Connect with us

Hi, what are you looking for?

दिल्ली

एचटी प्रबंधन को झटके पे झटका : हाईकोर्ट ने लेबर कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा

नई दिल्ली। देश भर के पाठकों को खबरों से रूबरू कराने वाला हिन्दुस्तान टाइम्स समूह अपने कर्मचारियों से पिछले डेढ दशक से लगातार अत्याचार करने पर उतारू है लेकिन कर्मचारियों की हिम्मत देखिए कि तमाम बाधाओं के बीच अपने अधिकारों के लिए पिछले 15 साल से लड़ रहे हैं. नई खबर ये है कि हिन्दुस्तान टाइम्स समूह प्रबंधन को श्रम न्यायालय की ओर से एक और झटका लगा है. इस वर्ष 1 और 2 फरवरी को 14 कर्मचारियों के भिन्न-भिन्न मामलों में उन्हें पिछले 50 प्रतिशत भुगतान के साथ बहाली के आदेश दिये हैं.

इनमें से तीन कर्मचारी भगवती प्रसाद डोभाल, विजय कुमार अरोड़ा और रमेश कुमार नौटियाल रिटायर हो चुके हैं. इन सभी मामलों में हिन्दुस्तान टाइम्स समूह प्रबंधन ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है. याचिकाओं पर स्टे करते हुए न्यायालय ने श्रम न्यायालय के आदेश के अनुरूप पिछला बकाया भुगतान 4 सप्ताह के भीतर उच्च न्यायालय रजिस्ट्रार जरनल के पास जमा कराने का आदेश दिया है. इसके परिणामस्वरूप प्रबंधन भारी दबाव में है क्योंकि इन कर्मचारियों की बहाली के साथ ही अब मजीठिया वेज बोर्ड का मुद्दा भी जागृत हो गया है. इससे बचने के लिए हिन्दुस्तान टाइम्स समूह की मालकिन शोभना भरतिया और उसके बेटों ने हाईकोर्ट जाकर इसे रुकवाने का प्रपंच रचा था जिसका शीघ्र ही पटाक्षेप होगा.

पाठकों की जानकारी के लिए यह बताना जरूरी है कि हिन्दुस्तान टाइम्स समूह प्रबंधन अपने यहां किसी भी कर्मचारी को मजीठिया वेज बोर्ड के अनुरूप वेतन नहीं दे रहा है जबकि दौलत के बल पर उत्तर प्रदेश सरकार के कई अफसर सुप्रीम कोर्ट में ऐसे दावे कर चुके हैं कि हिन्दुस्तान टाइम्स समूह में मजीठिया वेज बोर्ड लागू है.

Advertisement. Scroll to continue reading.

फरवरी 2019 में दिल्ली की द्वारका कोर्ट ने भगवती प्रसाद, विजय अरोड़ा, रमेश नौटियाल, दिनेश तिवारी, शशिभूषण, राजेश भारद्वाज, कमलेश शुक्ला, रविन्द्र, राजेश्वर, अजय कुमार, विजय एस., शशि पांडेय, सतीश सागर के फेवर में फैसला सुनाते हुए continuity of service के साथ 50 फीसदी बैक वेजिज देने का अवार्ड पास किया. इसे हिंदुस्तान प्रबंधन ने दिल्ली हाईकोर्ट में चैलेंज किया. 15 और 22 जुलाई को दिल्ली हाईकोर्ट ने केस को स्टे कर चार सप्ताह के भीतर 50 फीसदी back wages रजिस्ट्री में जमा करवाने के आदेश हिंदुस्तान टाइम्स समूह अखबार प्रबंधन को दिए हैं.

ज्ञात हो कि अपने कर्मियों के उत्पीड़न का एचटी ग्रुप का इतिहास बहुत पुराना है. वर्ष 2004 में महात्मा गांधी की ज्यंती पर एक ही झटके में हिन्दुस्तान टाइम्स समूह ने अपने 362 कर्मचारियों को बिना किसी पूर्व सूचना के अन्यायपूर्ण एवं बलपूर्वक नौकरी से बाहर कर दिया था. इसके बाद कर्मचारियों का मनोबल तोड़ने के लिए कुछ से समझौता करके डरा-धमका कर औने-पौने दाम में निपटा दिया गया लेकिन 272 लोगों ने हिन्दुस्तान टाइम्स समूह की मालकिन शोभना भरतिया से लड़ने की ठानी और वकीलों की भारी-भरकम फौज के बावजूद वह कर्मचारियों का मनोबल नहीं तोड़ सकी.

जनवरी 2012 में आयता राम एवं अन्य बनाम हिन्दुस्तान टाइम्स लिमिटेड व अन्य मामले में इन कर्मचारियों की जीत हुई और फैसला पक्ष में आया लेकिन शोभना भरतिया और उसके दोनों बेटे कोर्ट के आदेश के बावजूद उन्हें उनका अधिकार और नौकरी न देने पर अडिग थे. जीत के बावजूद इन कर्मचारियों को वकीलों और दौलत के बल पर जिला अदालत से लेकर उच्चतम न्यायालय तक घुमाया लेकिन अंतत: इस वर्ष 2019 जनवरी में दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश से उन्हें नौकरी पर रखने का आदेश दिया तथा तुरंत पिछला भुगतान देने का आदेश हुआ. उच्चतम न्यायालय तक हार के बाद अंतत: हिन्दुस्तान टाइम्स प्रबंधन ने कर्मचारियों का पिछला भुगतान करीब 14 करोड़ दिया लेकिन उन्हें यह भुगतान 2004 के हिसाब से दिया गया जबकि उच्च न्यायालय ने सभी की नौकरी को कन्टीन्यू मानते हुए बढ़ते क्रम में देने का आदेश दिया था.

Advertisement. Scroll to continue reading.

मामला न्यायालय में है और अगले दो माह के भीतर इसपर भी पूरा भुगतान करने का आदेश करने के लिए उच्च न्यायालय आदेश पारित कर चुका है लेकिन हिन्दुस्तान टाइम्स समूह की मालकिन शोभना भरतिया समूह को गर्त में धकेलने पर उतारू है. उच्चतम न्यायालय तक हार के बावजूद इन कर्मचारियों को बाहरी दिल्ली के कादीपुर गांव स्थित एक खाली प्लॉट में बिना किसी काम के जानवरों की भांति बैठा दिया गया था और तंग करने के उद्देश्य से बिना किसी काम के दो शिफ्टों में ड्यूटी लगाई गई है. कर्मचारियों को वर्ष 2004 के हिसाब से तनख्वाह दी जा रही है और इन कर्मचारियों से गुलामों की तरह व्यवहार किया जा रहा है. जरा-जरा सी बात पर धमकी, मूल सुविधाओं के बिना जानवरों की भांति बाड़े में रखा जा रहा है.

असल में शोभना भरतिया और उसके बेटों को यकीन था कि वह पैसों और मीडिया के दबदबे के कारण न्यायपालिका को भी खरीद लेंगे लेकिन यहां वह मात खा गये. असल में हिन्दुस्तान टाइम्स समूह प्रबंधन व्यवस्था की खामियों से भलीभांति परिचित है जिसके दम पर वह कर्मचारियों से पिछले डेढ दशकों से खिलवाड़ करता आ रहा है. दरअसल राजनीतिज्ञों और उनकी औकात से वह भलीभांति परिचित है. इसी दौलत और मीडिया की हनक के कारण कभी के. के. बिरला और शोभना भरतिया राज्यसभा की शोभा बन चुके हैं और राजनेताओं के चरित्र को भलीभांति जानते हैं कि उन्हें कैसे अपने साथ मिलाया जाता है और फिर कैसे गैर कानूनी काम को भी अमली जामा पहनाया जाता है.

Advertisement. Scroll to continue reading.

जिस पनामा पेपर्स और काले धन को विदेशी रूट से सफेद करने पर दूसरी कम्पनियों की खूब चर्चा 2017-2018 में हुई थी उसमें शोभना भरतिया की कम्पनियों के भी नाम आये थे और इंडियन एक्सप्रेस समूह ने उसे छापा था लेकिन मजाल है कि कभी शोभना भरतिया की कम्पनियों की छापेमारी तो दूर उनका ऑडिट भी करवाया गया हो. पनामा पेपर्स में नाम आने के बाद शोभना भरतिया ने पलटी मारते हुए श्री नामधन्य अरूण जेटली (जो हिन्दुस्तान टाइम्स के वकील के तौर पर भी काम करते रहे हैं) के जरिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक सीधी पहुंच बनाई और पनामा पेपर्स धरे के धरे रह गये और वह कम्पनियां भी कहीं खो गईं या मर्ज कर दी गईं और आयकर, कम्पनी कानून और डीआरआई से लेकर एनआईए सब दुबक गये. दो-चार और 10-12 लाख के विदेशी धन के इस्तेमाल और दुरूपयोग के मामले में जहां मोदी सरकार की पूरी मशीनरी दिल्ली से मुम्बई तक खाक छानती है वह शोभना भरतिया की कम्पनियों के कई सौ करोड़ के मामलों में नोटिस तक जारी नहीं करती, इससे शोभना भरतिया एण्ड कम्पनी के रसूख का पता चलता है. समूह प्रबंधन दावा करता है कि न्यायपालिका में भी उनका दबदबा है और उनका कुछ नहीं बिगड़ने वाला.

निकाले गये कर्मचारियों को लेकर अब दबाव इतना बढ़ गया है कि कभी किसी को चेन्नई, किसी को बंगलौर, किसी को कलकत्ता को किसी को सिरसा और अमृतसर न्यूज एजेंसियों तथा न्यूज सप्लायरों के यहां ट्रांसफर के लैटर दिये जा रहे हैं ताकि न जाने वालों के खिलाफ झूठे आरोपों के तहत उन्हें एक-एक कर निकाला जाए. कई कर्मचारी दिये गये पतों पर पहुंचे तो पता चला कि वहां कोई न्यूज या बुक सप्लायर या न्यूज एजेंसी की दुकान है और वहां न तो कोई सूचना है और न जगह और यह सब एक कंट्रैक्ट के तहत कम्पनी से जुड़े हैं और उनका इससे ज्यादा कोई लिंक नहीं है. उन्हें एडवरटाईसिंग और न्यूजपेपर्स सप्लाई के लिए कमीशन मिलता है. इसी प्रकार के शोषण के कारण गत 2 अगस्त को बाहरी दिल्ली में बनाए गए बाड़े में ऱखे गए एक सताए हुए कर्मचारी रमेश कुमार की मौत हो गई क्योंकि उसे समय पर पीने का पानी तर नहीं मिल सका और न ही प्राथमिक उपचार, जिससे उसके परिवार पर कहर टूट पड़ा. अब परिवार प्रबंधन से लड़ाई लड़ेगा या पालन पोषण की चिंता. मामला अभी एक्सीक्यूशन कोर्ट में है और यह सारा मामला उनके संज्ञान में है और उच्च न्यायालय ने हाल ही में संबंधित न्यायालय के छूट दी है कि यदि कोई वादी या प्रतिवादी उसके आदेश को नहीं मानता है तो उसके खिलाफ आदेश पारित किया जा सकता है.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement