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सुख-दुख

मालकिन हैं ख़फा, नप सकते हैं हिन्दुस्तान उत्तराखण्ड के सबसे ‘फिसड्डी’ संपादक

हिन्दुस्तान उत्तराखण्ड के अच्छे दिन खत्म होने वाले है। दिल्ली प्रबंधन की निगाहें उत्तराखण्ड यूनिट पर तिरछी हो गई हैं। प्रबंधन ने लगभग ढाई साल की जो रिर्पोट तैयार की है उसमें इस यूनिट के एक संपादक  अब तक के सबसे ‘फिसड्डी’ संपादक साबित हुए हैं। उनके कार्यकाल में चुनावों से लेकर उत्तराखण्ड में आई आपदा की कवरेज में अखबार पूरी तरह से फिसड्डी साबित हुआ है। राजस्व कमाने में इस यूनिट ने कम समय में ही झंडे गाढ़ दिए थे लेकिन अखबार के कलेवर को यह पिछले दो वर्षो से बनाए रखने में पूरी तरह से फेल हो गया है। कंन्टेटस के मामले में भी अखबार पूरी तरह से फेल हो साबित हो चुका है।

<p>हिन्दुस्तान उत्तराखण्ड के अच्छे दिन खत्म होने वाले है। दिल्ली प्रबंधन की निगाहें उत्तराखण्ड यूनिट पर तिरछी हो गई हैं। प्रबंधन ने लगभग ढाई साल की जो रिर्पोट तैयार की है उसमें इस यूनिट के एक संपादक  अब तक के सबसे 'फिसड्डी' संपादक साबित हुए हैं। उनके कार्यकाल में चुनावों से लेकर उत्तराखण्ड में आई आपदा की कवरेज में अखबार पूरी तरह से फिसड्डी साबित हुआ है। राजस्व कमाने में इस यूनिट ने कम समय में ही झंडे गाढ़ दिए थे लेकिन अखबार के कलेवर को यह पिछले दो वर्षो से बनाए रखने में पूरी तरह से फेल हो गया है। कंन्टेटस के मामले में भी अखबार पूरी तरह से फेल हो साबित हो चुका है।</p>

हिन्दुस्तान उत्तराखण्ड के अच्छे दिन खत्म होने वाले है। दिल्ली प्रबंधन की निगाहें उत्तराखण्ड यूनिट पर तिरछी हो गई हैं। प्रबंधन ने लगभग ढाई साल की जो रिर्पोट तैयार की है उसमें इस यूनिट के एक संपादक  अब तक के सबसे ‘फिसड्डी’ संपादक साबित हुए हैं। उनके कार्यकाल में चुनावों से लेकर उत्तराखण्ड में आई आपदा की कवरेज में अखबार पूरी तरह से फिसड्डी साबित हुआ है। राजस्व कमाने में इस यूनिट ने कम समय में ही झंडे गाढ़ दिए थे लेकिन अखबार के कलेवर को यह पिछले दो वर्षो से बनाए रखने में पूरी तरह से फेल हो गया है। कंन्टेटस के मामले में भी अखबार पूरी तरह से फेल हो साबित हो चुका है।

जिस अखबार को लोगों ने लांचिंग के साथ ही हाथों-हाथ ले लिया था वह पिछले दो वर्षों से लगातार फिसड्डी होता जा रहा है। बताया तो यहां तक जा रहा है कि सिटी एडिशन का प्रसार सहार से भी कम हो गया है। इसकी गाज अब किसी पर तो गिरेगी ही। संपादक से अखबार की मालकिन बहुत ही ख़फा हैं। पिछले दिनों जब वे बाबा रामदेव के आश्रम में थी तो उन्होंने अखबार को देख कर अपनी भौएं चढ़ा दी थी। उनका गुस्सा किसे सूली पर चढ़ाता है ये आने वाला समय ही बताएगा।

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भड़ास को भेजे गए पत्र पर आधारित।

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0 Comments

  1. raj

    July 7, 2014 at 9:18 am

    😆 kuch bola nahi jaa sakta hai

  2. SHASHI KANT PANDEY

    July 15, 2014 at 8:34 am

    इस संपादक ने सुनील डोभाल ,जिसको अमर उजाला हटाने वाला था उसकी पहले रूडकी फिर हरिद्वार , किया वही कांग्रेस विधायक प्रदीप बत्रा से मॉल मांगने का चलते देहरादन प्रबंधन ने आपत्ति जताई फिर इसको संपादक गिरीश गुरानी ने पुरुस्कार देकर हरिद्वार बुला दिया ,हरिद्वार में खननं में संपादक के इशारे पर खनन में काफी खेल किया , हरिद्वार व रूडकी में भी अख़बार निचे गिरा ..इससे पहले इसने देहरादून से अपने चर्चित चेले राजेंश पाण्डेय को हरिद्वार भेजा था ..पाण्डेय ने भी खूब माल बटोरा व शिकायत पर देहरादून वापस बुला दिया …कुल मिलकर इस संपादक ने इन तीन सालों में जहाँ अख़बार को नीचे गिराया वही अपने आप खूब माल कमाया वही इसके तानाशाही व्यवहार से दुखी होकर लगभग दो दर्जन लोगों ने अख़बार को छोड़ दिया …लोक सभा चुनाव में भी इसने लाखों रुपये बटोरे ….

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