संजय कुमार सिंह-
मोदी निर्मित आपदा…. अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल द लैनसेट ने अपने संपादकीय में लिखा है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कार्रवाइयां ‘अक्षम्य’ हैं, सरकार को अपनी गलतियों की जिम्मेदारी स्वीकार करनी चाहिए।
इसमें कहा गया है कि भारत ने कोविड-19 को नियंत्रित करने में अपनी शुरुआती सफलता को ‘गंवा’ दिया। एनडीटीवी डॉट कॉम की एक रिपोर्ट के अनुसार कोरोनावायरस महामारी से निपटने की सरकार की कार्रवाइयों के प्रति बेहद आलोचनात्मक इस संपादकीय में कहा गया है कि संकट से निपटने में भारत की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि मोदी प्रशासन अपनी गलतियों की जिम्मेदारी ले। आलोचनाओं और संकट के दौरान खुली चर्चा को रोकने की कोशिश में मोदी सरकार की कार्रवाई अक्षम्य है।
इसमें कहा गया है कि दूसरी लहर के मामले आने से पहले मार्च के शुरू में भारत के स्वास्थ्य मंत्री (डॉ) हर्षवर्धन ने एलान कर दिया कि भारत महामारी से निपटने के अंतिम चरण में है। चेतावनियों के बावजूद सरकार ने धार्मिक आयोजन होने दिए जिसमें देश भर के लाखों लोगों ने हिस्सा लिया। इसमें टीकाकरण की नीति की भी आलोचना की गई है और कहा गया है कि अभी तक दो प्रतिशत से भी कम का टीकाकरण करवा पाई है। यह भी लिखा है कि कई बार, नरेन्द्र मोदी की सरकार का इरादा महामारी को नियंत्रित करने के मुकाबले ट्वीटर से आलोचना हटवाने में ज्यादा दिखा।
इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थमेट्रिक्स एंड इवैल्युएशन का अनुमान है कि एक अगस्त तक भारत में कोविड19 से मरने वालों की संख्या एक मिलियन यानी 10 लाख हो जाएगी। अगर ऐसा होता है तो मोदी सरकार खुद पर थोपी गई इस राष्ट्रीय आपदा के लिए जिम्मेदार होगी। शनिवार को भारत में एक दिन में मरने वालों की संख्या सबसे ज्यादा, 4187 थी और अभी तक मरने वालों की संख्या 2.4 लाख से कम है। अभी तक 2.19 करोड़ लोग संक्रमित हुए हैं जबकि एक दिन में 4,01,078 मामले बढ़ गए। संकट के मारे देश भर के अस्पताल भर गए हैं और मरीजों के साथ डॉक्टर भी सोशल मीडिया पर ऑक्सीजन, बेड और अन्य आवश्यकताओं के लिए भीख मांग रहे हैं।
इस बीच द हिन्दू में आज छपी एक खबर के अनुसार राहुल गांधी ने इसे मोविड – मोदी निर्मित आपदा कहा है। सरकार तो अभी टीकों पर जीएसटी वसूल रही है। कीमत के तो क्या कहने।
अनिल जैन-
मेडिकल जर्नल लांसेट ने कोरोना महामारी से निपटने के प्रधानमंत्री मोदी के प्रयासों को लेकर तीखा आलोचनात्मक संपादकीय छापा है। पत्रिका ने लिखा है कि प्रधानमंत्री मोदी की सरकार कोरोना महामारी से निपटने से ज़्यादा आलोचनाओं को दबाने में लगी हुई दिखी।
पत्रिका ने साफ़ तौर पर उस मामले का ज़िक्र किया है जिसमें कोरोना की स्थिति से निपटने के लिए कई लोगों ने ट्विटर पर प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना की थी जिसे सरकार ने ट्विटर से हटवा दिया था।
पत्रिका ने लिखा है, ‘कई बार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार महामारी को नियंत्रित करने की कोशिश करने की तुलना में ट्विटर पर आलोचना को हटाने के लिए अधिक इरादे प्रकट करती दिखी है।’
संपादकीय में देश में कोरोना के हालात पर भी टिप्पणी की गई है। पत्रिका ने लिखा है कि 4 मई तक कोरोना के 2 करोड़ से अधिक मामले दर्ज किए गए थे। इसमें 2 लाख 22 हज़ार से अधिक मौतें हुई हैं। संपादकीय में द इंस्टीट्यूट फ़ॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन के अनुमान का ज़िक्र किया गया है जिसमें गया है कि भारत में 1 अगस्त तक कोरोना से 10 लाख लोगों की मौत होगी।
इसने देश की स्वास्थ्य व्यवस्था के मौजूदा हालात का भी ज़िक्र किया है। इसने लिखा है कि ‘अस्पताल भरे हुए हैं, और स्वास्थ्य कार्यकर्ता थक गए हैं और वे संक्रमित हो रहे हैं। सोशल मीडिया पर हताशा दिख रही है (डॉक्टरों और जनता), जो मेडिकल ऑक्सीजन, अस्पताल के बिस्तर और अन्य ज़रूरतों की मांग कर रहे हैं।’
कुंभ मेले और पाँच राज्यों में चुनाव के दौरान प्रचार रैलियों में कोरोना प्रोटोकॉल की धज्जियाँ उड़ाए जाने का ज़िक्र भी संपादकीय में किया है। पत्रिका ने लिखा है, ‘सुपरस्प्रेडर घटनाओं के जोखिमों के बारे में चेतावनी के बावजूद सरकार ने धार्मिक उत्सवों को आगे बढ़ने की अनुमति दी, जिसमें देश भर के लाखों लोग शामिल हुए। इसके साथ-साथ विशाल राजनीतिक रैलियाँ हुईं जिसमें कोरोना को नियंत्रित करने के उपायों की पालना नहीं हुई।’