Sanjaya Kumar Singh-
देश के प्रतिभाशली मंत्रियों में एक, सरकार के संकट मोचक, कानून और आईटी मंत्री “सिविल ह्यूमर” की परिभाषा और उसका उल्लंघन करने वालों पर राजद्रोह नहीं लगेगा – इतना भर सुनिश्चित कर दें तो इतिहास में दर्ज हो जाएंगे।
लेकिन वंशवाद का विरोध करने ने वाली पार्टी में शामिल कैसे और कब हुए आप जानते हों तो समझ जाएंगे कि वे नहीं कर सकते हैं। मैं यह मजाक में नहीं, गंभीरता से कह रहा हूं। चुनौती है – तय कर दें। कुछ भी बोल देने और काम करने में फर्क होता है।
Mamta Malhar-
एक कार्टून हज़ार शब्दों के बराबर होता है। फिर मंजुल ने तो चार बना दिये। फिलहाल कार्टून के कारण मंजुल को नौकरी से निकाल दिया गया है? क्या मीडिया समूह के सम्पादकों को यह अंदेशा नहीं होगा? यह तो हुआ कार्टूनिस्ट का मामला। आमतौर पर रिपोर्ट्स के साथ ये होता है वे बहुत मेहनत करके खोजी खबर लाते हैं कई बार बकायदा असाइनमेंट देकर खबर करवाई जाती है। खबर छप जाती है। नोटिस मिलता है पत्रकार संस्थान से बाहर। फिर बड़े स्तर पर बैठे संस्थान के अधिकारियों और उनके बीच जिनकी खबर होती है समझौते होते हैं बात खत्म।
एक अखबार तो बकायदा अपने हेड ऑफिस बुलाकर पत्रकारों को नौकरी से निकालता है। सवाल उठता है इस सबमें पत्रकार या कार्टूनिस्ट कहाँ गलत है? एक कार्टून एक खबर छपने से पहले कई आंखों हाथों और प्रक्रियाओं से होकर गुजरता है फिर छपता है। ऐसा नहीं होता कि कार्टूनिस्ट ने कार्टून बनाया रिपोर्टर ने खबर लिखी और छप गई। कोई रॉकेट साइंस नहीं है मंजुल को क्यों निकाला गया? आप तो मालिकों के हित, उनकी कमाई के जरीये और सरकार से सांठगांठ की प्रक्रिया पर गौर करिये बस। हमेशा से होता आ रहा है। अब खुलेआम है फर्क बस इतना आ गया है।