अजय कुमार, लखनऊ
कोरोना काल में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के दो निजी मेडिकल कालेजों में सरकार की नाक के नीचे मानव अंगों की तस्करी का मामला सामने आने के बाद निजी अस्पतालों के खिलाफ जनता और योगी सरकार का गुस्सा सातवें आसमान पर है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पूरे प्रकरण की जांच कराने का आदेश देकर सही कदम उठाया है। अभी तक तो निजी अस्पतालों पर यही आरोप लगते थे कि वह मरीजों को लूटते थे, लेकिन यह अस्पताल मानव तस्करी के धंधे में भी लिप्त हो सकते हैं, यह सोच के ही रुह कांप जाती है। योगी ने पूरे मामले की जांच के लिए कमेटी बना दी है। दोनों ही मेडिकल कॉलेजों पर मानव तस्करी के सनसनीखेज आरोप लगे हैं। मुख्यमंत्री ने इसके साथ-साथ कोविड मरीज संग हुई घटना की जांच के आदेश दिए हैं। वैसे मानव अंगों की तस्करी का यह पहला मामला नहीं हैं। इससे पूर्व बीते वर्ष कानपुर में और कुछ वर्ष पूर्व मुरादाबाद से मानव अंगों की तस्करी का सनसनीखेज मामला सामने आया था, जहां सैकड़ों लोगों की किडनी निकाल कर एक डाक्टर ने बेच दी थी। नोयडा में हुए चर्चित निठारी कांड में भी बच्चों के अंगो की तस्करी की बात कही गई थी। मानव अंगों की तस्करी का साम्राज्य काफी फैला हुआ है। मानव अंगों की तस्करी से आईएसआई और अन्य तमाम आतंकवादी संगठन भी पैसा जुटाते हैं ताकि अपनी हरकतों को अंजाम दे सकें।
दरअसल, चिनहट के पक्का तालाब निवासी शिव प्रकाश पांडेय का बेटा आदर्श कमल पांडेय (27) 11 सितंबर को कोरोना पॉजिटिव हो गया था। 15 सितंबर को आदर्श कमल पांडेय को इंटीग्रल मेडिकल कॉलेज में भर्ती किया गया। यहां भर्ती आदर्श ने बहन को वाट्सएप पर मैसेज किए। उसने भर्ती मरीजों के साथ गलत काम होने की दास्तां बयां की। साथ ही मरीजों के अंग निकालने की आशंका जताई। वह इन मरीजों का गवाह बनना चाहता था। आरोप है कि इसके बाद आदर्श कमल को सामान्य वार्ड से आइसीयू में पहुंचा दिया गया। घबराए आदर्श कमल ने 22 सितंबर को बहन से तत्काल अस्पताल से निकालने का हवाला दिया। देर होने पर उसने मार डालने की बात कही।
ऐसे में परिवारजनों ने अफसरों को फोन कर रात करीब 12 बजे आदर्श कमल को एरा मेडिकल कॉलेज रेफर कराया। आरोप है पहले मेडिकल कॉलेज से एरा के स्टाफ को फोन कर दिया गया। साजिश के तहत युवक की तबीयत और बिगाड़ दी गई। स्थिति यह हुई कि 26 सितंबर को घर वालों को पहले मरीज ठीक बताया गया। वहीं 15 मिनट बाद दोबारा फोन कर आदर्श की मौत की सूचना दी गई। परिवारजनों ने मेडिकल कॉलेज पर आदर्श कमल को मार डालने का आरोप लगाया।
इसके पश्चात परिवार वालों ने मोहनलाल सांसद कौशल किशोर से निजी अस्पताल में चल रहे धंधे की शिकायत की। ऐसे में सांसद ने मरीज के इलाज में लापरवाही के साथ-साथ मानव अंग तस्करी की आशंका का हवाला देकर एरा व इंटीग्रल मेडिकल कॉलेजों की जांच के लिए सरकार को पत्र लिखा। इसके साथ ही कानून मंत्री बृजेश पाठक ने भी परिवारजनों की शिकायत को गंभीरता से लेते हुए सीएम को कार्रवाई के लिए पत्र लिखा। सीएम ने टीम गठित कर मामले की जांच के आदेश दिए हैं। पीड़ित के चाचा जेपी पांडेय ने भी मानव अंग निकालने के आरोप लगाए। साथ ही जांच कमेटी को मरीज की घटना से संबंधित साक्ष्य मुहैया कराने का दावा किया। इस प्रकरण में सीएमओ डा. संजय भटनागर का कहना था कि एरा व इंटीग्रल मेडिकल कॉलेज चिकित्सा शिक्षा विभाग के हैं। यह हमारे अधीन नहीं हैं। लिहाजा, शिकायत चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक को भेज दी गई है।
पूरे प्रकरण में अस्पताल वालों की चुप्पी काफी मायने रखती है। घटना पर पक्ष जानने के लिए दोनों निजी मेडिकल कॉलेजों के अफसरों द्वारा फोन नहीं उठाया जाना काफी कुछ कहता है। जब बातचीत की कोशिश की गई तो एरा मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. एमएमए फरीदी ने एक कार्यक्रम में जाने की बात कहकर फोन काट दिया। वहीं इंटीग्रल मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. एमएन सिद्दीकी का फोन ही नहीं नहीं उठाया।
बात मानव अंगों की तस्करी के तरीकों की करें तो अधिकांश मामलों में मानव अंगों की तस्करी करने वाले गिरोह के सदस्यों के निशाने पर सूनसान इलाके रहते हैं। गरीब बस्तियों के पास किडनैपिंग आसान होती है, इसलिए तस्कर गैंग के लोग जिले के उन क्षेत्रों में वारदात करते हैं, जहां से निकलना आसान होता है। कुछ समय पहले ही मेरठ व दिल्ली के बड़े अस्पतालों का नाम मानव अंगों की तस्करी करने व बिक्री करने में सामने आया था। उस वक्त गिरफ्तार आरोपितों ने बताया था कि उनके एजेंट देश के कोने-कोने में फैले हुए हैं। अक्सर कुछ जिलों से गायब हो रहे किशोर-किशोरियों के मामले में भी यही माना जाता है कि ऐसे बच्चों के गायब होने के तार मानव तस्करी करने वाले बड़े रैकेट से जुड़े रहते हैं। सूत्रों की मानें तो इस समय किडनी का बाजार भाव तीस लाख से ऊपर व लीवर का रेट 80 लाख से ज्यादा है। गिरोह के सदस्य पहले लालच देकर किडनी ट्रांसप्लांट कराने की योजना बनाते हैं, इसमें सफलता नहीं मिलती तो जबरन आपरेशन किया जाता है।
एनसीआरबी के आंकड़ों में कहा गया है कि 2016 में 63407, 2017 में 63349 और 2018 में देश में 67134 बच्चे गायब हो गए। बंगाल के मामले में यह आंकड़ा क्रमशः 8335, 8117 और 8205 था। बंगाल के उत्तरी इलाकों से हर साल भारी तादाद में बच्चे तस्करी के शिकार होते हैं। अब तक एक हजार से ज्यादा बच्चों और महिलाओं को मानव तस्करों के चंगुल से बचाने वाले संगठन कंचन जंघा उद्धार केंद्र (केयूके) के सचिव रांगू सौरीया कहते हैं- ‘लॉकडाउन के दौरान और उसके बाद लापता होने वाले बच्चों का पता लगाने के लिए ठोस रणीनीति बनाना जरूरी है।’ विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों ने इसके लिए सरकार से एक अंतर-मंत्रालयी टीम गठित करने की मांग की है।
बहरहाल, योगी सरकार ने मानव अंगों की तस्करी पर रोक लिए अलग से थाने बनाए जाने की पहल भी शुरू कर दी है। उत्तर प्रदेश में महिलाओं और बच्चों की तस्करी रोकने के लिये हर जिले में एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग थाना बनाया जाएगा। राज्य सरकार के एक प्रवक्ता ने बताया कि प्रदेश के हर जिले में अब मानव तस्करी के मामलों में कार्रवाई के लिये थाना स्थापित किया जाएगा। इस सिलसिले में पिछले 20 अक्टूबर को शासनादेश भी जारी किया जा चुका है। उन्होंने बताया कि प्रदेश में 40 नयी मानव तस्करी रोधी इकाइयों का गठन किया जायेगा, जो जिलों में थाने के रूप में काम करेंगी। प्रदेश में पहले कुल 35 जिलों में मानव तस्करी रोधी इकाई के थाने थे। यह थाने 2011 और 2016 में स्थापित हुए थे। प्रवक्ता ने बताया कि सरकार इन थानों को कई अहम अधिकार सौंपने जा रही है। ये थाने मानव तस्करी के मामलों में सीधे मुकदमा दर्ज करके खुद जांच भी करेंगे। सम्बन्धित पूरा जिला इनका कार्य क्षेत्र होगा। उन्होंने बताया कि एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग थानों में मानव तस्करी से जुड़े अपराधों के मुकदमे दर्ज कर उनकी विवेचना और आगे की कार्रवाई की जाएगी। प्रवक्ता ने बताया कि नए थाने केंद्र सरकार के महिला सुरक्षा प्रभाग के निर्देश पर स्थापित किये जा रहे हैं। केंद्र सरकार ने इसके लिए धन भी आवंटित कर दिया है। केंद्र सरकार ने पहले से स्थापित 35 थानों को 12 लाख रुपये की दर से 4 करोड़ 20 लाख रुपए और 40 नए थानों के लिए 15 लाख रुपए की दर से छह करोड़ रुपए उत्तर प्रदेश सरकार को दिए हैं।