अवधेश कुमार-
आईएमए यानी इंडियन मेडिकल एसोसिएशन स्वामी रामदेव के खिलाफ मोर्चाबंदी कर रहा था लेकिन ठंडा पड़ गया। अब उसने नया मोर्चा डॉ विश्वरूप राय चौधरी के विरुद्ध खोल दिया। मुझे जानकारी मिली है कि डॉ विश्वरूप राय चौधरी किडनी के मरीजों को प्राकृतिक उपचारों से ठीक कर उसका वीडियो जारी कर रहे हैं। उसमें अनेक मरीज ठीक हो गए हैं।
आईएमए कह रहा है कि उनके सारे वीडियो, सोशल मीडिया आदि पर उनके विचार, लेख, प्रचार सब प्रतिबंधित किए जाएं तथा उनके खिलाफ कार्रवाई हो क्योंकि वह अवैज्ञानिक बातें कर रहे हैं।
डॉ चौधरी ने आईएमए को चुनौती दी है कि आए उन्हें गलत साबित करे। 30 नवंबर का दिन उन्होंने चुना है जिस दिन वे उनकी चिकित्सा से ठीक हुए ऐसे मरीजों को सामने रखेंगे जो डायलिसिस पर थे और आज उनको किसी प्रकार की चिकित्सा की जरूरत नहीं है।
डॉ विश्वरूप राय चौधरी ने यह भी कहा है कि मैंने भारी संख्या में लोगों के डायबिटीज ठीक किया है जबकि एलोपेड डॉक्टर एक भी प्रमाण ले आए कि किसी का डायबिटीज उन्होंने ठीक कर दिया हो। मैं डॉ विश्वरूप राय चौधरी से परिचित नहीं हूं। मेरे कई मित्र उनसे परिचित हैं। यह एक अच्छी लड़ाई है ताकि देश को पता चले कि एलोपैथ की सीमाएं क्या है।
हर पैथी की कुछ विशेषताएं हैं लेकिन किसी को यह दावा नहीं करना चाहिए कि वही वैज्ञानिक है या उसी के पास संपूर्ण रोगों के उपचार का एकाधिकार सुरक्षित है। अगर मरीज ठीक हो रहे हैं तो वह वैज्ञानिक और अवैज्ञानिक की परिभाषा में क्यों पड़ेगा? आइएमए डॉ विश्वरूप चौधरी का सामना करे।
संत समीर-
स्वामी रामदेव से पङ्गेबाज़ी कुछ ठण्डी पड़ गई है, पर इण्डियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) को अब जाकर शायद सही चुनौती मिली है। आने वाले 30 नवम्बर को आईएमए का भाण्डा ठीक-ठाक ढङ्ग से फूट सकता है। यह बात ज़रूर है कि तथाकथित मुख्य धारा का मीडिया यह दिखाने की शायद ही कोशिश करे कि डॉक्टरों के इस कुनबे की भद्द कैसे पिटी, क्योंकि इन दोनों के धन के स्रोत एक-से हैं। आईएमए कहने के लिए तो सेहत को समर्पित संस्था है, जिससे देश के एलोपैथी के लाखों डॉक्टर जुड़े हैं, पर पैसा मिल जाए तो यह संस्था यह भी सलाह देने लगती है कि आप साबुन, तेल, जूस कौन-से इस्तेमाल करें। यहाँ तक कि यह आपको यह भी सलाह देती मिल जाएगी कि आप अपने घर में क्रॉम्पटन बल्ब लगाएँ। ऐसी सलाहों के लिए करोड़ों रुपये मिलते हैं।
आईएमए के दिल्ली दफ़्तर में कई साल पहले मैं अक्सर जाया करता था। कुछ लोगों से अच्छा परिचय हो गया था। पिछले साल जब मेरा कोरोना के मसले पर पहला ही वीडियो वायरल हुआ और एक हफ़्ते बाद ही उसे डिलीट करके पूरे चैनल को ही आगे बढ़ने से रोक दिया गया, तो पता चला था कि आईएमए से जुड़े लोग ही मेरा वीडियो देखकर बौखलाए थे और शुरुआत में ही मेरी आवाज़ दबाने की साज़िश रची थी और वे इसमें काफ़ी हद तक सफल रहे थे। ख़ैर…
नई घटना यह हुई है कि पिछले दिनों डॉ. बिस्वरूप रॉय चौधरी ने किडनी को ठीक करने के लिए बिना ज़्यादा पैसा ख़र्च किए और घर में ही रहकर प्राकृतिक ढङ्ग से डायलिसिस करने का आसान तरीक़ा समझा दिया। इस तरीक़े से किडनी ट्रांसप्लाण्ट की ज़रूरत ख़त्म हो जाती है और मरीज़ कुछ दिनों में पूरी तरह ठीक हो जाता है, जबकि अस्पतालों की डायलिसिस ज़िन्दगी को नर्क बनाकर रखती है। सोचिए कि लोग घरों में बैठकर बरबाद होती अपनी किडनी को बचाने में कामयाब होने लगें तो क्या होगा! ग़रीब आदमी का घर-बार बिकने से बच जाएगा, पर एक लाख करोड़ से ज़्यादा का डायलिसिस का धन्धा तबाह हो जाएगा। सो, इण्डियन मेडिकल एसोसिएशन बौखला गया। फटाफट थाने में जाकर शिकायत दर्ज करवाई कि डॉ. बिस्वरूप की वेबसाइट, किताबें, वीडियो वग़ैरह पर पाबन्दी लगाई जाए और उन्हें जनता के बीच प्रचारित होने से रोका जाए, क्योंकि वे गम्भीर बीमारियों का अवैज्ञानिक इलाज कर रहे हैं। कमाल, जैसे विज्ञान का ठेका भगवान ने इन्हीं को दे रखा है। सोचने की बात है कि जिस इलाज से मरीज़ पूरी तरह ठीक हो जाए और दवा की ज़रूरत समाप्त हो जाए, वह वैज्ञानिक है या जिस इलाज के तरीक़े में ज़िन्दगी भर दवाइयाँ खानी पड़ें और और अन्ततः दस-बीस दुष्प्रभाव और झेलने पड़ें, वह वैज्ञानिक है? यह भी याद रखना चाहिए कि मशीनी डायलिसिस अन्ततः आपकी आयु घटा देती है।
फिलहाल, डॉ. बिस्वरूप रॉय ने खुली चुनौती दी है कि 30 नवम्बर को इण्डियन मेडिकल एसोसिएशन वाले लोग सामने आएँ और सार्वजिनक बहस में अपनी बात को साबित करें। बिस्वरूप ने खुले रूप में कहा है कि मीडिया और आईएमए वालों में हिम्मत हो तो वे उनके अस्पताल में जाएँ और डायलिसिस वाले मरीज़ों को प्राकृतिक उपायों से ठीक होते हुए देखें। बिस्वरूप ने यह भी कहा है कि वे ख़ुद एक लाख ऐसे मरीज़ों का प्रमाण लाइव देने को तैयार हैं, जिनकी डायबिटीज़ प्राकृतिक उपायों से पूरी तरह ठीक हो चुकी है, पर अगर लाखों एलोपैथी डॉक्टरों ने मिलकर भी आज तक किसी एक डायबिटीज़ के मरीज़ को पूरी तरह ठीक कर दिया हो तो वे उसका प्रमाण दें। बिस्वरूप की जिन डिग्रियों को मीडिया के साथ मिलकर एलोपैथ वालों ने फर्ज़ी प्रचारित करने की कोशिश की है, उनकी भी मूल कॉपियाँ वे सार्वजनिक करेंगे और आईएमए वालों को चुनौती देंगे कि वे उन्हें झूठा साबित करें। 30 नवम्बर का दिन सोच-विचार कर चुना गया है। यह राजीव दीक्षित का जन्मदिन है। राजीव दीक्षित के नाम से ही आईएमए के आधे प्राण निकल जाते हैं, क्योंकि एलोपैथी चिकित्सा विज्ञान की विसङ्गतियों को राजीव जी ने ही सबसे पहले प्रभावी तरीक़े से उजागर किया था।
एक और अच्छी बात हुई है, जिस पर मैं लिखता ही रहा हूँ और जो मेरी इच्छा के अनुकूल है। बिस्वरूप और उनके लोगों से जब-जब मेरी बात-मुलाक़ात हुई, तब-तब मेरी यही सलाह थी कि देश में सारी पैथियों की निरापद और उपयोगी बातों को मिलाकर सम्पूर्ण स्वास्थ्य का कोई केन्द्र बनाने की ज़रूरत है। वैकल्पिक चिकित्सा पर काम कर रहे देश के तमाम लोगों से भी मैंने और मेरे समानधर्मा कुछ लोगों ने इस बाबत सम्पर्क किया, तो अब जाकर बात बनती दिखाई दे रही है। फिलहाल एलोपैथी, आयुर्वेद, होम्योपैथी और प्राकृतिक चिकित्सा के लोगों ने एक साथ मिलकर चण्डीगढ़ में पहला शानदार अस्पताल हिम्स (HIIMS) नाम से खोला है। डॉ. बिस्वरूप और आचार्य मनीष वग़ैरह ने देश भर में ऐसे सौ अस्पताल खोलने की योजना बनाई है। ये सक्षम लोग हैं। मेरे जैसे लोग परदे के पीछे रहकर बस सलाह देने वाली भूमिका निभा सकते हैं। मैं डिग्रीधारी डॉक्टर नहीं हूँ, डॉक्टर वे लोग हैं तो उन्हें आगे बढ़कर काम करना चाहिए, जो वे कर रहे हैं। एक और योजना मेरे मन में है, कोशिश चल रही है, अगर बात आगे बढ़ी तो शायद सबसे बड़ा काम वही होगा।