‘विकास संवाद’ के कार्यक्रम में न्यायपालिका की मौजूदा स्थिति पर खुल कर बोले वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण… मध्यप्रदेश की सामाजिक संस्था विकास संवाद की ओर से कान्हा किसली राष्ट्रीय पार्क से लगे मोचा गांव में हुए राष्ट्रीय मीडिया संवाद का आयोजन इस साल 13 से 15 अगस्त तक किया गया। जिसमें देश के प्रमुख पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता व विषय विशेषज्ञों ने तीन दिन तक पिछले 70 साल से देश के विकास के विभिन्न पहलुओं पर बातचीत की। कानूनी मामलों के जानकार और चर्चित व्यक्तित्व प्रशांत भूषण तीनों दिन आयोजन में शामिल रहे। इस दौरान उनसे कई बार बातचीत करने और बहुत कुछ सुनने समझने का मौका मिला। उन्होंने जो कुछ कहा, वह कई गंभीर सवालों के साथ-साथ हम सबको सोचने मजबूर करता है।
वनों की कटाई से नुकसान को हम जीडीपी में घटाते क्यों नहीं..?
दूसरे दिन का पहला सत्र प्रशांत भूषण के नाम था। आजादी के बाद अपनाए गए लोकतंत्र और न्याय के संदर्भ में विकास के मॉडल पर वह बहुत कुछ बोले। उनका कहा हुआ कुछ लोगों को नागवार भी गुजरा लेकिन सहमति-असहमति के बीच उनकी बात सबने गंभीरता से सुनी।उन्होंने कहा कि लोगों के लिए अनिवार्य जरूरतें है, जैसे शिक्षा और स्वास्थ्य। पब्लिक सेक्टर (सरकार) को लोगों के स्वास्थ्य, शिक्षा की जवाबदारी संभालनी चाहिए। हरित क्रांति फ टिर्लाइजर उद्योग को बढ़ावा देने की कसरत है। जीडीपी बढ़ाने के चक्कर में खदानें खोदना और एक्सपोर्ट बढ़ाना जरूरी हो गया है। भले ही उससे वनों को कितनी भी हानि हो रही हो। वनों की हानि को हम जीडीपी से नहीं घटाते।
आर्बिट्रेशन अब एक इंडस्ट्री बन चुका
न्यायपालिका पर चर्चा करते हुए प्रशांत भूषण ने कहा कि न्यायपालिका का काम लोगों को न्याय देने के साथ ही विधायिका पर नियंत्रण रखना भी है। अभी हमारी स्थितियां यह है कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट से रिटायर हुए 70 प्रतिशत न्यायमूर्ति किसी न किसी ”जॉब” में लग जाते हैं। आर्बिट्रेशन (मध्यस्थता पहल) एक इंडस्ट्री के रूप में तब्दील हो चुका है, जिसके 15 प्रतिशत फैसले आमतौर पर पब्लिक सेक्टर के पक्ष में नहीं होते। न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए एक स्वतंत्र आयोग बनना चाहिए और न्यायिक सुधारों के लिए बड़ा राष्ट्रीय अभियान चलाया जाना चाहिए। न्यायिक व्यवस्था को सुगम, सस्ता और सवर्मान्य बनाने की कोशिश की जानी चाहिए।
न्यायालय की सुनवाई का सीधा प्रसारण क्यों नहीं..?
उन्होंने आम लोगों से दूर होते न्याय पर भी चिंता जताई और सवाल उठाया कि जब संसद की कार्रवाई का सीधा प्रसारण हो सकता है तो न्यायालय में सुनवाई के दौरान कौन क्या कह रहा है और क्या फैसला हो रहा है, यह जानने सुनने का देशवासियों को अधिकार क्यों नहीं है? उन्होंने कहा-हम लोग कई साल से यह मांग कर रहे हैं कि अगर सीधा प्रसारण नहीं कर सकते तो कम से कम न्यायालय के फैसले के दौरान वीडियो रिकार्डिंग तो करवाई जा सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि विभिन्न सरकारी संस्थाओं में आरएसएस के लोगों और ”भक्त” टाइप लोगों की घुसपैठ हो चुकी है,जो कि चिंताजनक है। इससे देश से जुड़े कई संवेदनशील फैसले प्रभावित हो रहे हैं।
तो क्या आरएसएस का होना गलत है..?
प्रशांत भूषण के इस वक्तव्य के बाद सहमति-असहमति का दौर चला। मध्यप्रदेश से आए एक मीडिया गुरु (उनके विजिटिंग कार्ड में नाम के साथ यही लिखा था) ने सभा के दौरान ही आपत्ति उठाते हुए कहा-सर, ये बताइए क्या आरएसएस का होना गलत है? आपका ”भक्त” कहने का क्या मतलब है? इस पर प्रशांत भूषण ने सिर्फ इतना ही कहा कि आरएसएस के सभी लोगों पर सवाल उठाना उनका मकसद नहीं है लेकिन जो हो रहा है वो तो सच्चाई है। सत्र खत्म होने के बाद उस मीडिया गुरु ने बाहर प्रशांत भूषण को फिर घेरा और अपना सवाल विस्तार से दोहराते हुए कहा-सर, ये बताइए कि पहले जब कांग्रेसी और वामपंथी लोगों की सरकारी तंत्र में घुसपैठ थी, तब वो स्थिति क्या आदर्श थी..?
ये कैसा इतिहास पढ़ाते हैं आरएसएस के लोग..?
प्रशांत भूषण ने तसल्ली से उस मीडिया गुरु का सवाल सुना और फिर बोले-देखिए आरएसएस का होना गुनाह नहीं है और आरएसएस वालों को मैं दुश्मन के नजरिए से नहीं बोल रहा हूं। मैं आपको बताऊं, ये आपके रज्जू भैया जो थे ना पूर्व सरसंघचालक। वो दिल्ली में किसी जमाने में हमारे पड़ोसी थे। रज्जू भैया के पिताजी आरएसएस का एक स्कूल चलाते थे तो उन्होंने एक रोज किसी फंक्शन में हमारे पिताजी (वरिष्ठ अधिवक्त शांतिभूषण) को बुलाया। पिताजी वहां गए तो स्कूल के कार्यक्रम के दौरान ही उन्होंने क्लास-3 की किताब देखी। जिसमें बाकायदा चित्र सहित यह उल्लेख था कि एक मुसलमान राजा था जो हजारों की संख्या में ब्राह्मणों को पेड़ से बंधवाता था और उन पर शहद डलवा कर चींटियां छोड़ देता था। इस तरह लाखों की संख्या में उसने ब्राह्मणों को मौत के घाट उतारा। ये अध्याय देख कर पिताजी बहुत नाराज हुए। उन्होंने रज्जू भैया के पिताजी से कहा कि इन मासूम बच्चों के दिमाग में ये कैसा जहर घोल रहे हैं आप लोग? इससे तो हमारी आने वाली नस्लों के दिमाग में भी नफरत का यह जहर फैलता जाएगा।
उनके पास प्रमाणित इतिहास के लिए जगह नहीं
प्रशांत भूषण बोले-तो आरएसएस में ऐसे लोग भी हैं जिनका मकसद सिर्फ नफरत फैलाना है। उन्हें इतिहास में क्या हुआ उससे कोई मतलब नहीं है। प्रशांत भूषण की इस बात पर मीडिया गुरु ने फिर दूसरा सवाल दागा-सर तो क्या जो इतिहास रोमिला थापर या बिपिन चंद्र बताएंगे वही सही है? इस पर प्रशांत भूषण बोले-आरएसएस की दिक्कत यह है कि उनके पास प्रमाणित इतिहास के लिए कोई जगह नहीं है। उनके किसी भी इतिहासकार का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शोधपत्र भी देखने में नहीं आता है।
अलेक्स पॉल मेनन के ट्विट में गलत क्या है..? आंकड़े देख लीजिए…
इस बीच मीडिया गुरु के सवाल खत्म हुए तो मैनें चलते-चलते प्रशांत भूषण से छत्तीसगढ़ के आईएएस अलेक्सपॉल मेनन के उस ट्विट के बारे में पूछ लिया, जिसमें मेनन ने कहा था कि देश में अब तक ज्यादातर दलित व मुसलमानों को ही फांसी हुई है। प्रशांत भूषण ने पहले तो मेनन के बारे में पूछा फिर बोले-ट्विट में गलत क्या है? आंकड़े देख लीजिए। वैसे इन सारी बातों के बीच प्रशांत भूषण ने बातों-बातों में ”आप” से दूर होने के दिन का वाकया बहुत थोड़े शब्दों में बताया। वह बोले-अरविंद केजरीवाल तो कांग्रेस से सपोर्ट लेकर सरकार बनाने की तैयारी कर चुके थे। वो तो हम और योगेंद्र ही विरोध में थे। ये अलग बात है कि आगे कांग्रेस ने खुद ही इनकार कर दिया।
Muhammad Zakir Hussain की रिपोर्ट. संपर्क : 09425558442