वरिष्ठ आपीएस अधिकारी सतीश शुक्ल की एक और कृति बाजार में आई है। दो दर्जन छोटी छोटी कहानियों के संग्रह के साथ ‘लड़की जीत गई’ नाम से उन्होंने साहित्य के क्षेत्र में पहली बार कदम रखा। इसके ठीक एक साल बाद ‘इत्ती सी बात’ नाम का एक लघु उपन्यास हाल ही में प्रकाशित हुआ है। पिछली बार से सबक लेते हुए इस बार उनकी कृति को पढ़कर यह नहीं लगता कि पुलिस की व्यस्त नौकरी करने वाला एक अधिकारी इस तरह का साहित्य सृजन कर सकता है। ‘इत्ती सी बात’ से सतीश शुक्ल ने खुद को मंझे हुए कलमची की फेहरिस्त में शामिल कर लिया है। उपन्यास में उन्होंने गहराई में उतरकर दो दोस्तों के बीच की मुक़दमेबाजी का खूबसूरत अंदाज में वर्णन किया है।
हिन्दी व उर्दू के शब्दों का सामन्जस्य अच्छा है। कहीं कहीं पर मुहाबरों का प्रयोग भी बेहतर ढंग से किया गया है। दरअसल ‘इत्ती सी बात’ दो पड़ोसियों की घटनाओं की किस्सागोई है। मामूली सी बात पर लम्बी मुक़दमेबाजी पर ही पूरा उपन्यास आधारित है। इस बीच एक कन्या का प्रवेश एक नया मोड़ लेता है। इसमें कन्या को बोझ समझने जैसी बीमार मानसिकता पर भी प्रहार किया गया है। अंत तक पाठकों की जिज्ञासा बनी रहती है। ग्रामीण जीवन शैली के विविध रंगों को ‘इत्ती सी बात’ के माध्यम से सामने लाने का बेहतर प्रयास कहा जा सकता है। पूरा उपन्यास सत्ताइस अध्यायों में बंटा है। काफी अर्से बाद ग्रामीण परिवेश को शब्दों से गूंथा गया है।
रिक्शा चालक से पुलिस अधिकारी और अब साहित्यकार के रूप में सतीश शुक्ल का अब तक सफर बेहद उतार चढ़ाव वाला रहा है। हालांकि बचपन से ही वो पढ़ाई के प्रति संजीदा रहे हैं। हाईस्कूल से ही मेधावी छात्रों में रहे शुक्ल ने उच्च कक्षाओं में भी अपना सिक्का बनाये रखा। बी.एच.यू. जैसे संस्थान से स्नात्कोत्तर उपाधि करने के बाद उन्होंने एफ.आर.आई. से भी प्रशिक्षण प्राप्त किया और वन सेवा में अधिकारी वन गये। यहां कुछ समय नौकरी करने के बाद वो उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग में चयनित होकर प्रांतीय पुलिस सेवा का अंग बने। राज्य बनने के बाद उन्होंने उत्तराखंड में सेवा करने का मन बनाया। वर्तमान में पुलिस मुख्यालय में पुलिस उपमहानिरीक्षक पद पर कार्यरत हैं।
डीआईजी से सतीश शुक्ल से जब पूछा गया कि पुलिस की व्यस्ततम नौकरी के बीच आप साहित्य सृजन के लिए कैसे समय निकालते हैं तो उनका कहना है कि दोनों ही काम बिल्कुल अलग-अलग हैं। यह बात कांच की तरह साफ है कि पुलिस की भागामभाग की नौकरी के बीच में समय निकालना आसान काम नहीं था, फिर भी मुझे सेवाकाल में जब कभी भी मौका मिला तो मैने छोटी छोटी कहानियां लिखना शुरू कर दिया। देखते ही देखते 20-25 कहानियां तैयार हो गई और ‘लड़की जीत गई’ इसकी बानगी आपके सामने है। सतीश बताते हैं कि अध्ययन के दौरान ही मैं साहित्यक व अन्य पाठयेत्तर गतिविधियों में भाग लेता रहा। ऑल इंडिया रेडियो में सक्रिय भाग लिया। गोरखपुर में बाल सखा कार्यक्रम में वार्ताओं का प्रस्तुतीकरण किया। उम्र के इस पड़ाव में अनुभव किया कि विचारों को स्थाई रूप देने के लिए लेखन से सुदंर अन्य कोई कार्य नहीं है।
कुल मिलाकर साहित्य की यात्रा के प्रथम चरण में पुलिस अधिकारी सतीश शुक्ल का अब तक का सफर उपलब्धियों से भरा रहा है। हालांकि अब तक उनका एक कहानी संग्रह ‘लड़की जीत गई’ और एक उपन्यास ‘इत्ती सी बात’ प्रकाशित हुये हैं लेकिन दोनों ही कृतियों को खासा रिस्पोन्स मिला है। सृजन के अगले पड़ाव में बहुत जल्द ही एक कथा संग्रह प्रकाशन की प्रतीक्षा में है। इसके अलावा एक वृहद उपन्यास दो खण्डों को लिखा जा चुका है। उम्मीद की जानी चाहिए कि पुलिस सेवा की सफलता के बाद सतीश शुक्ल साहित्य की सेवा भी उसी कर्मठता व ईमानदारी के साथ करेंगे।
बृजेश सती/देहरादून
9412032437
Lalit mishra
October 17, 2014 at 10:21 am
Great Sir ji. Likhte Rahiye.