Pushya Mitra : हड़प्पा में हाल के दिनों में हुए एक्सकेवेशन करने वाली टीम के मुखिया अनिंद्य सरकार से रंजीत और अखिलेश्वर पांडे ने लम्बी बातचीत की है। यह बातचीत प्रभात खबर में प्रकाशित हुई है। यह काफी महत्वपूर्ण बातचीत है। इसका विषय शहरी जीवन और पर्यावरण है। उत्खनन से यह पता चला है कि आठ हजार साल पहले अस्तित्व में आई इस महान सभ्यता का पतन पर्यावरण सम्बन्धी कारणों से हुआ। मानसून कमजोर पड़ने लगा और सरस्वती नदी सूख गयी।
मगर रोचक बात यह थी कि हड़प्पा वालों ने इसके बावजूद अपनी सभ्यता को तालाबों की मदद से हजारों साल तक जिन्दा रखा। जब कोई चारा नहीं बचा तो लोगों ने शहरों को नष्ट हो जाने दिया और गांवों को अपना लिया। इस सन्दर्भ में समझने वाली बात यह है कि इस बार हमारी नागरीय और औद्योगिक महज 200 साल पुरानी है। दो सौ सालों में ही हमने धरती को जीने लायक नहीं छोड़ा है और न ही हम इसे बचाने को लेकर गंभीर हैं। यह खोज हमें यह भी सिखाती है कि अगर लम्बे समय तक धरती पर इंसानी अस्तित्व को कायम रखना है तो हमें पर्यावरण प्रिय ग्रामीण जीवन को अपनाना होगा।
प्रकृति का सान्निध्य, फूस के घर, जैविक खेती, पशुपालन, प्रकृति का न्यूनतम दोहन। जो हमारे पूर्वज पिछले चार हजार साल से करते आये हैं। उन्होंने हड़प्पा की नगरीय सभ्यता को ठुकरा कर ग्रामीण जीवन शैली को अपनाया। भौतिक उपलब्धियों के बदले आध्यात्मिक उपलब्धियों को जीवन का लक्ष्य बनाया। हर बार भारत दुनिया को यही सन्देश देता रहता है। बुद्ध से लेकर गाँधी तक। मगर कई बार हम खुद अपने पूर्वजों के सिद्धन्तों पर भरोसा नहीं करते। पश्चिम के भौतिकतावाद को अपनाने के लिए आतुर हो जाते हैं।
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पत्रकार पुष्य मित्र के फेसबुक वॉल से.