018 at 7:22 am

      सिकंदर जी की बात से 100 फीसदी सहमत। इस देश की अजब विडंबना है। जिनको अंग्रेजी नही आती वह हिंदी को पूरे देश की भाषा घोषित करने पर तूल जाते हैं। और जिन्हें अंग्रेजी ठीक से आती है वह इसको तरक्की की और विकास की भाषा कहने लगते है। खुद हमारे जैसे अनेक लोगों को अधकचरी अंग्रेजी आती है। लेकिन ऐसा नहीं है कि इसके बिना सांस लेने में तकलीफ हुई हो या किसी ने कहीं से भगा दिया हो।
      इतना जरूर है, अंग्रेजी वैश्विक भाषा है।आपको यदि आती है तो नुकसान कभी नहीं होगा। जब भी होगा फायदा ही होगा।

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