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सुख-दुख

चौराहे पर नाचती लड़की और हमारा क़ानून!

संजय वर्मा-

डाका तो नहीं डाला! इंदौर में एक चौराहे के ज़ेब्रा क्रॉसिंग पर एक लड़की ने एक छोटा सा डांस किया । डांस के दौरान लाइट रेड थी । यानि उस दौरान ज़ेब्रा क्रासिंग लोगों के पैदल जाने के लिए खुली थी । लड़की ने पैदल चलने के बजाय उस दौरान वहां एक छोटा सा डांस कर दिया । लड़की का कहना है कि वह लोगों को यह समझाने के लिए कर रही थी कि रेड लाइट के दौरान चौराहा पार नहीं करें। लोगों को उसकी यह हरकत नागवार गुजरी। आखिरकार उस पर पुलिस ने आपराधिक मुकदमा दर्ज कर दिया । लोगों का कहना है उसका इरादा भले ही सही हो लेकिन कानून के लिहाज़ से वह गलत है।

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हम इस घटना और उस पर समाज ,सरकार की प्रतिक्रिया को कैसे समझें ! इस घटना से पहला निष्कर्ष तो यह निकलता है कि हम अचानक एक ऐसे समाज में बदल गए हैं जो कानून की बहुत इज्जत करता है और हर कीमत पर उसकी रखवाली करना चाहता है । दूसरा यह कि हमने तमाम कानूनी समस्याएं जैसे चोरी डाका बलात्कार हत्या आदि सब सुलझा ली हैं और अब हमारे पास इतना समय बच रहता है कि छोटे मोटे मामले भी ठीक करने के लिए अपनी पुलिस को लगा सकते हैं । तीसरा अब धार्मिक जुलूस सियासी रैलियां ने ट्रैफिक बिगड़ना बिल्कुल बन्द कर दिया है इसलिए यदि किसी घटना से टैफिक प्रभावित होने की ज़रा सी आशंका हो तो उसे खत्म करना ज़रूरी है ।

चौथा अधबनी पुलियाओं , तीखे ढलान ,अंधे मोड़ , गड्ढे वाली सड़कों की वजह से होने वाली दुर्घटनाओं पर काबू पा लिया गया है बस चौराहे पर लोगों का ध्यान भटकाने से रोकना है ।
और पांचवा और सबसे महत्वपूर्ण सबक – अब अपराध और शरारत के बीच फर्क को मानने से हम इंकार करते हैं ।

उदास और तन्हा होती जा रही इस दुनिया में एक लड़की मासूम सी शरारत करती है और हम उस पर लट्ठ लेकर पिल पड़ते हैं ! अजीब बात है ! उस लड़की ने किसी का दिल नहीं दुखाया , चोरी नहीं की , डाका नहीं डाला किसी को परेशान नहीं किया । अगर यह मान भी लें कि ऐसा उसने सोशल मीडिया पर शोहरत पाने के लिए किया तब भी यह अपराध नहीं शरारत है । मगर हम एक समाज के बतौर कितने रुखे और चिड़चिड़े हो गए हैं कि एक लड़की की मासूम शरारत से किसी खूसट बुड्ढे की तरह चिढ़ गए , और उसे सबक सिखाने लगे । शायद हम सबको तुरन्त एक जादू की झप्पी की सख्त जरूरत है ।

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इस तरह की छोटी-छोटी घटनाओं से समाज की सेहत और आने वाले दिनों के बारे में महत्वपूर्ण संकेत मिलते हैं । घटनाएं अपने आप में अकेले नहीं होती वे एक सिलसिले से जुड़ी होती हैं । एक समाज जब किसी लड़की के डांस पर इतना बौखलाने लगता है तो उस समाज से हंसना , बोलना , नाचना गाना , शरारतें सब कुछ धीरे-धीरे कम हो जाता है ।

एक किस्सा है – चीन में माओ नाम के शासक ने 1945 में एक हुक्म दिया कि सब चिड़ियों को मार डाला जाए । ये बहुत सारा अनाज खा जाती है । लोग चिड़ियों को मारने निकल पड़े । इतिहासकारों का मानना है कि उस दौरान लाखों चिड़ियों को मारा गया । इसके बाद एक अजीब बात हुई। चीन में लगातार तीन साल अकाल पड़ा। लाखों लोग भूखे मर गए । यहां तक कि लोगों ने एक दूसरे को भी काट कर खाया । वैज्ञानिकों ने बाद में बताया कि यह सब चिड़ियों को मारने की वजह से हुआ । कुदरत ने चिड़ियों के जिम्मे कुछ काम छोड़ रखे थे , जो नहीं हुए तो कुदरत का कारोबार ढह गया ।

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हम ठीक से नहीं जानते कि किस चीज के होने से और उससे भी ज्यादा नहीं होने से क्या से क्या हो जाता है ! कानून का पालन करना अच्छी बात है मगर इतना भी दूर मत चले जाइए , कि लोग हंसना खेलना मुस्कुराना भूल जाऐं , शरारतों के लिए अपने दिल में थोड़ी जगह रखिये दोस्तों । बच्चों को ( और खास तौर पर बच्चियों को ) नाचने दीजिए । ये नहीं नाचेंगे तो पता नहीं क्या हो ? हो सकता है फूल खिलना बंद हो जाऐं , तितलियां पंख फड़फड़ाना बंद कर दें , खेतों में सरसों उगना बंद हो जाए , क्या पता चांद सितारे भी निकलने से इंकार कर दें… । क्या पता !

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