दैनिक जागरण ग्रुप के उर्दू अख़बार दैनिक इंकलाब के सीतापुर जिला ब्यूरोचीफ जावेद खान (निवासी खैराबाद, सीतापुर) इस दुनिया से रुख़सत हो गए।
इंकलाब अखबार से वे शुरुआती दिनों से ही जुड़े हुए थे।
मेदांता हॉस्पिटल, लखनऊ में कई दिनों से वे डेंगू से जिंदगी और मौत की जंग लड़ रहे थे। वे आर्थिक तंगी के भी शिकार थे। जावेद भाई ज़िन्दगी की जंग हार गए। उनका परिवार मुट्ठीभर रिश्तेदारों और दोस्तों-शुभचिंतकों के सहारे उनकी ज़िंदगी की जंग लड़ता रहा। लेकिन दैनिक जागरण के स्थानीय कार्यालय से जुड़े किसी भी पत्रकार ने उनकी सुध नहीं ली। यहां तक कि अंतिम विदाई तक में लोग नहीं शामिल हुए।
किसी का एक शेर है :” बड़ी कठिन है अखबार की मुलाजिमत भी, जो ख़ुद ख़बर है वो दूसरों की लिखता है।”
एक ही समूह से जुड़े स्थानीय पत्रकारों ने अपने साथी के निधन की सूचना सोशल मीडिया पर देना भी ज़रूरी नहीं समझा।
इससे बड़ी शर्म की बात क्या होगी कि इतना बड़ा समाचार समूह अपने एक सहयोगी अखबार के जिला ब्यूरो प्रमुख को पी.जी.आई में इलाज के लिए एक बेड तक नहीं दिला सका या यूं कहें कि उसके कारकुनों ने ऐसी किसी कोशिश की ज़रूरत ही नहीं समझी।