ये बीपी सिंह हैं। बद्री प्रसाद सिंह। रिटायर आईपीएस अफ़सर। जौनपुर के मूल निवासी। आजकल ये फ़ेसबुक पर खुल कर अपने करियर के अनुभवों को लिख रहे हैं। फ़िलहाल ये ‘मेरी नादानियाँ’ सीरिज़ लिख रहे हैं और इसके तीन पार्ट आ चुके हैं। काफ़ी रोचक है ये सीरिज। भविष्य में इस पर फ़िल्म या वेब सीरिज़ भी कोई बना सकता है। पढ़ें आप भी….
मेरी नादानियां १-
Badri Prasad Singh-
बात १९७९ की है, मैं नया नया सीओ अमरोहा बना था जो तब मुरादाबाद जिले में ही था।उस समय डीजल की कमी चल रही थी जिससे जनता त्रस्त थी। पेट्रोल पंपों पर लम्बी कतारें लगती थी और शांति व्यवस्था हेतु पुलिस की ड्यूटी लगाई जाती थी।
एक शाम मेरे अमरोहा कार्यालय पर अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक तथा एडीएम आपूर्ति यकायक आकर मुझे साथ लेकर थाना नौगवां सादात पहुंचे जहां सै थानाध्यक्ष तथा ७-८ पुलिस कर्मी लेकर एक क्रशर (छोटी चीनी मिल) पर पहुंच कर मिल परिसर में तलाशी ली, जहां स्थापित एक टैंक में रखा ७-८ हजार लीटर डीजल मिल गया।
परिसर में ही उसके मालिक का निवास भी था जिसे थानाध्यक्ष बुला लाए।एडीएम ने उस डीजल को अवैध बताकर मालिक को ३/७ आवश्यक वस्तु अधिनियम का अभियुक्त घोषित कर बरामद डीजल की जब्ती का निर्देश दिया जिस पर मालिक ने चीनी मिल हेतु डीजल रखने को वैध बताते हुए बरामद डीजल की खरीद की रसीद होने की बात की लेकिन उसकी सफाई को अधिकारियों ने स्वीकार न किया तथा उसकी बहस से क्रोधित होते हुए अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक ने उसे दो झापड़ जमा दिया, अधीनस्थ होने के कारण मैंने भी उसपर हाथ साफ कर लिया।मालिक को थाने पर लाकर ई.सी. एक्ट में मुकदमा दर्ज कर उसे जेल भेजने का निर्देश देकर दोनों अधिकारी मुरादाबाद चले गए।
मालिक ने बरामद डीजल वैध बताते हुए डीजल क्रय की रसीदें प्रस्तुत कर बताया कि गन्ना की पेराई सीजन में बिजली न रहने पर जनरेटर चलता है जिसके लिए यह डीजल था।गन्ना सीजन समाप्त होने पर यह डीजल बचा था जो अगले सीजन काम देता।वह निर्दोष है।एडीएम के साथ आए पूर्ति निरीक्षक ने भी उसे दोषी नहीं माना।उसकी बात से मैं सहमत तो हो गया लेकिन यक्ष प्रश्न था कि वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देश के अनुपालन में उसे गिरफ्तार कैसे किया जाय? अक्ल के बहुत घोड़े दौड़ाने के बाद भी कोई रास्ता न मिला।रात के १२ बज रहे थे। थानाध्यक्ष दीप सिंह अनुभवी व्यक्ति थे , उन्होंने मुझे घर भेजते हुए कहा कि वह कोई हिक्मत लगाकर गिरफ्तारी दिखा देंगे।मैं निश्चिंत होकर घर लौट आया।
दूसरे दिन मालिक को गिरफ्तार कर मुरादाबाद न्यायालय ले जाते समय दीप सिंह ने मुझे बताया कि एक जाट प्रधान से बीस लीटर डीजल ब्लैक करने की तहरीर लेकर ई.सी. एक्ट का मुकदमा कायम कर मालिक की गिरफ्तारी तथा डीजल की बरामदगी दिखाई है,मैं संतुष्ट हो गया कि अधिकारी के आदेश का आखिर क्रियान्वयन हो ही गया।
मालिक की मुरादाबाद कचहरी में पेशी के समय बवाल हुआ।चीनी मिल मालिकों ने वकीलों की पूरी फौज एकत्र कर अभियोजन पक्ष की खटिया खड़ी कर दी।जो व्यक्ति सरकार को लाखों रूपए आयकर तथा अन्य कर देता हो,वह बीस लीटर डीजल क्यों ब्लैक करेगा,इसका जवाब पुलिस के पास नहीं था,लिहाजा उसकी तत्काल जमानत हो गई तथा अगले दिन के अखबारों में पुलिस की बड़ी भद पिटी।
एक सप्ताह बाद वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अमरोहा आए और डाक बंगले पर मुझे तथा थानाध्यक्ष को बुलाकर पूरी जानकारी ली ।हमने सबकुछ सही सही बता दिया। थानाध्यक्ष को लाइन हाजिर कर दिया तथा मुझे बहुत डांटा और समझाया कि वरिष्ठ अधिकारी के वैध आदेश का ही अनुपालन करना चाहिए। उन्होंने बताया कि चीनी मिल मालिकों के संगठन ने मुख्यमंत्री जी से मिलकर इसकी शिक़ायत की है जिसकी जांच उन्हें मिली है। यदि सतर्कता अधिष्ठान को जांच मिली होती तो मेरा अधिक नुक्सान होता।मैं नया अधिकारी था और अपना व्यवहारिक प्रशिक्षण मुरादाबाद जिले में इन्हीं अधिकारियों के अधीन किया था,इसी से मेरी इस नादानी पर दंडित नहीं किया गया और मात्र व्यक्तिगत पत्रावली पर चेतावनी ही मिली। पुलिस सेवा के प्रारंभ में किए गए ऐसे कार्य के लिए बाद में पछतावा हुआ।
मेरी नादानियां -२
Badri Prasad Singh-
अमरोहा की नियुक्ति के समय नया था,जोश और जज्बा से परिपूर्ण। परिवार गांव में था और मैं अकेला होने के कारण खूब भागदौड़ करता था।नया मुल्ला होने के कारण प्याज अधिक खाता था।
उन दिनों मंगलवार को शराब की दूकान की बंदी होती थी।जब कभी रास्ते में शराब की दूकान खुली मिल जाय तो मैं तत्काल चालान कर देता था।चलान पर ५०-१०० रूपये का जुर्माना हो जाता जो दूकान की दैनिक कमाई के सामने कुछ भी नहीं था।बार बार चालान के बावजूद भी ठेकेदार ने शराब दूकान मंगलवार को खोलना जारी रखा तो मैंने कानून से इतर दूसरा प्रयोग किया। मंगलवार को रास्ते में खुली दूकान देख वहां रुक कर दूकान में रखे देशी शराब के २०० लीटर के ड्रम को उड़ेल देता जिससे उसकी २०० लीटर शराब जमीन पर गिर कर नष्ट हो जाती।
कई बार शराब नष्ट करने पर शराब ठेकेदार ने फ़ोन पर मुझसे कहा कि मैं शराब गिरा कर गैरकानूनी कार्य क्यों कर रहा हूं, दूकान खुलने पर मैं नियमानुसार चालान करूं।मैंने उत्तर दिया कि मंगलवार को बन्दी के दिन जब वह दूकान खोल कर गैरकानूनी कार्य कर रहा है तो मैं भी गैरकानूनी कार्य गैरकानूनी ढंग से रोकूंगा।
मैंने शराब गिराने का कार्य जारी रखा तो ठेकेदार ने मेरे इस कार्य की शिकायत वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से कर दी जिन्होंने मुझे बुलाकर गैरकानूनी कार्य न करने का निर्देश दिया।मैंने समझाना चाहा कि कई बार मेरे चलान करने के बाद भी वह शराब की दूकान मंगलवार को खोलता था इसीलिए मैंने यह कार्यवाही की लेकिन अधिकारी मेरी बात से संतुष्ट न होकर विधिक कार्यवाही ही करने को कहा जिसका परिणाम यह रहा कि मैं मंगलवार को खुली शराब की दुकानों को अनदेखा करने लगा और शराब ठेकेदार कानून का जयकारा लगाता हुआ मंगलवार को भी धड़ल्ले से दूकान खोलने लगा।
मेरी नादानियां -३
Badri Prasad Singh-
मैं अमरोहा से वर्ष १९८१ में स्थानांतरित होकर प्रतापगढ़ आ गया और सीओ कुंडा बना। कुछ माह बाद एक शाम गंगा कछार के एक गांव में एक कुख्यात गैंग से मेरी मुठभेड़ हुई जिसमें एक बदमाश मरा तथा दो गिरफ्तार हुए। उनके पास से एक ९ mm कार्बाइन तथा दो १२ बोर की बन्दूकें मिली जिसमें से एक बर्मिंघम, इंग्लैंड तथा दूसरी स्पेन की बनी थी। कार्बाइन तब पुलिस के भी पास नहीं आई थी।
इस मुठभेड़ से जिले के एक मां. मंत्री जी नाराज हो गए। पहले तो मुठभेड़ को फर्जी बताई, लेकिन गांव वालों के सामने शाम को हुई इस मुठभेड़ को फर्जी नहीं बना पाए। उन्होंने मेरी शिकायत कर कर मुझे कुंडा से पट्टी स्थानांतरित करा दिया।
एक दिन थानाध्यक्ष अंतू पुलिस कार्यालय आकर बताया कि उनके थाने की डकैती का एक वांछित मुलजिम कचहरी में मंत्री जी के वकील पुत्र के बस्ते पर बैठा है। मैंने कहा, गिरफ्तार क्यों नहीं किया, तो वह बोला कि उसके साथ दो सिपाही ही हैं, वकील के बस्ते से गिरफ्तारी पर बवाल होगा।
उस समय पुलिस अधीक्षक प्रयागराज गए थे और जिले का चार्ज मेरे पास था। मैंने पुलिस कार्यालय में उपस्थित सभी दरोगा, मुंशी, पेशकार को एकत्र कर थानाध्यक्ष के साथ भेज दिया जो आधे घंटे में उस डकैत तथा एक अन्य को लेकर आ गए। मैंने दूसरे के विषय में पूछा तो बताया गया कि वह डकैत की गिरफ्तारी में बाधा डाल रहा था तथा नेतागिरी कर रहा था। मैंने कहा कि इसे कचहरी से पकड़े हो, कोतवाली ले जाकर सही सही लिखापढ़ी कर देना। थानाध्यक्ष मुलजिम लेकर कोतवाली चले गए।
शाम को मैं स्वयं कोतवाली जाकर मुल्जिम से पूछताछ की तथा धमका कर उसका बयान टेप कर लिया कि मा. मंत्री जी भी उससे डकैती का हिस्सा लेते हैं। रात में यसपी लौट आए और जिले का हालचाल पूछा तो मैंने यह गिरफ्तारी बता दी। उन्होंने कहा कि मंत्री जी उनके बेटे के बस्ते से हुई गिरफ्तारी से नाराज़ हैं तथा दूसरे को निर्दोष बता रहे हैं। मैंने भी दूसरे को अपराधी न होना परन्तु पुलिस कार्य में बाधा डालने वाला बताया। उनके कहने पर दूसरे की जमानत करा दी।
दूसरे दिन सुबह यसपी मुझे अपने आवास बुला कर टेप वाली बात पूछी, तो मैंने बता दी कि मंत्री झूठी शिकायत कर मुझे परेशान करता है इसलिए यह टेप मैंने किया है, यद्यपि मंत्री डकैती का हिस्सा नहीं लेते। उन्होंने बताया कि दूसरा व्यक्ति छूटने पर मंत्री पुत्र को टेप वाली बात बता दिया, पुत्र ने फ़ोन से मंत्री को बताया और मंत्री देर रात लखनऊ से घर आकर थानाध्यक्ष अंतू को तत्काल निलंबित कर दूसरा थानाध्यक्ष नियुक्त कर आधा घंटे में बताने को कहा है। मैंने कहा कि थानाध्यक्ष निर्दोष है, दोषी तो मैं हूं, वह निलम्बित क्यों होगा? यसपी ने कहा, फिलहाल उसे लाइन हाजिर कर देते हैं, एक महीने में फिर थानाध्यक्ष बना देगे, वैसे भी थानाध्यक्ष की शिकायतें हैं। मैंने कहा कि थानाध्यक्ष बोकरात है लेकिन इस समय उसका हटना ठीक नहीं है उसकी गलती नहीं है।इसी समय मां.मंत्री ने फ़ोन पर नए थानाध्यक्ष का नाम पूछा तो कप्तान ने कहा कि वह तथा बद्री ने विचार कर निर्णय लिया है कि थानाध्यक्ष के बदलने से पुलिस का मनोबल गिरेगा और वह वहीं रहेगा। मां. मंत्री जी नाराज होकर कहा कि वह मां. मुख्यमंत्री से अब बात करेंगे, और फोन रख दिया। कप्तान साहब इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मेरे वरिष्ठ थे और दबंग तथा स्पष्ट वक्ता थे इसलिए मंत्री जी से नहीं डरे।
इसके बाद मंत्री पुत्र, कुछ साथी अधिकारी मेरे पास अलग अलग आए, सबने कहा कि मंत्री जी मुझसे मिलना चाहते हैं, मैं उनसे मिल लूं, मैंने टाल दिया। तीन चार दिन बाद सीओ सिटी दूबे जी आकर मुझे बहुत समझा कर वहां जाने को राजी कर लिया। दूबे जी बुजुर्ग तथा सज्जन व्यक्ति थे जिनकी मैं इज्जत करता था।अगले दिन प्रातः मैं अकेले मां.मंत्री जी के घर जाकर बंद कमरे में उनके दोनों पुत्रों की उपस्थित में बात की। वार्ता पूर्व मैंने शर्त रखी कि हम दोनों सही सही बोलेंगे।
मंत्री जी के पूछने पर मैंने टेप की पूरी बात बताई। उन्होंने पूछा क्या वह डकैतों से धन लेते हैं, मैंने मना किया। फिर? मैंने पूछा कि मेरी मुठभेड़ झूठी थी? वह मेरी झूठी शिकायत कर रहे थे, सो मैंने टेप किया। मंत्री जी पहले तो मेरी शिकायत से मुकरे लेकिन मेरे उठ कर चले जाने की धमकी पर अपनी ग़लती माने। मैंने कहा कि वह मेरा स्थानान्तरण करा सकते हैं लेकिन मैं विधानसभा में यह टेप बजवा दूंगा। मैंने आश्वस्त किया कि जब तक वह मेरी झूठी शिकायत नही करेंगे, यह टेप मैं उनके विरोधिओं को नहीं दूंगा, अपने पास ही रखूंगा, वह निश्चिंत रहें। हम दोनों में समझौता हो गया और मैं उनकी चाय पी कर घर लौटा।
उसी दोपहर को डाक बंगले में अधिकारियों की बैठक संबोधित करते हुए मा.मंत्री जी ने जिलाधिकारी जी से कहा कि जिले के अधिकांश अधिकारी भ्रष्ट हैं, यदि आधे अधिकारी भी बद्री प्रसाद की तरह कर्मठ और ईमानदार हो जाएं तो जिले का सुधार हो जाएं। मां.मंत्री जी के जाने के बाद जिलाधिकारी ने मुझसे कहा कि मैं वह टेप उन्हें भी दे दूं,जिससे वह भी ईमानदार हो जाएं। मैं मुस्कुरा दिया। अधिकारियों ने वह टेप सुनना चाहा जिसे मैंने विनम्रतापूर्वक मना कर दिया। इसके बाद मेरे, मंत्री जी के संबंध सामान्य रहे और मैं चार साल वहां सीओ रहा।