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इंटरव्यू

अंजना ओम कश्यप के लिए राजनाथ सिंह का चरणस्पर्श कर आशीर्वाद लेना ही बाकी रह गया था

तमाम शहरों और सूबों की राजधानियों में ऐसे कुछ पत्रकार पाये जाते हैं जिनका काम डीएम से लेकर सीएम तक की प्रेसकान्फ्रेंस को हल्का-फुल्का बनाना होता है। मसलन वे बड़ी मासूमियत से कुछ इस तरह के सवाल पूछते हैं-

“सर, आप पर इतना बोझ है, आखिर आपमें इतना स्टैमिना कहाँ से आता है?”
“आप पर ऐसे-ऐसे आरोप लगते हैं, लेकिन आप हमेशा मुस्कराते कैसे रहते हैं?”
“आपको लगता नहीं कि आपको जानबूझकर परेशान किया जाता है ? आप विरोधियों के प्रति इतने उदार कैसे हैं?”

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तमाम शहरों और सूबों की राजधानियों में ऐसे कुछ पत्रकार पाये जाते हैं जिनका काम डीएम से लेकर सीएम तक की प्रेसकान्फ्रेंस को हल्का-फुल्का बनाना होता है। मसलन वे बड़ी मासूमियत से कुछ इस तरह के सवाल पूछते हैं-

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“सर, आप पर इतना बोझ है, आखिर आपमें इतना स्टैमिना कहाँ से आता है?”
“आप पर ऐसे-ऐसे आरोप लगते हैं, लेकिन आप हमेशा मुस्कराते कैसे रहते हैं?”
“आपको लगता नहीं कि आपको जानबूझकर परेशान किया जाता है ? आप विरोधियों के प्रति इतने उदार कैसे हैं?”

ऐसे सवालों को सुन लोग मुस्करा देते हैं। सब जानते हैं कि अगले की रोजी-रोटी ऐसे ही सवालों से चलती है। लेकिन अगर यह रोग देश के सबसे बड़े चैनल आज तक के पत्रकारों को भी लग जाये तो क्या कहेंगे? मोदी सरकार के दो साल पूरे होने पर आजतक की एंकर अंजना ओम कश्यप ने गृहमंत्री राजनाथ सिंह का जैसा इंटरव्यू लिया, वह पत्रकार के ‘चारण’ में बदलने की मिसाल है। सोचिये सामने गृहमंत्री हों और राष्ट्रीय चैनल के चर्चित चेहरे की ज़ुबान से एक भी ऐसा सवाल न फूटे जिसे घेरना कहा जा सके। आख़िर इंटरव्यू का क्या मतलब अगर ऐसे सीधे और तीखे सवाल न हों, जिनसे सामने वाले का असली चेहरा या नीयत सामने आ जाये।

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अंजना ओम कश्यप का यह लगभग 35 मिनट का इंटरव्यू मिसाल है कि कोई पत्रकार देश के गृहमंत्री से मिले इंटरव्यू के अवसर को कैसे बरबाद कर सकता है। हद तो यह है कि अंजना के तमाम सवाल ऐसे थे जैसे कोई बीजेपी प्रवक्ता आत्मालाप कर रहा हो। आख़िरी सवाल सुनकर तो राजनाथ सिंह भी समझ नहीं पाये कि क्या कहें। तो सबसे पहले जानिये कि क्या था आख़िरी सवाल–   

अंजना ओम कश्यप—”आपको नहीं लगता कि कांग्रेस ने बड़ी छोटी राजनीति कर दी जो अमिताभ बच्चन पर सवाल खड़ कर दिया, ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ तो पूरे देश का अभियान है. उसे एक व्यक्ति तक सीमित करना..ऐसे सवाल उठने लगे तो सोनिया गांधी और सब पर नेशनल हेराल्ड मामले में केस हैं….आपको नहीं लगता कि बेबुनियाद और बड़ी छोटी राजनीति कर दी कांग्रेस ने अमिताभ बच्चन पर उँगली उठाकर..”

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राजनाथ सिंह– “मैं क्या कहूं, आप ही तय कर लीजिए कि छोटी राजनीति है कि क्या है… “

यानी पनामा पेपर्स में अमिताभ बच्चन का नाम आना अंजना के लिए कोई मुद्दा नहीं है। इस पर सवाल उठाना छोटी राजनीति है। वे यह भी भूल गईं कि भारत में इंडियन एक्सप्रेस और दुनिया भर के सैकड़ों पत्रकारों की साल भर की मेहनत का नतीजा है पनामा पेपर्स का रहस्योद्घाटन। अंजना ने सवाल की शक्ल में जो कहा, कोई बीजेपी प्रवक्ता भी वही कहेगा, बस वाक्य से ‘क्या’ हटा देगा।

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ख़ैर, पूरे इंटरव्यू में ही अंजना का यही अंदाज़ रहा। पढ़िये कि राजनाथ के परिचय में उन्होंने क्या कहा–

“हम आपका परिचय कराते हैं उस खास मेहमान से जो हमारेसाथ आज दो का दम के लिए शामिल हो रहे हैं। कहते हैं कि अनुभव और राजनीतिक परिपक्वता का कोई विकल्प नहीं हो सकता। जब राजनाथ सिंह को देश का गृहमंत्री बनाया गया था तो बड़ी चुनौती थी। आतंकवाद की मार झेल रहे इस देश में फिर से सुरक्षा की भावना को जिंदा करना था। कितना कुछ हासिल हुआ है और कितना कुछ अगले तीन साल में हासिल करना है, इसी पर चर्चा करने के लिए गृहमंत्री राजनाथ सिंह मौजूद हैं।”

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ख़ैर, कई बार इस तरह की तारीफ़ इसलिए भी की जाती है  कि आगे तीखे सवालों से घेरा जा सके, लेकिन ज़रा अंजना के सवालों की बानगी देखिये—

1. आपने कहा था कि कश्मीरी पंडितों को बसाया जायेगा लेकिन महबूबा जी कुछ साफ करती हैं, जमीन की बात आती है तो दो कदम पीछे चली जाती हैं, कैसे बसायेंगे आप उन्हें. . (अंजना मान कर चल रही हैं कि महबूबा गड़बड़ कर रही हैं और इस नीति का कोई दूसरा पक्ष नहीं हो सकता।)  

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2. “एक और निगेटिव कंपेनिंग… जो बहुत बिहार में भी हमने देखा…. और तमाम विपक्ष कर रहा है कि आरक्षण को लेकर संघ बीजेपी कुछ और चाहते हैं.. भागवत जी के बयानों को लेकर भी खूब सियासत हुई..कि एंटी बैकवर्ड है,,,..इसको कम्बैट करना कितना महत्वपूर्ण है”….(अंजना मानती हैं कि सारा विपक्ष निगेटिव कैंपेनिंग करता है जिसका मुंहतोड़ जवाब देना चाहिए।).

3. जिस तरह की सियासत होती है…बाटला पर सोनिया गांधी वोट बैंक के लिए आंसू बहाती हैं, ये क्या बढ़ावा देना नहीं है…कमजोर देश को दिखाना नहीं है….? क्या ये सियासत बंद नहीं होनी चाहिए ? ( सोनिया वोटबैंक के लिए आँसू बहाती हैं– बीजेपी का कोई प्रवक्ता भी जल्दी इस भाषा का प्रयोग नहीं करता। लेकिन अंजना को सब पता है। सिवाय बीजेपी के,सब वोटबैंक राजनीति करते हैं।)

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अंजना ने बीच में पठानकोट से लेकर उत्तराखंड तक से जुड़े सवाल भी पूछे, लेकिन कुछ इस अंदाज़ में जैसे कोई बच्चा ट्यूशन पढ़ रहा हो।….ऐसे समय जब रोज़गार वृद्धि दर नकारात्मक है, सरकारी आँकड़ों के मुताबिक़ ही लोगों को रोज़गार मिलने के बजाय, नौकरियाँ जा रही हैं, अंजना ओम कश्यप बड़ी मासूमियत से राजनाथ से पूछा कि क्या नौकरियाँ मिलेंगी ? जवाब मिला “हाँ” और वे संतुष्ट हो गईं जैसे बच्चे को चॉकलेट मिलने का आश्वासन मिल गया हो।

अंजना ने यूपी चुनाव के मद्देनज़र ध्रुवीकरण की राजनीति का सवाल पूछा तो राजनाथ ने बड़े प्यार से समझाया कि उनकी पार्टी इसके बारे में सोच भी नहीं सकती। अंजना ने बिना चूँ-चाँ किये इसे समझ भी लिया। न उन्हें संगीत सोम का नाम याद आया और न साक्षी महाराज या योगी आदित्यनाथ। राजनाथ और अंजना कश्यप की मिली जुली भाव भंगिमा का संदेश यह था कि बीजेपी छोड़ बाक़ी सारे दल यूपी में ध्रुवीकरण की ख़तरनाक राजनीति करने में जुटा है!

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इंटरव्यू में लगातार ‘सर..सर.’..और ‘जी …जी..’.का संपुट गूँज रहा था। अंत तक राजनाथ सिंह का चरणस्पर्श कर आशीर्वाद लेना ही बाक़ी रह गया।

याद आता है कि विधानसभा चुनाव के पहले एक बहस के दौरान अंजना ओम कश्यप ने आम आदमी पार्टी के प्रतिनिधि बनकर आये आशीष खेतान से कहा था कि उनके जैसे लोगों की औक़ात नहीं कि आजतक की चौखट पर कदम रख सकें। आलोचना तो हुई थी लेकिन माना गया कि वह शायद तेवर न संभाल पाने का नतीजा था। लेकिन अच्छे दिनों में अंजना के तेवर का यह हाल होगा, कौन जानता था। या फिर वे तब भी बीजेपी का काम कर रही थीं, और अब भी उसे पोस रही हैं। जो भी हो, चारणयुग में पत्रकारिता का एक नमूना तो वे पेश कर ही गईं। याद रहेगा…

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संबंधित इंटरव्यू का वीडियो देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

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https://www.youtube.com/watch?v=paiQIgq6Sqs

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साभार : MediaVigil.com

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0 Comments

  1. Vaishali Chowdhury

    June 9, 2016 at 7:43 am

    आपकी इस तीखी लेकिन सकारात्मक आलोचना को पढ़कर वाकई लगा कि अभी भी सच्ची पत्रकारिता ज़िंदा है…ज़िंदा ही रखिए…कहीं तो रहेगा…

  2. ajay pandey

    June 9, 2016 at 9:29 am

    bahut hi bhondi aur bekar anchor hai screen per aa jaye to log channel badal dete hai….. iska kahe ka taver aur kahe ki patrkarita. supriya prasad ki cheli hai bus

  3. Sachin

    June 9, 2016 at 1:00 pm

    ये ख़बर लिखने वाले भड़ास के रिपोर्टर को शायद ये नहीं मालूम के अंजाना ओम् कश्यप का पति जो ssp है और दिल्ली में पोस्टेड है.
    अब भला पति के बॉस से कैसे तीखे सवाल पूछ सकती थी
    कहीं नाराज़ होकर राजनाथ इनके पति को ही shunting में डाल देते।

  4. kuldeep kumargupta

    January 21, 2017 at 4:29 pm

    Anjana on kashyap mai aapke madhyam se modi Ji se puchana chata hu ki ek DM SDM ya ek second class ki job ker rahe officer ke ladke ko bhi reservation kota milna chaihiye and ek garib savarn ko jiska occupation agricultural hai ya majduri kerne vala hai usko kyo nahi rajnath Singh or amar Shingh kalayan singh ke paise vale hone se kya sabhi chatriya ameer ho gya ya atal Ji murli manohar joshi kal Krishna advani ke paise vale hone se kya sabhi Pandit paise vale ho gye ya

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