Connect with us

Hi, what are you looking for?

आयोजन

इंदौर वाले हेमंत शर्मा ने तो इतिहास रच दिया! पढ़ें दो अखबारों के एक साथ लांच होने की कहानी

इंदौर वाले हेमंत शर्मा. अपने नए-नवेले दफ्तर में अपने नए-नए लांच हुए दो अखबारों के साथ, भड़ास4मीडिया के एडिटर यशवंत सिंह से बातचीत के दौरान. हेमंत की यह मुद्रा जैसे बता रही हो- ”जमाने को था या न था, पर हमको यकीं था, सपने अख्तियार करेंगे एक रोज हकीकत के रंग.”.

मीडिया में दो हेमंत शर्माओं को मैं जानता हूं. एक बनारस वाले हैं. दूसरे इंदौर वाले. एक महादेव के इलाके से. एक महाकाल के घराने के. दोनों ने ही अखबार और टीवी दोनों जगहों काम किया. दोनों ही भाषा और शब्दों के धनी हैं. दोनों ही अदभुत लिक्खाड़ हैं. एक ने दो-दो अखबार लांच कर दिया. दूसरा एक राष्ट्रीय हिंदी चैनल लाने वाला है. दोनों ही ग़ज़ब के पावरफुल पत्रकार.

Advertisement. Scroll to continue reading.

बनारस वाले हेमंत शर्मा अब दिल्ली में रहते हैं. पिछले दिनों अयोध्या पर लिखी उनकी किताब का विमोचन हुआ तो उसमें मोहन भागवत और अमित शाह से लेकर मोदी सरकार के दर्जन भर से ज्यादा मंत्री मौजूद थे. इससे आप दिल्ली वाया बनारस वाले हेमंत शर्मा के रसूख का अंदाजा लगा सकते हैं.

इंदौर वाले हेमंत शर्मा ने गांधी जयंती के दिन इंदौर में दो-दो अखबार लांच करा दिया, वो भी गुलजार साहब जैसी शख्सियत के हाथों. इंदौर के सबसे महंगे भगवती होटल में आयोजित भव्यतम समारोह में संभाग का ऐसा कोई नेता, अफसर, मंत्री, पत्रकार न था जो मौजूद न रहा हो. इंदौर वाले हेमंत शर्मा काफी समय तक मुंबई में भी रह चुके हैं. मुंबई वाया इंदौर वाले हेमंत शर्मा ने अपने मीडिया का जो ठीहा इंदौर में बनाया है, उसकी कल्पनाशीलता में मायानगरी के ढेर सारे चटख रंग हैं. बकौल गुलजार साहब- ‘हेमंत के अखबार के आफिस जाकर मैं दंग रह गया. इतना सुंदर. इतना कलात्मक. यह किसी अखबार का दफ्तर नहीं बल्कि कल्चर का आफिस लगता है.’

Advertisement. Scroll to continue reading.

मतलब इंदौर में अपने दोनों अखबारों का जो संयुक्त आफिस हेमंत शर्मा ने बनाया है, वह इतना कलात्मक है कि मैं कह सकता हूं, अखबार का ऐसा दफ्तर देश भर में किसी मीडिया हाउस का नहीं है. हेमंत शर्मा ने एक और कांड कर दिया है. उन्होंने हिंदी के देसज पत्रकारों को अंग्रजीदां बना दिया है. थोड़ा सा एलीट कर दिया है. हर पत्रकार को एक लैपटाप दे दिया है, सदा के लिए.

हिंदी का ये पत्रकार लैपटाप लेकर आता है. काम खत्म करता है और लैपटाप लेकर घर चला जाता है. पूरा आफिस देर रात बिना किसी कंप्यूटर के होता है, यहां से वहां तक सिर्फ टेबल-कुर्सियां ही होती हैं. बात चली टेबल कुर्सी की तो कुर्सी ऐसी जो रीढ़ और कमर की बीमारी न होने दे. हेमंत शर्मा बताते हैं- चौदह सौ तक की बढ़िया कुर्सी बारगेन कर ली थी हम लोगों ने. लेकिन लगा कि यही मौका है कुछ अलग करने का, अपनी जमात की सेहत के बारे में सोच-समझ कर फैसला करने का… तो हमने 4600 की उन कुर्सियों को खरीदा जिससे कमर रीढ़ की बीमारी न हो सके.

Advertisement. Scroll to continue reading.

इंदौर के सबसे प्रचंड क्राइम रिपोर्टर अंकुर जायसवाल को हेमंत शर्मा अपने हिंदी और अंग्रेजी अखबार के लिए लाए हैं. अंकुर का लेआउट बदल गया है. वो अंग्रेजी अखबार के जेंटलमैन रिपोर्टर सरीखे दिखने लगे हैं. वे अंग्रेजी भी सीखने लगे हैं. अंकुर कहते हैं- ”मेरी तो दुनिया ही बदल दी हेमंत भाईसाहब ने. मैंने सोचा न था कि मेरा जैसा अंग्रेजी न जानने वाला रिपोर्टर एक रोज अंग्रेजी अखबार का रिपोर्टर बन जाएगा.”

प्रकाश हिंदुस्तानी और हेमंत शर्मा : ताल से ताल मिले…

Advertisement. Scroll to continue reading.

प्रकाश हिंदुस्तानी को मैं इंदौर का सबसे नौजवान पत्रकार मानता हूं. साठ पार कर चुके इस शख्स ने उम्र और समय को ऐसी चुनौती दे रखी है कि कभी बूढ़ा ही नहीं होता. इस नौजवान ने फिर से नई पीढ़ी और बदले वक्त के साथ कदमताल शुरू कर दिया है. प्रकाश हिंदुस्तानी धर्मयुग में काम कर चुके हैं. वे दर्जनों अखबारों और चैनलों में वरिष्ठतम पदों पर रहे हैं. अब वे हेमंत शर्मा के ‘प्रजातंत्र’ में शामिल होकर अखबारी पत्रकारिता के ‘फर्स्ट प्रिंट’ बनने की ओर तत्पर हैं.

प्रकाश हिंदुस्तानी कहते हैं- ”हेमंत शर्मा ने अपनी सोच, कलात्मकता, अखबार, लेआउट, आफिस, लांचिंग सेरेमनी के जरिए खुद को मालवा समेत पूरे उत्तर भारत के सर्वाधिक ताकतवर और मोस्ट एन्नोवोटिव जर्नलिस्ट्स की कतार में शुमार कर लिया है. हम लोग सोच भी नहीं सकते थे कि हिंदी का एक पत्रकार एक रोज इंदौर में पत्रकारिता को यह उंचाई दे देगा. मालवा रीजन ने देश को बहुत बड़े बड़े पत्रकार देने के लिए जाना जाता है. इसी मालवा ने हेमंत शर्मा को भी दिया है.”

Advertisement. Scroll to continue reading.

मैं चार रोज इंदौर और उज्जैन की यात्रा से लौटा हूं. इस अदभुत लांचिंग सेरेमनी का हिस्सा बना. प्रजातंत्र हिंदी अखबार है. फर्स्ट प्रिंट अंग्रेजी टैब्लायड. हिंदी के साथ अंग्रेजी अखबार फ्री है. हिंदी अखबार सब्सक्रिप्शन बेस्ड है. यानि जो साल भर की अग्रिम बुकिंग करेगा, सिर्फ उसी को ये अखबार मिलेंगे. अंग्रेजी अखबार के लिए हेमंत ने मुंबई के टाइम्स आफ इंडिया से लेकर कई बड़े अंग्रेजी अखबारों की टीम को अपने साथ जोड़ा है. हेमंत अपने आफिस में एक-एक से परिचय कराते गए. नेशनल प्रोजेक्ट हेड अभिषेक जोसेफ से लेकर कंपनी के सीईओ, सीएफओ, फोटो एडिटर, एंटरटेनमेंट एडिटर, क्राइम रिपोर्टर से मेल मुलाकातों और परिचय का सिलसिला चला. यह महसूस हुआ कि हेमंत ने कोई भी कोना कमजोर नहीं छोड़ा है. जो कुछ किया है, अल्टीमेट लेवल पर जाकर. चाहें पत्रकारों का चयन हो, अखबार का कंटेंट हो, लांचिंग की थीम हो, आफिस का आर्किटेक्चर हो… हर चीज पर बहुत ध्यान देकर तय किया गया…

नीचे लांच सेरेमनी और अखबार की खासियत से जुड़ी कुछ खबरें हैं… कुछ जानकारियां हैं… हेमंत शर्मा किस विजन के साथ ये अखबार लाए हैं, इस पर उनकी बात है… पढ़ें… साथ ही तस्वीरों के जरिए भी आप इस अदभुत अखबार और लांच सेरेमनी से कनेक्ट हों.

Advertisement. Scroll to continue reading.

जैजै

यशवंत

Advertisement. Scroll to continue reading.

एडिटर, भड़ास4मीडिया


गांधी जयंती के दिन ब्लैक एण्ड व्हाइट प्राइवेट लिमिटेड के प्रजातंत्र और फर्स्ट प्रिंट के आगाज पर गुलजार से गुफ्तगू

उस रात जैसे शफ़क से टूटकर अपने ही बीच गिरे नूर के किसी टुकड़े को देखते रह गए हम

2 अक्टूबर की रात। सैकड़ों सुनकारों की एक कतार के बीच से होकर सफेद लिबास में जब एक शफ्फाक छवि गुजरती है तो याद ही नहीं रहता कि हमें इस्तकबाल भी करना है। एक टकटकी उस साये पर ठहर जाती है। हम बा-जुबान, बा-हरकत होकर खड़े रहते हैं। जैसे सैकड़ों लोगों की चुप्पी और हैरत एक साथ एकत्र होकर किसी नज़्म के लिए दाद दे रही हो। जैसे शफ़क से टूटकर गिरे नूर के किसी टुकड़े को हम देखते रह गए हों।

Advertisement. Scroll to continue reading.

नवीन रांगियाल | इंदौर

कुछ पल बाद एक खुरदुरी और बूढ़ी आवाज खरज के साथ जब मंच से आती है, उर्दू जुबान में एक तलफ्फूस हमारे कान से आकर टकराता है तो हमें धीमे-धीमे यकीन होने लगता है कि यह कोई अचंभा नहीं था, बल्कि हम शाम-ए-गुलज़ार में हैं। जब इत्मिनान हो आता है कि सामने मंच पर गुलज़ार ही हैं तो ग्रैस के साथ खड़े होकर हम तालियां बजाने लगते हैं। और 2 अक्टूबर की इस शाम हम खुद को पूरी तरह से गुलज़ार को सौंप देते हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

इस अचंभे के हकीकत में बदलने के बाद मंच पर गुलज़ार और दिव्या दत्ता के बीच बातचीत का एक सिलसिला रवां होता है। ‘इन कन्वर्सेशन’ यह सिलसिला रवींद्रनाथ टैगोर, बिमल रॉय, सलिल चौधरी, शैलेंद्र, सचिन देव बर्मन, ऋषिकेश मुखर्जी और आरडी बर्मन तक पहुंचता है। रात गुजरती है तो बात गुलज़ार के गुलज़ार होने तक, उनके शे’र, उनकी ग़ज़ल और उनकी नज़्म तक जाती है। वे बताते हैं कि कैसे गुलज़ार फिल्मों में आए, कैसे उन्होंने मोरा गोरा रंग लई ले… लिखा और कैसे गीतकार हो गए। गुलज़ार देर रात तक ‘प्रजातंत्र’ के मेहमानों की उपस्थिति में अपनी प्रेम कविता से लेकर भारत-पाकिस्तान के बंटवारे और अपनी कविता के माध्यम से रिश्तों की उधेड़बुन पर गुफ्तगू करते रहे। शाम-ए-गुलज़ार पर पेश है प्रजातंत्र की खास रिपोर्ट-

मैं तो डैमेज कारों पर रंगों के पैच मारा करता था

Advertisement. Scroll to continue reading.

गुलज़ार कहते हैं, मैं तो मोटर गैराज में काम करता था। एक्सीडेंट में डैमेज हुई गाड़ियों पर कलर के पैच मारता था। यह सच है कि फिल्मों में आने का मेरा कोई इरादा नहीं था, लेकिन पीडब्लूए और इप्टा में आने-जाने के दौरान मेरी मुलाकात सलिल चौधरी, देबू सेन और शैलेंद्र से हुई। यहां मुझे बिमल दा के असिस्टेंट देबू सेन ने कहा कि चलो, बिमल दा से मिलो और गाने लिखो, लेकिन मैं तो डैमेज गाड़ियों पर कलर के पैच मारता था। शैलेंद्र ने मुझे डांटकर भेज दिया बिमल रॉय के पास कि जाते क्यों नहीं, लोग तरसते हैं उनके साथ काम करने के लिए और तुम नखरे कर रहे हो। और इस तरह मैंने मोरा गोरा रंग लई ले, मोहे श्याम रंग दई दे… लिखा। इस गाने के बाद बिमल दा ने कहा मैं जानता हूं कि तुम फिल्मों में लिखना नहीं चाहते, लेकिन तुम फिर से गैराज में नहीं जाओगे। तुम मेरे असिस्टेंट बन जाओ। तो बिमल दा जो मेरे फादर लाइक थे, मैं उन्हीं के कारण फिल्मों में आया, लिखने लगा और गुलज़ार बन गया। बिमल रॉय मेरे लिए प्रिंसिपल और ऋषिकेश मुखर्जी मेरे लिए टीचर की तरह थे। पंचम दा के साथ तो चलते-फिरते ही कई गाने लिखे। मैंने टैगोर को पढ़ने के लिए बांग्ला सीखी, आप यह मत समझिए कि मेरी बीवी राखी से शादी के लिए बांग्ला सीखी।

मजदूर आदमी हूं, जहां कहोगे दीवार उठा दूंगा

Advertisement. Scroll to continue reading.

बदलते दौर में नए फिल्मकारों के साथ गाने लिखने के सवाल पर गुलज़ार कहते हैं कि अब न तो पहले-से घरों के डिजाइन रहे, न मसाले ही वैसे रहे। खाना-पीना, पहनना बदलेगा तो जुबान भी बदलेगी। बोलचाल और चलना-फिरना भी बदलेगा। लेकिन, इस दौर को जब हम उस सभ्यता को जोड़कर एडॉप्ट करेंगे तो विशाल भारद्वाज, मेघना और शंकर अहसान लॉय पैदा होते हैं। इनके दौर के साथ चलना है तो हमें अपने पहलू भी बदलना होंगे। म्यूजिक तो हमारी जिंदगी का अक्स है, एक्स्प्रेशन है। तो जिंदगी के मुताबिक दौर भी बदलेगा, गाने भी बदलेंगे और इनमें इस दौर की झलक आएगी। अगर मिर्जिया, सूरमा और राजी के गानों में मेरा नाम न लिखा होता तो हम उन्हें तीन अलग-अलग शायर समझते।

…और फिर नज़्म निकल पड़ी बातों के सिलसिले से

Advertisement. Scroll to continue reading.

गुलज़ार के फिल्मों में गीत लिखने के किस्सों के बीच फिर कुछ इस तरह उनकी नज़्मों का सिलसिला शुरू हो गया कि प्रेम कविता से होता हुआ एक अहसास रिश्तों की उधेड़बुन तक चला आया। अपनी एक नज़्म में गुलज़ार ने कराची की सैर भी करवा दी। वो पढ़ते हैं… याद है एक दिन मेरे मेज पर बैठे-बैठे, सिगरेट की डिबिया पर तुमने छोटे-से एक पौधे का एक स्कैच बनाया था। आकर देखो, उस पौधे पर फूल आया है। इसके बाद उन्होंने रिश्तों पर यार जुलाहे सुनाई। रिश्तों में आई दरार पर अपनी कविता मूड पढ़ी। उनकी सबसे पसंदीदा और प्रसिद्ध कविता ये कैसी उम्र में आकर मिली हो तुम सबसे मौजूं रही। देर रात के बाद जब गुलज़ार महफ़िल को छोड़कर जाते हैं तो हम सब उनकी सुनाई हुई नज़्म का असर बनकर आबोहवा में घुल जाते हैं। हम सब गुलज़ार के होने का असर बनकर हवा में बिखर जाते हैं। एक लंबी थकान के बाद जब गुलजार मंच से विदा होने लगे तो द ग्रैंड भगवती में मौजूद श्रोताओं ने उन्हें घेर लिया, थकान के बावजूद गुलजार अपने चाहने वालों से मेल-मुलाकात करते रहे, तसल्ली होने पर वे अपने मकाम लौट गए।

इंदौर आगे जा रहा है, यह मेरे दिल में बसा है

Advertisement. Scroll to continue reading.

गुलजार ने इंदौर से जुड़ी अपनी पुरानी यादों को साझा किया। फिल्म किनारा (1977) की मांडू में शूटिंग के लिए की गई यात्रा के बारे में बहुत ही दिलचस्प वाकया सुनाया। गुलजार ने कहा ‘उस दिन मुझे सुहाग नाम की एक होटल नजर आई, लेकिन इस होटल में सुहाग रात की कोई गुंजाईश नहीं थी, बस यहां सुहाग में रात हो सकती थी।’ यह शहर वाकई में आगे बढ़ रहा है। यह मेरे दिल में बसता है।


एमडी हेमंत शर्मा ने कहा-

Advertisement. Scroll to continue reading.

मैं यकीन दिलाता हूं हम पाठकों से किए वादे पर खरे उतरेंगे

इंदौर :  प्रजातंत्र के शुभारंभ अवसर पर ब्लैक एण्ड व्हाइट के एमडी हेमंत शर्मा ने कहा कि हम उस दौर में अखबार निकाल रहे हैं, जब कहा जा रहा है कि अखबारों में कुछ नहीं बचा। अखबार खत्म हो रहे हैं। पाठक कम हो रहे हैं। सिक्कों का वजन शब्दों पर भारी पड़ रहा है। लेकिन मेरा और टीम का मानना है कि शब्दों का वजन कभी कम नहीं हो सकता। बाजार की बहुत बात हो रही है कि बाजार का बहुत दबाव है अखबारों पर। इसी विचार पर हमने ‘प्रजातंत्र’ की शुरुआत की है।

हम ‘प्रजातंत्र’ में विचार को, खबरों को प्राथमिकता दे रहे हैं। हम आपको बीस खबरें नहीं पढ़वाना चाहते, हम आपको कायदे की सिर्फ पांच खबरें पढ़वाना चाहते हैं, जो आपके काम की हैं। और उसकी कीमत पाठकों को चुकानी पड़ेगी। हम इस अखबार को सब्सिडी के साथ नहीं बेचेंगे। जो लागत आएगी, वो लागत पाठक देगा।

Advertisement. Scroll to continue reading.

हम किसी नंबर गेम में नहीं है, हमें एक लाख, दो लाख, पांच लाख कॉपी नहीं बेचना है। हम दस हजार, पंद्रह हजार पर ही खुश हैं। लेकिन हम चाहते हैं कि जो पंद्रह हजार पाठक हैं, वे इस बात पर फख्र करें कि वे यह अखबार पढ़ रहे हैं। आप को ऐसा ही अखबार देने का वादा विमोचन के मौके पर कर रहा हूं। गुलजार साहब को यकीन दिलाना चाहता हूं, कल आपने जब दफ्तर में मेरे कांधे पर हाथ रखा था, वैसी ताकत मंदिर या मजार जाने पर मिलती है। ये वही ताकत है, जो गांधी का चरखा देखने पर मिलती है, यह वही ताकत है, जो टैगोर के ‘एकला चलो रे…’ सुनने पर मिलती है।


प्रजातंत्र, फर्स्ट प्रिंट की सोच पर बोले गुलज़ार

Advertisement. Scroll to continue reading.

यह किसी अखबार का दफ्तर कम, कल्चर ज्यादा लगता है

दोस्तों… इसी नाम से आपको खताब करना अच्छा है, क्योंकि कई बार मित्रों कहते- कहते रुक जाता हूं। क्योंकि मतलब नक्ल हो जाएगी। बड़ी खुशी हुई जब हेमंतजी ने इंट्रोड्यूस किए, मुझसे तारुफ कराया इन दो पर्चों का। हिंदी और अंग्रेजी के दो अखबार एक साथ निकल रहे हैं, दो हाथों की तरह ताली बजाते हुए महसूस होते हैं। एक अंग्रेजी में है, एक हिंदी में। ऐसा कम ही होता है। हम आदतन अपने घरों में अंग्रेजी का अखबार मंगवाते हैं। अंग्रेजी का अखबार क्योंकि कारोबारी अखबार है, एक इंटरनेशनल लिंक है इस जबान के साथ। और यह इस दौर की सबसे बड़ी जबान है, जो हमें दुनिया के साथ जोड़ देती है। और उसके साथ-साथ हमारी एक नेशनल लैंग्वेज है। जो हमारी मादरी जबान भी है। इन दोनों जबानों में जो अखबार आपको रोज डिलिवर किया जाएगा वो इसीलिए हाथ जोड़े हुए हथेली की तरह नजर आता है।

ऑफिस के बारें में : मैं दफ्तर गया था, ब्लैक एंड व्हाइट न्यूज नेटवर्क के दफ्तर और मैं देखता आया हूं अखबारों के दफ्तर पहले भी बड़े अरसे से। ऊर्दू, हिंदी और अंग्रेजी के अखबारों के दफ्तर भी। बड़े एफिशेंटली, कारोबारी दफ्तर लगते हैं वो। उनमें हर तरफ के इक्विपमेंट होते हैं, हर तरह के कम्प्यूटर होते हैं, सबकुछ मिलता है। लेकिन ब्लैक एंड व्हाइट के इस दफ्तर में जाकर मुझे थोड़ी हैरत यह हुई कि यह अखबार का कम कल्चर का दफ्तर ज्यादा लग रहा था। वहां जाकर यह महसूस हुआ कि दफ्तर एक पूरे कल्चर को साथ लिए हुए हैं, जिसमें आप रोजाना जीते हैं। और जिस तरह से अरेंजमेंट हैं वहां, जिस से ऊपर खुला छोड़ दिया गया है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

वहां स्क्ल्प्चर देखे मैंने। तीन उसूल गांधीजी के। बुरा देखो नहीं, बुरा सुनो नहीं, बुरा कहो नहीं। और ये तीन स्क्ल्प्चर की शकल बड़ी मॉडर्न और बड़ी इंटिमेट किस्म की। गांधीजी के ये तीन बंदर मुझे पहली बार बंदे नजर आए, जो बड़े खूबसूरत लग रहे हैं। इन तीन बंदों से मिलकर बहुत खूबसूरत लगा। हेमंतजी ने वादा किया वे इन्हें बनाने वाले से मुझे मिलवाएंगे। अखबार के इतने खूबसूरत दफ्तर में जिसने भी हाथ लगाया, उन सभी को मैं मुबारकबाद देना चाहूंगा। हेमंतजी के ख्यालात बड़े क्लीयर हैं, बड़े साफ हैं। जब उन्होंने बताया कि आर्ट, स्पोर्ट सभी तरह की खबरों उन्होंने कल्चर और सभ्यता को शामिल किया गया है। मुझे उम्मीद है यह अखबार उसी तरह आपके हाथों में आएगा, जिस तरह से मैं बयां कर रहा हूं।

गुलज़ार के शब्दों ने बढ़ाया हौसला

Advertisement. Scroll to continue reading.

इंदौर की पत्रकारिता में हिंदी समाचार पत्र ‘प्रजातंत्र’ और अंग्रेजी न्यूज पेपर ‘फर्स्ट प्रिंट’ ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवा दी। मंगलवार की ठंडी शाम शायर-फिल्मकार गुलज़ार ने इन दोनों अखबारों को लॉन्च किया। इस अवसर पर आध्यात्मिक संत श्री उत्तमस्वामी महाराज, फिल्म अभिनेत्री दिव्या दत्ता, पूजा बेदी ने मंच की गरिमा बढ़ाई। इस मौके पर प्रदेश एवं देश के कई गणमान्य लोग भी ‘प्रजातंत्र’ टीम का उत्साह बढ़ाने कार्यक्रम में पहुंचे।

‘प्रजातंत्र’ और ‘फर्स्ट प्रिंट’ की पब्लिशिंग कंपनी ‘ब्लैक एंड व्हाइट न्यूज नेटवर्क’ के एमडी और एडिटर-इन-चीफ हेमंत शर्मा ने अतिथियों का स्वागत करते हुए अपने उस उद्देश्य को स्पष्ट किया, जिसकी वजह से ‘प्रजातंत्र’ को प्रकाशित करने का निश्चय किया गया। उन्होंने कहा हम बाजार के हिसाब से नहीं, पाठक के नजरिए से अखबार निकालने का प्रयास कर रहे हैं। गुलजार साहब ने भी ‘प्रजातंत्र’ की विचार-शक्ति को सराहते हुए उसके उज्ज्वल भविष्य की कामना की। लॉन्च सेरेमनी के दौरान दिव्या दत्ता ने इंसानी जिंदगी से जुड़े तमाम संवेदनशील मुद्दों पर गुलज़ार साहब से सवाल किए, जिनका उन्होंने अपनी कविताओं के जरिए जवाब दिया। गुलज़ार ने अपने जीवन और इंदौर से जुड़ी कई यादों को भी श्रोताओं के साथ साझा किया।

Advertisement. Scroll to continue reading.

    

5 Comments

5 Comments

  1. Bimal Kumar Agarwal

    October 6, 2018 at 3:46 pm

    Dear Sir,
    I read a fabulous launching story of your dream project PRAJA TANTRA many many congratulations for this journey.
    I am also a part of print media and serving HINDUSTAN HINDI in media marketing department Moradabad

  2. Nitin Sankhla Nagda

    October 6, 2018 at 6:30 pm

    इंदौर वाले हेमंत शर्मा ने तो इतिहास रच दिया! पढ़ें दो अखबारों के एक साथ लांच होने की कहानी
    बहुत सुंदर प्रस्तुति
    हार्दिक बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएं

  3. Kishore Singh

    October 7, 2018 at 6:22 pm

    ब्लैक एंड व्हाइट “प्रजातंत्र” इंदौर से लेकर भोपाल काफी समय से सुर्खियों में रहा है साथ ही अखबार के भव्य कार्यालय की बखूब चर्चा के साथ फेसबुक पर चित्र भी देखे है जिन्होंने ने मन मोह लिया है।
    बधाई ओर बहुत-बहुत शुभकामनाएं साथ ही साथी मित्र गौरी दुबे, अंकुर जायसवाल, विनोद शर्मा,यशवर्धन सिंह को भी नाइ पारी की शुभकामनाएं

  4. shree prakash

    October 9, 2018 at 1:37 pm

    लेकिन सूचना यह भी है कि इस अखबार के समूह संपादक राजेन्‍द्र तिवारी अखबार छोड़ भी गये हैं।

  5. shree prakash

    October 9, 2018 at 1:40 pm

    लेकिन सूचना यह भी है कि इस अखबार के समूह संपादक राजेन्‍द्र तिवारी अखबार छोड़ गये हैं।

Leave a Reply

Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement