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सवर्णों का कब्जा तो सभी न्यूज चैनलों पर है! ये चार महासभाएं मीडिया को नियंत्रित करती हैं…

Samarendra Singh : बड़ी अजीब सी बात है. एनडीटीवी पर जब भी लिखता हूं तो कुछ फोन जरूर आते हैं. दो-चार लोग दलील देते हैं कि “मेरे जैसे लोगों” द्वारा इस तरह लिखने से संघ मजबूत होता है. एक दो तो टाइमिंग पर भी सवाल खड़ा करते हैं. जैसे मैंने या उन्होंने समय अपने वश में कर लिया हो और मुझे कुछ भी लिखने से पहले “उस सुबह” का इंतजार करना चाहिए! जैसे यह गारंटी हो कि “वो सुबह” जरूर आएगी. यह भी गारंटी हो कि “उस सुबह” को देखने के लिए मैं और वो जिंदा रहेंगे. मान लीजिए कि जब “वो सुबह” आ जाएगी तो ये धूर्त कहेंगे कि अब सब तो बदल गया है, गड़े मुर्दे उखाड़ने से क्या फायदा? मतलब आप न अब लिखो और ना तब लिखो. इनकी राजनीति और इनका धंधा चलने दो. रस्साले!

इन सवर्ण, ब्राह्मणवादी और घनघोर जातिवादी पत्रकारों की सारी थोथी दलीलों पर मुझे हंसी आती है. लगता है कि मूर्खता, जहालत सिर्फ धार्मिक अनुयायियों में ही नहीं है. इन तथाकथित पढ़े लिखे लोगों में भी है. या फिर ये इतने शातिर हैं कि सबकुछ सोझ-समझ कर करते हैं.

दरअसल संघ को हिंदू-मुसलमान से दिक्कत ही नहीं हैं. आप हिंदू-मुसलमान किसी भी रूप में करते रहिए उससे दक्षिणपंथियों को बल मिलता है. संघ को दिक्कत तब होती है जब हिंदू बनाम हिंदू का तर्क आता है. मतलब सवर्ण बनाम अवर्ण का मसला उभरता है. मुसलमानों में पसमांदा मुसलमानों का मसला उभरता है. इससे संघ का नैरेटिव कमजोर होता है. लेकिन एनडीटीवी कभी इस नैरेटिव पर नहीं आता. वो हिंदू बनाम मुसलमान के नैरेटिव पर ध्रुवीकरण की राजनीति का एक ध्रुव बना रहता है. और संघ को बल देता है. इसे ऐसे समझिए कि संघ को कांग्रेस से भी तब तक बहुत दिक्कत नहीं होती है जब तक वो ब्राह्मणवादी विचारधारा को पोषित करती रहे. ये अकारण नहीं हैं कि प्रणब मुखर्जी जैसे घनघोर कांग्रेसी संघ मुख्यालय में जाकर उसकी विचारधारा को पोषित करते हैं. रवीश कुमार जैसे लोग भी पत्रकारिता के प्रणब मुखर्जी ही हैं.

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खैर, एनडीटीवी की आंतरिक संरचना पर बात करते हैं. यह कहना कि एनडीटीवी पर सवर्णों का कब्जा है, एक बेवकूफी भरी बात होगी. क्योंकि सवर्णों का कब्जा तो सभी चैनलों पर है. चार महासभाएं मीडिया को नियंत्रित करती हैं. सबसे ताकतवर ब्राह्मण महासभा है. उसके बाद क्षत्रिय महासभा, भूमिहार महासभा और कायस्थ महासभा है. बाकी तीनों महासभाएं ब्राह्मण महासभा से तालमेल बिठा कर चलती हैं.

जहां तक रवीश कुमार के एनडीटीवी की बात है. उसकी मूल संरचना पूरी तरह से ब्राह्मणवादी है. वहां पर सौ फीसदी एंकर सवर्ण हैं. और सवर्णों में भी साठ फीसदी ब्राह्मण होंगे. मैनेजमेंट में एक मनोरंजन भारती को छोड़ दिया जाए तो कोई भी ओबीसी, दलित और आदिवासी नहीं है. डेस्क पर अपवाद स्वरूप एक-दो ओबीसी हैं. मेरी जानकारी में दलित और आदिवासी तो एक भी नहीं हैं. रिपोर्टिंग में भी एक या दो अपवादों को छोड़ कर ओबीसी, दलित और आदिवासी आपको नजर नहीं आएंगे.

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यहां पर कुछ मुसलमान हैं. लेकिन सभी मुसलमान सैयद, पठान, खान, किदवई … मतलब सभी के सभी सवर्ण हैं. पसमांदा मुसलमान एक भी नजर नहीं आएगा. अब इस घनघोर सामंती और ब्राह्मणवादी और सांप्रदायिक संरचना वाला एनडीटीवी जब हिंदू-मुसलमान करता है तो दरअसल वह उसी राजनीति को बल दे रहा होता है जो राजनीति बीजेपी और संघ को मजबूत करती है. इस चैनल ने कभी भी देश की 80 प्रतिशत आबादी के अधिकारों की लड़ाई नहीं लड़ी. रवीश कुमार की राजनीति भी यही है. वो छठी माई की पूजा करते हैं और उसका प्रदर्शन करते हैं, गीता को कोट करते हैं, इसलिए क्योंकि उन्हें बीजेपी विरोधी सवर्णों का, खासकर ब्राह्मणवादियों का समर्थन चाहिए. उनकी यह रणनीति काम कर रही है. उन्हें समर्थन मिलने लगा है. घनघोर संघी भी जाति के आधार पर उनके समर्थन में आवाज बुलंद कर रहे हैं.

एनडीटीवी में लंबे समय तक कार्यरत रहे वरिष्ठ पत्रकार समरेंद्र सिंह की एफबी वॉल से.

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4 Comments

4 Comments

  1. Santosh Kumar

    April 19, 2020 at 10:08 am

    अगर माई का दूध पीए है तो इस स्थिति के लिए पूंजीपतियों के खिलाफ लिखिए। क्या अगरी जाति के लोगों को पत्रकारिता या नौकरी करने का अधिकार नहीं है । पिछड़ों के दलाल घोटालेबाज नेता के खिलाफ़ क्यों नहीं लिखते हैं । मनोरोगी की तरह ज्ञान मत कीजिए ।

  2. सुफल पासवान

    April 19, 2020 at 11:24 pm

    अगर माई का दूध पीए है तो इस स्थिति के लिए पूंजीपतियों के खिलाफ लिखिए। क्या अगरी जाति के लोगों को पत्रकारिता या नौकरी करने का अधिकार नहीं है । अरे देश में गरीब और पिछड़े के नेता इतना अमीर क हो गए??? इस और लिखिए , पिछड़ों के दलाल घोटालेबाज नेता के खिलाफ़ क्यों नहीं लिखते हैं । क्यू अगरी जाति में जन्म लेकर किसी की मां चोदे है कि अगरी जाति अपराधी होगया है?? मनोरोगी की तरह ज्ञान मत कीजिए ।
    और तुम जो ये राजपूत वाला टाइटल लगाए हो न , बेटा तुम राजपूत नहीं हो , टाइटल इसलिए लगाए हो क्यू की तुम्हे अपनी जाति और अपनी समुदाय से गिरना है।और बदनाम अगरी जाति को करते हो???

  3. mehta krishan

    April 20, 2020 at 6:17 pm

    बिल्कुल बेहूदा परिदृश्य पेश करने की कोशिश है आपका लेख,मानसिकता बदलिए।कभी देश हित मे भी लिखिए

  4. मकेश

    July 10, 2021 at 5:28 am

    सोर्र्ररय,,,,,,,,,…..सुपर लीखा आपने

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