इंडिया न्यूज चैनल से खबर है कि PCR डिपार्टमेंट के 17 लोग चार महीने से सैलरी नहीं मिलने के कारण वाक आउट कर गए हैं. मैनेजमेंट के लोगों ने तत्काल कुछ PCR के बेरोजगार लोगों को बाहर से बुला लिया और अपना काम शुरू कर दिया.
आजकल रोज़ अलग अलग चैनलों, वेबसाइटों, अख़बारों से दुखी करने वाली ख़बरें आती रहती हैं। फलाने जगह इतने लोगों को नौकरी से हटा दिया गया। फलाने जगह इतने लोगों की सैलरी इतनी काट ली गई। इस तरह की ख़बरें कुछ आलोचनात्मक वेबसाइटों पर पब्लिश होती है। कुछ दिन फेसबुक पर तैरता है। लाइक, कमेंट, रिशेयर वाला सिलसिला चलता है। बस कहानी खत्म।
वैश्विक कोरोना महामारी और उससे लाकडाउन की आई स्थिति ने सबकुछ तहस नहस कर दिया। छोटे मझोले कामधंधे चौपट हो गए। कई अच्छी खासी कंपनियों से कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया गया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, देशभर में अब तक सभी क्षेत्रों से कुल 12 करोड़ लोग बेरोजगार हुए हैं। कारण कोरोना-लाकडाउन और उससे आए आर्थिक संकट को बताया गया। जहां तहां जिन कंपनियों में कर्मियों को नहीं हटाया गया, वहां के कर्मचारी रोज़ डर डर कर काम कर रहे हैं। एक कोरोना से दूसरी नौकरी के जाने से। कंपनियां भी इस डर के माहौल में सैलरी कटाई कर रही है, और शोषण अलग से।
चलिए, ये तो रहा अब तक कोरोना-लाकडाउन और उससे आई आर्थिक संकट की बात। अब बढ़ते हैं आगे।
जो मीडिया संस्थान इस आर्थिक संकट में सभी कारणों का हवाला देकर छंटनी कर रहे हैं, सैलरी काट रहे हैं, सैलरी नहीं दे पा रहे हैं, ये कारण कुछ समझ आता है। हालात ही इस कद़र हैं। लेकिन एक ऐसा मीडिया ग्रुप है, जो कोरोना संकट से पहले से ही पैसों की किल्लत से जूझ रहा है। इस संस्थान की असल समस्या क्या है, वो भलीभांति मैं नहीं जानता।
इस संस्थान का नाम है इंडिया न्यूज़। पिछले कई महीनों से सिलसिलेवार तरीके से आए दिन इस चैनल को लेकर तरह तरह की खबरें आती रहती है। आज भी आई। इंडिया न्यूज़ चैनल के पीसीआर डिपार्टमेंट में काम करने वाले एक मित्र का फोन आया। उसने बताया कि उसके डिपार्टमेंट के सभी लोगों को तीन चार महीने से सैलरी नहीं मिली। डिपार्टमेंट में कुल 17 लोग हैं। सभी लोग इसी आस में रोज़ आफिस अब तक जाते रहे कि अब उनकी सैलरी आ जाएगी, अब उनकी सैलरी आ जाएगी। ऐसा करते करते दिन महीने बीतते गए। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उल्टा वे सभी फंसते चले गए।
कुछ लोग जो आउटपुट/इनपुट और दूसरे डिपार्टमेंट में थे, वे सैलरी न मिलने के कारण और बिना सैलरी लिए नौकरी छोड़कर चले गए।
आखिर में अब जब कोरोना का कहर और लाकडाउन है, ऐसे में हम लोगों से और सहन नहीं हुआ। पाई पाई को मोहताज़ और कोरोना के खौफ़ में ज़ी रहे हम 17 लोगों ने वाकआउट करने का सोचा। लेकिन इससे पहले सभी लोगों ने मिलकर एकबार PCR हेड को अपनी परेशानी बताई। सभी लोगों ने मिलकर उनसे अपनी सैलरी का कुछ अंश दिलाने को कहा। PCR HOD ने कुछ नहीं किया। स्पष्ट तौर पर कुछ नहीं कहा। आखिर में हम 17 लोगों ने फैसला किया कि जब तक चैनल उनकी पुरानी सैलरी नहीं दे देता, तब तक हम लोग काम नहीं करेंगे।
फिर इसमें भी यहां इंडिया न्यूज़ चैनल की कमीनगी देखिए। जैसे ही उनको भनक लगी कि 17 लोगों ने ग्रुपिंग करके आगे से काम न करने का फैसला किया है, उन्होंने तत्काल बाहर से अस्थायी तौर पर कुछ PCR के लोगों को बुला लिया। अब सवाल यहां यह उठता है कि जो लोग इस वक़्त अस्थायी या स्थायी तौर पर एक ऐसे चैनल से जुड़े हैं, जहां चार महीने से सैलरी नहीं आ रही, वो क्या सोचकर इस चैनल से जुड़े हैं? चैनल ने उन नए कर्मियों को कहां तक आश्वस्त किया या वो सबकुछ जानते हुए भी काम करने को तैयार हो गए?
जो लोग अस्थायी या स्थायी तौर पर सबकुछ जानते हुए चैनल से जुड़े हैं, क्या वो सही कर रहे हैं? क्या उन लोगों ने पुराने लोगों के पेट पर लात नहीं मारी? जब इस चैनल के पास अपने पुराने कर्मियों के पैसे देने को फूटी कौड़ी नहीं है, तो ऐसे में नए कर्मियों के लिए उनके पास अलाद्दीन का चिराग़ लग गया है?
एक मीडियाकर्मी द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.