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तीन महीने हो गए, इंडिया न्यूज में कर्मचारियों की सेलरी नहीं आयी!

बिना सेलरी इंडिया न्यूज वाले कर्मचारी क्या करेंगे… खुदकुशी या दंगा?

हम पत्रकार हैं। सच बताते हैं, सवाल उठाते हैं, सत्ता और समाज को हक़ीक़त का आईना दिखाते हैं। पीड़ित, शोषित और वंचितों के हक़ की आवाज बुलंद करते हैं। मगर जब सत्ता या संस्थान हमें शिकार बनाने लगे, शोषण की सीमाएं पार करने लगे, ज़िंदगी त्रासदपूर्ण बना दे, अपने हित साधने के लिए हमे कंगाल बनाकर भविष्य डुबाने का डर दिखाने लगे तो हम, हमारी बिरादरी और हमारे हितों की पूर्ति के लिए बनी संस्थाएं मौन और तमाशबीन क्यों हो जाती हैं?

क्यों नहीं इस पर बहस होती? क्यों पेशे को ही दुर्भाग्यपूर्ण बताकर इसे देश मे प्रतिष्ठित करने वाले पुरोधा भी पूंजीवाद की पीड़ा मात्र बताकर दूसरे रास्ते की तलाश या वक़्त का इंतज़ार करने का मश्विरा देने लगते है?

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ये सवाल मेरे मन में INDIA NEWS में कार्यरत कर्मचारियों की हालत से उपजे हैं। जिनका जवाब मैं पत्रकार और संपादक समाज के साथ ही सरकार और व्यवस्था से भी चाहता हूं।

तीन महीने हो गए इंडिया न्यूज में कर्मचारियों की सैलरी नहीं आयी। ना ही नौ हजार रुपये कमाने वाले ड्राइवर और चपरासी की ना ही हज़ारों, लाखों कमाने वाले पत्रकारों और संपादकों की। कोई मकान मालिक के तगादे से परेशान है, किसी के बच्चे को स्कूल से फीस के लिए नोटिस मिल चुका है। किसी को EMI की चिंता ने बीमार बना दिया है तो कोई हज़ार पांच हज़ार के कर्ज से अब 10, 20, 50 रुपये के लिए जहां तहां हाथ फैलाने को मजबूर है।

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बताया जाता है कि संस्थान में कोई ऐसा विभाग या अधिकारी नहीं जो आपको ये बताए कि सैलरी क्यों नहीं दी जा रही और कब मिलेगी? अलबत्ता कोई आवाज ना उठाये इसलिये महीने भर में करीब 15 से ज्यादा पत्रकारों को चुटकी बजाकर नौकरी से निकाल दिया गया।

दलील ये कि आपकी प्रतिभा कंपनी की बेहतरी के लिए आवश्यक ज़रूरतों के अनुकूल नहीं। कल से मत आईयेगा। रिजाइन दे दीजिए जब बाकी लोगों की सैलरी आएगी तो आपको भी उतने दिन का मिल जाएगा। तीन महीने तक पाई पाई के लिए तड़पाकर अपनी बेहतरी के नाम पर किसी को अंधेरे कुएं में धकेल देना क्या खुदकुशी के लिए मजबूर करने जैसा अपराध नहीं? और क्या उसे तभी अपराध मानकर आवाज उठाई जाएगी जब कोई आत्मघाती कदम उठा ले?

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जिन पत्रकारों को निकाला गया वो करीब साल भर पहले ही अच्छे संस्थानों से अच्छी भली सम्मानित नौकरी छोड़कर यहां दो पूर्व हो चुके संपादकों और HR के बार बार अनुरोध पर आए थे।क्योंकि कोई यहां आने को तैयार नहीं था। ऐसे में क्या उन पत्रकारों को उचित मुआवजा नहीं मिलना चाहिए?

साल भर में इस संस्थान ने दो संपादकों के भविष्य का भी खून कर दिया। छह साल तक कठोर परिश्रम से जिन दो बड़े चेहरों (दीपक चौरसिया और राणा यशवंत) ने india news को पहचान दिलाई किन्ही कारणों से मालिक ने पिछले साल मार्च अप्रैल में टीम सहित दोनों को बाहर का रास्ता दिखा दिया। इसके बाद पहले प्रलोभन देकर सर्वेश तिवारी को news nation से लाया गया मगर छह महीने में उन्हें भी चलता कर TV9 से रोहित विश्वकर्मा को लाया गया। रोहित को छह महीने हुए भी नहीं कि मालिक उन्हें हटाकर फिर राणा यशवंत को ले आया।

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मालिक बड़े लोग होते हैं, पैसे वाले होते हैं, उनके शौक बड़े होते हैं, रोज गाड़ियां, कपड़े, घड़ी, जूते बदलकर आते हैं। मगर सवाल ये कि क्या पत्रकारों (जीवित इंसान) को भी शौक का निर्जीव साजो सामान समझने वाली सोच पर भी नित्य बौद्धिक व्यायाम करने वाले विमर्शकार और सरकार मौन रहेगी?

संस्थान के प्रति समर्पण का भाव रखने वाले कुछ लोग समझाते हैं कि कुछ मुश्किलें हैं जो देर सबेर दूर हो जाएंगी। मगर मुसीबत तो ये है कि कंपनी में कर्मचारी कल्याण की कोई नीति या प्राथमिकता ही नहीं दिखती। कर्मचारियों के आगे पैसे की कमी का रोना रोया जाता है मगर तीन महीने पहले दर्जनों कारें खरीदी गईं।

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महीने भर पहले ऑफिस को नोएडा से हटाकर दिल्ली की एक भव्य इमारत में शिफ्ट किया गया। वहां मखमली कालीन बिछाए जा रहे हैं। लाखों के सोफा और फर्नीचर लगाए जा रहे हैं। करोड़ों खर्च कर विश्वस्तरीय स्टूडियो बनाया जा रहा है। सबसे बड़े साइज का वीडियो वाल लगाया जा रहा है। सवाल है कि पहले माल्यावादी शौक का पूरा होना जरूरी है या हर रोज अपनी ऊर्जा से संस्थान को गति देनेवाले कर्मचारियों के घर में चूल्हे का जलना?

मालूम है कई लोग इस दर्द को महसूस कर भी चुप हो जाएंगे, कुछ लेबर कोर्ट या मंत्रालय में शिकायत का सुझाव देंगे क्योंकि उनकी क्षमता उतनी ही है।

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मगर सवाल ये कि क्या ऐसे अधर्म के अंत का कोई उपाय नहीं होना चाहिए ताकि सुबह सुबह गुरु मंत्र देने से लेकर मुद्दों का दंगल सजाने, उस पर आर-पार और खबरदार करने के साथ डीएनए बताने वाली कौम अपने वजूद को संकटप्रूफ बना सके?

Arvind Mohan

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[email protected]

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6 Comments

6 Comments

  1. Priya

    March 1, 2020 at 7:58 pm

    Aap ney ye article likh toh deya ..but eska final outcome kya hai?? Kuch nahi?? Jo 3 months sey salary nahi dey rahey unka kya elaz hai ??

    • Shaym Fauzdar

      March 3, 2020 at 12:44 pm

      there is the only way to leave are salary and found new job.

  2. Ganesh kumar pathik

    March 2, 2020 at 9:38 pm

    सिर्फ इंडिया न्यूज़ ही क्यों? यहां तो हर साख पर उल्लू बैठा है। मैं खुद भुक्तभोगी हूं। अमर उजाला वाले पूरे 20 साल तक अपनी जरूरत के हिसाब से कभी बरेली मंडलीय आफिस में रिपोर्टिंग तो कभी एडिटोरियल डेस्क पर काम लेते रहे। बीच-बीच में कंफर्म कर देने का लालीपाप देते हुए कई बार इ़ंटरनल क्वालिफाइंग टेस्ट भी लिये लेकिन चरण वंदना के हुनर से वाकिफ न होने के कारण स्थायित्व प्राप्त नहीं कर सका। छह माह पहले बेसिरपैर के इल्जाम लगाते हुए नौकरी से ही हटा दिया। 56साल की पकी उम्र में अब दूसरी नौकरी भी कहां रखी है। लिहाजा कर्मठता और ईमानदारी की इकलौती पूंजी बटोरकर पिछले छह महीने से घर पर ही बैठा हूं। खेतीबाड़ी या कमाई का कोई दीगर जरिया न होने पत्नी समेत भूखों मरने की नौबत है।

  3. Ganesh kumar pathik

    March 3, 2020 at 7:05 am

    आधुनिक पत्रकारिता मीडिया संस्थान के मालिकाना और उनके द्वारा उच्च पदों पर बैठाए एडिटोरियल मैनेजर के चरणों पर लोट मार रही है। तीन-तीन महीने तक सैलरी न देने और 15 कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा चुके इंडिया न्यूज़ जैसों की आपराधिक मनमानी पर अंकुश का कहीं कोई रास्ता भी नहीं दिख रहा है। मैं खुद भुक्तभोगी हूं अमर उजाला प्रबंधन की तानाशाही का। 20 साल तक रिपोर्टिंग-एडिटिंग का काम लेते रहे। कभी बरेली आफिस में रखा तो सालों तक काशीपुर, बदायूं, लखीमपुर खीरी जिला मुख्यालयों पर रिपोर्टिंग, एडिटिंग का काम करवाया 10 साल तक मीरगंज बरेली तहसील प्रभारी बनाकर ऱखा। विग्यापन भी भरपूर दिलवाए लेकिन कई बार इंटरनल टेस्ट लेने और उनमें बेहतरीन परफार्मेंस दिखाने के बाद भी पादुका चाटने का हुनर न आने की वजह से आज तक कंफर्म नहीं किया गया। सिर्फ ₹11110/-मासिक मानदेय ही दे रहे थे। छह माह पहले कौआ कान ले गया मार्का शिकायतों पर संपादक महोदय ने बगैर मेरा पक्ष पूछे या क्षेत्र में सर्वे कराए बिना ही नौकरी से निकाल दिया। 56 साल की इस पकी उम्र में बगैर अनुभव सर्टिफिकेट के कोई दूसरा संस्थान मुझे नौकरी भी क्यों देगा? खेतीबाड़ी या कमाई का कोई और जरिया न होने के कारण अब तो शायद आत्महत्या के अलावा कोई विकल्प भी नहीं बचा है? आप ही बताइये क्या करूँ?

  4. Koi dukhyara

    March 3, 2020 at 11:34 pm

    Mai 60 Hazar ki Nokri inke behkave me chhod aya abhi tak sirf ek salary mili hai

  5. Puneet

    March 4, 2020 at 2:03 pm

    The ones who are dealing with it..ye unki dikkat hai..unka dard hai..saath koi nhi deta..lekin kuch thos sochiye warna ye sthiti coronavirus se bhi khatarnaak hai..

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