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सुख-दुख

गैंगस्टरबाज IPS वैभव कृष्ण को लेकर पत्रकार दो खेमों में बंटे, पक्ष-विपक्ष में निकाल रहे भड़ास

Vikas Singh Dagar : पत्रकारिता की आड़ में अय्याशी और ब्लैकमेलिंग का धंदा करने वाले तथाकथित पत्रकारों को को जेल भेजकर नोएडा एसएसपी वैभव कृष्ण ने जो काम किया है वो शायद पहले हो जाना चाहिए थे। इनके जेल में जाने के बाद अब कुछ पत्रकार जिनका पत्रकारिता से कोई सरोकार नही वो बौखलाये हुए है। इमरजेंसी बता रहे है इन गिरफ्तारियों को, तानाशाही बता रहे है। क्योंकि इन्हें डर है अगला नम्बर इनका ना हो।

जेल गए अपराधियों में से 2-3 तो अभी कुछ दिनों पहले कॉल सेंटर मालिक से ब्लैकमेलिंग का पैसा लेते हुए रंगे हाथ पकड़े गए थे। तब भी आईपीएस वैभव कृष्ण ने इनको जेल की हवा खिलाई थी। इनकी ब्लैकमेलिंग के किस्स नॉएडा की एक एक दीवार पर छपे हैं। रोज़ नई गाड़ी और रोज़ नया कांड इनकी पहचान बन गयी है। ना पत्रकारिता का कोई कोर्स किया ना समाजहित में पत्रकारिता। ग़ाज़ियाबाद से गिरफ्तार पत्रकार के किस्से भी कम रोचक नहीं हैं। वाहन चोरी में पकड़े जाने के बाद, पत्रकारिता में ऐसे घुसे साहब कि क्या चौकी और क्या थाना, सब में रसूख़। पुलिस वालों को स्कार्ट सर्विस मुहैया कराने और फिर अपना काम निकालना इन लोगों की पत्रकारिता का हिस्सा है।

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भला खुद भी सोचिये जहां मंदी और बेरोजगारी में अच्छे अच्छे सड़क पर आ गए, वहां इन लोगों के पास गाड़ियों की कतार लगी हैं। शर्म आती है खुद को पत्रकार कहते हुए, कोई भी ऐरा गेरा पत्रकार बन गया है। हमें पता होता कि पत्रकार ऐसे बना जाता है तो कोर्स ही क्यों करते। ऐसे ही पुलिस की चमचागीरी करके पैसा कमाते हराम का। जबसे ये व्हाट्सएप, वेबसाइट वाली पत्रकारिता होने लगी तबसे हालात और खराब हो गए हैं। कुत्ते बिल्ली भी पत्रकार बने घूम रहे हैं।

सुपारी जर्नलिज्म चल रहा है। चेहरा देखकर खबर लिखी जा रही है। दुख इस बात का है कि इन जैसे लोगों को जेल में भेजने वालों को तानाशाही और इन्हें भगत सिंह घोषित किया जा रहा है। ऐसे समय मे सही के साथ खड़ा होना जरूरी होता है, हिम्मत देनी होती है, ना कि गलत के साथ खड़ा होकर इसे और मजबूत करना। मुझे पूरा विश्वास है अगर फ़र्ज़ी पत्रकार एसोसिएशनो ने दबाव नहीं बनाया और इस मामले की जांच निष्पक्ष रूप से होने दी, तो इन लोगो के मोबाइल फोन से ऐसे ऐसे राज निकलेंगे कि सबकी बोलती बंद हो जाएगी। थू है ऐसी पत्रकारिता पर। मैंने पहले भी लिखा है और आगे भी लिखता रहूंगा। कहीं नौकरी मिले या ना मिले, मेरी नौकरी रहे या ना रहे। गलत को गलत कहूंगा और कहता रहूंगा।

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युवा पत्रकार विकास सिंह डागर की एफबी वॉल से.


Prashant Shukla : वैभव कृष्ण बनाम मीडिया.. केस स्टडी थोड़ी लंबी है लेकिन वैभव कृष्ण का पूरा चिट्ठा है।

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रहस्य- तब वैभव कृष्ण अपने फर्जीवाड़े के चलते 18 पुलिसकर्मियों समेत सस्पेंड किये गये थे

यूपी पुलिस में आज के तुर्रम खां पुलिस कप्तान IPS वैभव कृष्ण के दिल में मीडिया से इतनी नफरत क्यों है? और क्यों है नोयडा के पूर्व एसएसपी से अदावत…अपने ट्रेनिग पीरियड से ही वैभवकृष्ण अपनी इमेज को लेकर हमेशा सचेत रहे है…गलतियां होने के बाद भी खुद को बड़ा साबित करना उनकी आदत में शुमार है….इसलिए जब भी उनकी गलतियां मीडिया उजागर करता है तो वह खुद को संभाल नही पाते. भड़क जाते है और महकमे और सरकार की थू-थू कराते है.

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ऐसे दो मामले बुलंदशहर में उनकी दो बार की पोस्टिंग के दौरान हुए. पहला उनके एएसपी (ट्रैनिंग) के दौरान और दूसरा इसी जिले में दूसरी बार पुलिस कप्तान बनने पर.

वैभव कृष्ण की नाकामी नंबर- 1

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बात 2013 अप्रैल महीने की 8 तारीख की है. कोतवाली सिटी इलाके के एक गांव की दस साल की मासूम से दुष्कर्म की वारदात हुई. बच्ची के माता-पिता पीड़िता को लेकर थाने पहुंचे, केस दर्ज हुआ. इलाके के एएसपी/सीओ सिटी होने की वजह से इस मामले की जांच वैभव कृष्ण को मिली. कानून को ठेंगे पर रखकर वैभव कृष्ण ने आधी रात को थाने में बच्ची और उसके परिजनों से पूछताछ की और बच्ची को कोतवाली सिटी से सटे महिला थाने की हवालात में बंद करा दिया. मासूम बच्ची जो दुष्कर्म पीड़िता थी साहब बहादुर के आदेश पर पूरी रात और अगले दिन दोपहर तक हवालात में बंद रही.

इस मामले में मीडिया में खबर चलने के बाद तत्कालीन एसएसपी गुलाबसिंह ने महिला थाना प्रभारी समेत कई महिला दारोगा और पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया और उनके खिलाफ बच्ची को अवैध हिरासत में रखने का केस दर्ज कराया गया था. गुलाबसिंह सपा के दिग्गज नेता मोहन सिंह के सगे भाई थे इसलिए अखिलेश सरकार में उनकी तगड़ी पकड़ थी. उन्होने वैभव कृष्ण के खिलाफ कोई कार्रवाई नही होने दी जो केस के विवेचनाधिकारी थे. गुलाबसिंह ने भी अपने पुलिसकर्मियों पर तब कार्रवाई की जब दूसरे दिन इस खबर का स्वत: संज्ञान सुप्रीमकोर्ट ने लिया और राज्य सरकार को तलब कर लिया. वैभव कृष्ण के कैरियर का यह शुरूआती दौर था इसलिए आईपीएस अफसरों ने उन्हें बचा लिया.

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वैभव कृष्ण की नाकामी नंबर- 2

दूसरे मामले के लिए 30 जुलाई 2016 की सुबह याद कीजिए. बुलंदशहर में नेशनल हाईवे 91 पर एक परिवार को होल्डअप करके कार सवार महिलाओं और परिवार की बेटी से गैंगरेप की वारदात हुई. एसएसपी वैभव कृष्ण उस समय बुलंदशहर के कप्तान बन चुके थे. कप्तान बहादुर और उनकी कामचोर टीम इस केस में 36 घंटे बाद भी कुछ ना कर सकी. एक नाकारा एसपी की सलाह पर कप्तान वैभव कृष्ण यह केस बावरिया जाति के दो बेकसूर लड़कों पर खोल दिया. फर्जीवाड़े की पराकाष्ठा देखिए…. इस केस के खुलासे के लिए खुद लखनऊ से डीजीपी जावेद अहमद आए थे और उनके साथ थे उत्तर प्रदेश के गृह सचिव. मगर बावजूद इसके वैभवकृष्ण ने अपना फर्जीवाड़ा डीजीपी के सामने रख दिया और डीजीपी ने पूरी देश की मीडिया के सामने बेकसूर लड़को को गुनाहगार बताकर प्रेसवार्ता कर डाली. प्रेस वार्ता के अंतिम चरण में जब बताया गया कि जिन दो बेकसूरों को पुलिस आरोपी बनाकर जेल भेज रही है उन बावरिया लड़कों का ना तो कोई आपराधिक इतिहास है और ना ही उन्होंने इस वारदात में कोई भूमिका अदा की है. वह तो अपनी बीमार बहन को देखने उसके घर आए थे और गांव के एक मुखबिर ने उगाही के मकसद से थानेदार से सेटिंग करके उन्हें गिरफ्तार करा दिया. बिना किसी केस के, बिना किसी अपराध के उन्हें 2 दिन तक बुलंदशहर के ककोड़ थाने की हवालात में उन्हें रखा गया. 80000 रुपये में मुखबिर के जरिए थानेदार से उन लड़कों को छोड़ने की सेटिंग हुई थी लेकिन हाईवे गैंगरेप केस की पूर्व रात्रि को एसएसपी ने क्राइम मीटिंग बुला ली और लेन-देन नहीं हो पाया. अगली सुबह हाईवे गैंगरेप कांड हो गया तो पूरे जिले की पुलिस केस में जुट गई. ऐसे में वैभवकृष्ण को जरूरत थी बावरिया बदमाशों की. हवालात में 2 दिन से बंद बावरिया बेकसूर लड़कों को इस केस का मोहरा बना दिया गया.

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नोट- मुखबिर का स्टिंग ऑपरेशन रखा हुआ है..जल्दी वीडियो के साथ उजागर करूंगा

प्रेस कॉन्फ्रेंस के अंतिम चरण में यह मामला तब खुला जब एक स्थानीय पत्रकार ने डीजीपी से बेकसूर लड़कों की तस्दीक करने के लिए ककोड़ थानेदार को बुलवाने के लिए कहा. भरी प्रेस कॉन्फ्रेंस में पत्रकार ने बीजेपी को बताया के दोनों लड़के बेकसूर हैं और गैंगरेप की वारदात से दो दिन से ककोड़ थाने की हवालात में केवल उगाही के लिए बंद रखे गए थे. इनमें से एक लड़का तो नाबालिग है. उसकी उम्र ही 14 साल है. राष्ट्रीय मीडिया के सामने अपनी भद्द पिटते देख जावेद अहमद पैर पटकते हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस चले गए.

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बाद में जब इसी बात की तस्दीक डीजीपी ने एसएसपी से की गई तो एसएसपी वैभव कृष्ण को जवाब नहीं आया. मुख्यमंत्री को इस पूरे मामले की जानकारी दी गई और फिर इस केस में बीट सिपाही से लेकर एसएसपी तक सब सस्पेंड कर दिए गए. इस केस में पुलिस ने फरीदाबाद के बबलू और पंजाब के भटिंडा के नरेश ठाकुर (दोनों बावरिया जाति से थे और सगे मौसेरे भाई थे) को आरोपी बनाया था. प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद जब पुलिस की भद्द पिटी तो इन्हें जेल नहीं भेजा गया. इन्हें अगले 15 दिन तक आईजी मेरठ सुजीत पांडेय की स्पेशल टास्क टीम बंधक बनाकर अपने साथ रखे रही

नोट- तत्कालीन डीआईजी लक्ष्मी सिंह का वोडियों सीक्वेंस भी है जिसमें जब उन्हें पत्रकारों के सवाल का जवाब नहीं आया तो उन्होंने रिपोर्टर से कैमरा बंद करने के लिए मीडिया से रिक्वेस्ट की

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इनकी जगह रातों-रात हापुड़ के शाहबाज और नोएडा के जबर सिंह को आरोपी बना दिया गया. हालांकि बाद में सीबीआई ने आरोपी बनाये गये शाहबाज और जबरसिंह और बुलंदशहर के सुतारी गांव के रईस को भी क्लीन चिट दे दी थी और उनके खिलाफ चार्जशीट फाइल नही की. इन तीनों की बाद में जमानत हो गई और करीब एक साल बाद असल आरोपी हरियाणा में पकड़े जाने के बाद सभी को क्लीनचिट मिल गई.

पुलिसिंग में ज़ीरो रहे वैभव कृष्ण की गाजियाबाद और नोएडा में जो इमेज बनाई गयी, वो इमेज दरअसल उत्तर-प्रदेश और केन्द्र की सरकारों की मीडिया द्वारा इमेज मेकिंग कैम्पेन का हिस्सा है. दिल्ली से सटे और हमेशा चर्चा में रहने वाले जिलों में वह एसएसपी रहे तो मीडिया लाइमलाइट दूसरे जिलों के पुलिस कप्तानों से उन्हे ज्यादा मिलती है. बड़े अपराधों और कानून-व्यवस्था के फेल्योर पर सरकार के खिलाफ अब खबरें नही चलती इसलिए इन जैसे नाकारा अफसरों की कुर्सी महफूज है. मीडिया ने पहले जो दर्द दिये उसके लिए वैभव कृष्ण एक तीर से दो शिकार कर रहे है. वह अपने प्रतिद्वंदी आईपीएस अफसर और उसके नजदीकी पत्रकारों को ठिकाने लगा रहे है. यानी एक तीर से दो शिकार. मैं नही कहता कि पत्रकार दूध के धुले है. कमीने भी है और भ्रष्ट भी. लेकिन सब नही है. आज भी पत्रकारिता जिंदा है जिसका लाभ वैभव जैसे अफसरों को भी मिल रहा है.

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सवाल यह है कि एक ही अपराध की चक्की में सबको पीस देना कहां तक ठीक है. आपने पत्रकार के खबर लिखने को जुर्म बताते हुए उसे जेल भेज दिया. चलिये कोई बात नही. अभी कोर्ट जिंदा है. लेकिन इन जैसे सनकी अफसरों को सजा कौन देगा. जाहिर है यह जिम्मेवारी मीडिया की ही है जो उसे कोर्ट के कटघरे तक खींचकर ले जाये. लेकिन बड़े मीडिया घराने इन जैसे अफसरों की चाटुकारता में रहते है. उन्हें नोयडा में अपना बिजनैस जमाये रखना है. कप्तान से दस काम निकलवाने है. मालिकों की दर्जनों बेगार पुलिस कप्तानों के जिम्मे होती है. इसलिए ये चुप रहते है और है भी. कोई बात नही. सोशलमीडिया जर्नलिज्म के युग में इन मालिकान ही यह हालत हो चुकी है. लेकिन वैभव कृष्ण जैसे अफसर आखिर कैसे आम पत्रकार की आवाज दबा पायेगे. नकारिये ऊपर लिए इन तथ्यों को. नकारिये कि आप नाकारा नही है. नाम कृष्ण होने से कुछ नही होता. अपने गिरेबां में झांकिये और सोचिये कि आप जिस दयालुता और ईमानदारी का ढिंढौरा पीटते है वह कितना थोथा है. आपकी थोथी दयालुता और ईमानदारी के परदे के पीछे कितने बेकसूर जेलों में बंद है. कितने परिवार तबाह हुए और कितने लोगों को आपकी इस जहालत के चलते महीनों, बरसों कष्ट भोगने पड़े. दे पायेगे जबाब. नही दे पायेगे. इसलिए बेहतर होगा अपनी मानसिकता बदल लीजिए

कई न्यूज चैनलों में कार्य कर चुके युवा पत्रकार प्रशांत शुक्ल की एफबी वॉल से.

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Sudhir Singh : प्रकृति के काल से भी खौफ खाइए कप्तान वैभव कृष्ण जी। नोयडा में 5 पत्रकारों पर गैंगेस्टर लगा कर सुर्खी में आये कप्तान वैभव कृष्ण जी को बड़ी उपलब्धि की ढेर सारी शुभकामनायें। पत्रकारों के खबर छापने के एवज में जेल भेज कर वैभव जी की मूंछे और बड़ी हो गयी होंगी। लेकिन वैभव जी याद रखियेगा, यह समय का चक्र है। कुर्सी और सत्ता मादकता लाती है, एक अजीब सी मदहोसी लाती है। इसके गुरूर में कुछ गलत फैसले भी जिंदगी में हो जाते हैं। अपराधियो की बजाय पत्रकारों पर नकेल लगाना कहीं न कहीं तानाशाही रवैय्या ही प्रदर्शित करता है।

ये पत्रकार चाहें जितना बड़ा अपराध करें, लेकिन ये आपकी नोयडा की गलियों में गोलियां नहीं बरसाते होंगे। हां, गोलियों की आवाज से छलनी होते उनके कान के पर्दे जब लचर होते हैं तो वो खबर छाप देते हैं ताकि आप उन खबरो का संज्ञान लेकर कुछ ऐसी कार्यवाही करें ताकि गोलियों की आवाज थोड़ी मद्धिम पड़ जाए। या फिर जब आपकी पुलिस अपनी वर्दी की मर्यादा भूल सिक्कों की खनक पर पाव में घुघरू बांध नाचती दिखती है तो ये बेचारे खबरे छाप देते होंगे। ताकि आप जैसा तेजतर्रार कप्तान के बंद कमरे के अंदर घुघरू की आवाज पहुंचे और आप अपने मातहतों को फटकार सकें कि अरे भाई थोड़ा धीरे धीरे नाचो, ये आवाज इतनी भी तेज नहीं होनी चाहिए कि बेसुरी हो जाय। जनता चीखने लगे।

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मशहूर शायर का एक शेर है- “वो आये थे बंद कराने तवायफों के कोठे, मगर सिक्कों की खनक देख खुद नाच बैठे”। लेकिन आप तो अपने मातहतों की जीहुजूरी से ही इतने प्रसन्न हो गए कि आप को कोई बेसुरी आवाज सुनाई ही नही पड़ती। आप सुनना भी नहीं चाहते क्योंकि आपके कान मातहतों की झूठी तारीफ सुनने के आदी हो चुके हैं। इसलिए आप उस आवाज का गला घोंट देना चाहते है। मुकदमा दर्ज कर और गैंगेस्टर लगा कर। लेकिन साहब इस बात का ध्यान रखिएगा आप की कुर्सी से बडी कुर्सी को लडखडाते हुए देखा है हमने। जब किसी के कर्म इतने खराब हो जायें कि दिल से बद्दुवा निकलने लगे, आह निकलने लगे, आत्माएं दुखी होने लगे, तब पाप का घड़ा भरता है और फूटता है। और जब फूटता है न, तब आईपीएस बंजारा के जेल जाने की कहानी दुनिया के सामने आती है। आईएएस एपी सिंह, आईएएस नीरा यादव बना देती है। कभी इनके भी सामने सैकड़ो आईएएस आईपीएस सलामी ठोकते थे। लेकिन काल चक्र बदला तो कटघरे में फफक फफक कर रोते सारी दुनिया ने देखा है।

कुछ अतीत से भी सीखिए साहब। ये पत्रकार तो आवारा होता है, फकीर होता है। इसकी शुरुआत ही प्रतिरोध से होती है। सच को सच कहना और सच आप तक या आपके ऊपर पहुंचाना ही इनका पेशा है। अगर सिस्टम की खामियों को ये आप तक नहीं पहुचायेंगे तो आप सुधार कैसे करेंगे। ये बेचारे पत्रकार तब भी आपके पास बिना बुलाये दौड़े जाएंगे जब भगवान न करे लेकिन आप का कभी बुरा वक्त आये। इतना बड़ा जुल्म मत कीजिये साहब। प्रकृति बर्दाश्त नहीं करेगी। आपकी मूंछो से बड़ी मूंछे थीं रावण की लेकिन उनके साम्राज्य को भी बिना मूंछ वाले दो भाइयों राम लखन ने तोड़ दिया था। आप सब कुछ कीजिये लेकिन अहंकार और मादकता ठीक नहीं है। पत्रकारों पर मुकदमा कुछ ज्यादा हो गया। एक बार फिर विचार कीजिये। अगर आपको लगता है कि कही पाप हुआ है तो उसका प्रायश्चित कर लीजिए। ये भी इंसान हैं। शूटर नहीं हैं। “हम गम के आंसू भी रो सकते हैं, आखों के अश्क से किसी का दामन भी भिगो सकते हैं, नींद आती नहीं होगी फूलों के सेज पर सरताज को, लेकिन हम तो दीवाने हैं कांटो पर भी सो सकते हैं”।

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आजमगढ़ के टीवी पत्रकार सुधीर सिंह उर्फ गब्बर की एफबी वॉल से.


Gaurav Singh Sengar : जन्माष्टमी चल रही है,और नोयडा वाले कृष्ण जी का वैभव खतरे के निशान के ऊपर है. इसी सम्बन्ध में परम् वैभव साहब का एक वाकया याद आ गया. सपा सरकार के जमाने में बुलन्दशहर में एक वीभत्स गैंगरेप हुआ था ,रात में. पति पत्नी को बंधक बनाया गया. पति के सामने रेप और लूट हुई थी. उस समय बुलन्दशहर के कप्तान सर्वश्रेष्ठ ईमानदार वैभव कृष्ण ही थे. भारी बवाल के बाद 36 घण्टे तक FIR न दर्ज़ करने पर सस्पेंड हुए थे. तत्कालीन DGP जावीद अहमद, जो कृष्ण जी से अगाध स्नेह करते थे, उन्होंने ताकत झोंक दी थी कि कृष्ण जी के वैभव में कोई कमी न आये. लेकिन भारी लापरवाही उजागर होने पर अखिलेश यादव ने इन्हें सस्पेंड कर दिया था. कुछ समय बाद अहमद साहब के प्रखर मैनेजमेंट से इन्हें जिला मिला था. लॉ & ऑर्डर कैसा भी हो, भाई ईमानदार हैं, हैं तो हैं!!!!

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युवा पत्रकार गौरव सिंह सेंगर की एफबी वॉल से.


उपजा ने की गोतमबुद्ध नगर में पत्रकारों की गिरफ्तारी की निंदा

नेशनल यूनियन आफ जर्नलिस्ट्स (आई) के राष्ट्रीय सचिव व उ0प्र0जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन (उपजा) के प्रान्तीय महामंत्री प्रदीप शर्मा ने गौतमबुद्ध नगर प्रशासन द्वारा षडयंत्र के तहत 5 पत्रकारों को गैंगस्टर में निरूद्ध कर जेल भेजे जाने की घटना की तीव्र निंदा करते हुए उप्र सरकार से दोषी अधिकारियों के विरुद्ध सख्त कार्यवाही करने व पत्रकारों की शीघ्र रिहाई की मांग की है। प्रदीप शर्मा ने कहा कि जिला प्रशासन द्वारा तानाशाही दर्शाते हुऐ पत्रकारों को जबरन जेल भिजवाने की कार्यवाही लोकतंत्र पर कुठाराघात है और इसकी जितनी निंदा की जाए कम है। पत्रकारिता को अपनी इच्छानुसार कार्य कराने का नापाक इरादा लिऐ पुलिस अधीक्षक गौतमबुद्ध नगर ने जो तानाशाही प्रदर्शित करते हुऐ नोएडा के पत्रंकारों को गैंगस्टर मे सीधे निरुद्ध कर जेल भेजते हुऐ पत्रकारों के दमन करने का प्रयास किया है वह सम्पूर्ण पत्रकारिता जगत पर घातक प्रहार है। प्रदीप शर्मा ने उप्र जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन (उपजा) की समस्त जिला ईकाईयों को आह्वान करते हुए कहा कि हमें पुलिस अधीक्षक के इस कृत्य को हलके में नहीं लेकर एक तानाशाह पुलिस अधिकारी के पत्रकारों के प्रति नापाक इरादों को भांपते हुए खुलकर विरोध दर्ज कराएं।

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1 Comment

1 Comment

  1. madan kumar tiwary

    August 30, 2019 at 5:13 pm

    पुलिस ने सही काम किया है, इससे फर्जी, ब्लैकमेलर ,अय्यास तथाकथित पत्रकारों पर लगाम लगेगा, मैं तो पहले से ही कह रहा था कि ये चारों ब्लैकमेलर हैं

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