शम्भूनाथ शुक्ला-
श्री Rajendra Tripathi अपने साथ अमर उजाला में संपादक थे। मेरे साथ बेहद विनम्र रहते। और दूसरों के साथ उतने ही रंगबाज। कहते थे, भला कनपुरियों से बड़ा रंगबाज़ कौन! इसलिए दादा आपका सेवक हूँ। आजकल USA प्रवास पर हैं। उन्होंने एक शानदार पोस्ट कहीं से कॉपी पेस्ट कर शेयर की है। आप भी पढ़ें और इस पर मनन करें-
“जीवन में उन्मूलन के चार चरण!
- 60 की उम्र में कार्यस्थल आपको ख़त्म कर देता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप अपने करियर के दौरान कितने सफल या शक्तिशाली थे, आप एक सामान्य व्यक्ति बनकर लौटेंगे। इसलिए, अपनी पिछली नौकरी की मानसिकता और श्रेष्ठता की भावना से चिपके न रहें, अपने अहंकार को त्यागें, अन्यथा आप सहजता की भावना खो सकते हैं!
- 70 की उम्र में समाज धीरे-धीरे आपको ख़त्म कर देता है। जिन मित्रों और सहकर्मियों से आप मिलते और मेलजोल रखते थे, वे कम हो गए हैं और आपके पूर्व कार्यस्थल पर शायद ही कोई आपको पहचानता हो। यह मत कहो, “मैं हुआ करता था…” या “मैं कभी था…” क्योंकि युवा पीढ़ी आपको नहीं जानती होगी, और आपको इसके बारे में असहज महसूस नहीं करना चाहिए!
- 80 की उम्र में परिवार धीरे-धीरे आपको ख़त्म कर देता है। भले ही आपके कई बच्चे और पोते-पोतियाँ हों, अधिकांश समय आप अपने जीवनसाथी के साथ या अकेले ही रहेंगे। जब आपके बच्चे कभी-कभार आते हैं, तो यह स्नेह की अभिव्यक्ति है, इसलिए उन्हें कम आने के लिए दोष न दें, क्योंकि वे अपने जीवन में व्यस्त हैं!
- 90 की उम्र में, पृथ्वी तुम्हें ख़त्म करना चाहती है। जिन लोगों को आप जानते थे उनमें से कुछ पहले ही हमेशा के लिए चले गए हैं। इस बिंदु पर, दुखी या शोकाकुल न हों, क्योंकि यही जीवन का मार्ग है, और हर कोई अंततः इसी मार्ग का अनुसरण करेगा!
इसलिए, जबकि हमारा शरीर अभी भी सक्षम है, जीवन को भरपूर जियो! जो चाहो खाओ, जो चाहो पीओ, खेलो और वो काम करो जो तुम्हें पसंद है।
याद रखें, एकमात्र चीज़ जो आपको ख़त्म नहीं करेगी वह है व्हाट्सएपग्रुप, फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्वीटर। इसलिए, समूह में अधिक संवाद करें, नमस्ते कहें, अपनी उपस्थिति बनाए रखें, खुश रहें और कोई पछतावा न करें!
ये सब नीति वचन मेरे मामा जी ने मुझे व्हाट्सअप किया था। मामाजी भी 80 के करीब होंगे। बीएसएनएल में आलादर्जे के अधिकारी रहे हैं। मुझे अच्छा लगा तो मैने सोचा अन्य प्रबुद्धजनों तक ये बात पढ़ा दी जाए।
अनिल भास्कर-
आजकल मोबाइल पर खूब कॉल आती है। सुबह से रात तक कम से कम भी तो पचास। कोई क्रेडिट कार्ड का ऑफर देता है तो कोई सस्ती दरों पर लोन का। कोई जेवर में प्लॉट लेने का फायदा समझाता है तो कोई नोएडा एक्सटेंशन या राजनगर एक्सटेंशन में फ्लैट खरीदने का। बातचीत में दिन कब निकल जाता है पता ही नहीं चलता। दिल लगा रहता है। एक रिटायर्ड आदमी को कोई जानने वाला मतलब के लिए तो फोन करने से रहा। अब न नौकरी के लिए आग्रही कॉल आती है, न छपने-छपाने के लिए सिफारिशी। नेता, अफसर, अपराधी, कारोबारी, समाजसेवी, कलासाधक – सब निस्पृह, निसंग। कमाल देखिए साहब। तीस साल की पत्रकारिता में 17 साल से अधिक बतौर सम्पादक/वरिष्ठ सम्पादक सेवाएं दी। मान, यश, आजीविका सब अर्जित की। मगर अब परिजन भी निखट्टू-निठल्ला समझकर कम ही याद करते हैं। हां, यार-दोस्त जरूर फोनकर कन्फर्म होते रहते हैं कि कहीं वे तेरहवीं के भोज से वंचित तो नहीं रह गए।
खैर, ये जो दिनभर कॉल करते रहते हैं, सच कहूं तो अब यही अपने लगने लगे हैं। कम से कम उन्हें अपन से कोई उम्मीद तो रहती है। पूरे अदब और आत्मीयता से बात तो करते हैं। भरम ही सही, उन्हें लगता तो है कि अपन अब भी काम के हैं। कुछ कर सकते हैं। प्लॉट ले सकते हैं या फ्लैट खरीद सकते हैं। क्रेडिट कार्ड लेकर शॉपिंग पर निकल सकते हैं या लोन लेकर देश-विदेश की यात्रा पर। सच कहूं, तो रोज नए आत्मविश्वास से भरती रहती है ये कॉल। आवाज की बेस बढ़ाकर थोड़ी ऐंठ के साथ जब आखिर में यह कहकर बातचीत खत्म करता हूँ कि यार इस स्कीम या इस प्रोजेक्ट में कोई खास दम नज़र नहीं आ रहा, कोई बेहतर विकल्प आए तो बताना, तो यकीन मानिए भीतर से उसी बुलंदी का अहसास होता है। वैसे ये कॉल बड़ी ज्ञानवर्धक भी होती हैं। बैंक से लेकर बीमा कंपनियों की नई स्कीम समझने, महानगर के भौगोलिक विस्तार की दिशा से लेकर क्षेत्रवार प्रोपर्टी की उपलब्धता और नई दरें जानने, अपनी जेब का सटीक मूल्यांकन करने और उधारी की हैसियत मापने का घर बैठे निःशुल्क अवसर देती हैं ये कॉल। फिर इन्हें अनचाही कैसे कहूं भाई ??