Connect with us

Hi, what are you looking for?

वेब-सिनेमा

पत्रकार की जाति : राजदीप सरदेसाई और प्रभाष जोशी तक अपने ब्राह्मण नस्ल का महिमामंडन कर चुके हैं!

Mukesh Kumar : ये अच्छी बात है कि पत्रकारों ने अपने जातीय गर्व को सरे आम प्रकट करना शुरू कर दिया है और उसे उन्हीं की बिरादरी से चैलेंज भी किया जा रहा है। इससे मीडिया में जातिवाद की परतें खुलेंगी। लोगों को पता चलेगा कि पत्रकारों में जातीय अहंकार किस-किस रूप में मौजूद है और वह कंटेंट के निर्माण में किस तरह से काम करता होगा।  हम सब जानते हैं कि मीडिया भी इसी जातिवादी समाज का हिस्सा है, इसलिए उसी रूप में जातिवाद भी वहाँ मौजूद है, मगर उसे मानने से हम इंकार भी करते रहे हैं। मीडिया को ऐसी पवित्र गाय की तरह पेश करते रहे हैं कि मानो वह जाति, धर्म और दूसरे विभाजनों से ऊपर है और अगर समतावाद कहीं है तो मीडिया में ही।

<script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script> <script> (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({ google_ad_client: "ca-pub-7095147807319647", enable_page_level_ads: true }); </script> <p>Mukesh Kumar : ये अच्छी बात है कि पत्रकारों ने अपने जातीय गर्व को सरे आम प्रकट करना शुरू कर दिया है और उसे उन्हीं की बिरादरी से चैलेंज भी किया जा रहा है। इससे मीडिया में जातिवाद की परतें खुलेंगी। लोगों को पता चलेगा कि पत्रकारों में जातीय अहंकार किस-किस रूप में मौजूद है और वह कंटेंट के निर्माण में किस तरह से काम करता होगा।  हम सब जानते हैं कि मीडिया भी इसी जातिवादी समाज का हिस्सा है, इसलिए उसी रूप में जातिवाद भी वहाँ मौजूद है, मगर उसे मानने से हम इंकार भी करते रहे हैं। मीडिया को ऐसी पवित्र गाय की तरह पेश करते रहे हैं कि मानो वह जाति, धर्म और दूसरे विभाजनों से ऊपर है और अगर समतावाद कहीं है तो मीडिया में ही।</p>

Mukesh Kumar : ये अच्छी बात है कि पत्रकारों ने अपने जातीय गर्व को सरे आम प्रकट करना शुरू कर दिया है और उसे उन्हीं की बिरादरी से चैलेंज भी किया जा रहा है। इससे मीडिया में जातिवाद की परतें खुलेंगी। लोगों को पता चलेगा कि पत्रकारों में जातीय अहंकार किस-किस रूप में मौजूद है और वह कंटेंट के निर्माण में किस तरह से काम करता होगा।  हम सब जानते हैं कि मीडिया भी इसी जातिवादी समाज का हिस्सा है, इसलिए उसी रूप में जातिवाद भी वहाँ मौजूद है, मगर उसे मानने से हम इंकार भी करते रहे हैं। मीडिया को ऐसी पवित्र गाय की तरह पेश करते रहे हैं कि मानो वह जाति, धर्म और दूसरे विभाजनों से ऊपर है और अगर समतावाद कहीं है तो मीडिया में ही।

Advertisement. Scroll to continue reading.

कुछ समय पहले राजदीप सरदेसाई ने अपने गौड़ सारस्वत ब्राम्हण होने का सार्वजनिक इज़हार किया था। उससे भी पहले स्वर्गीय प्रभाष जोशी ने ब्राम्हण नस्ल का महिमामंडन करके जताया था कि संपादकों के स्तर पर भी ये किस हद तक मौजूद है।  तो आइए महानुभावों अब देर न कीजिए।, वे सब जिन्हें अपनी जातियों पर गर्व है और इस वजह से श्रेष्ठताबोध से भरे हुए हैं, घोषित करें कि वे क्या हैं-ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र या कुछ और? ये छिपाने का नहीं बताने का समय है, क्योंकि बहुत सारे लाभ इसी आधार पर बँटते आए हैं और अब तो खूब बँट रहे हैं। जाति बताइए, प्रसाद पाइए (छोटी जातियों के लिए दंड तो मनु बाबा ही तय कर गए हैं)। लेकिन ज़ाहिर है कि एकाध फ़ीसदी लोग ऐसे भी होंगे जो इनसे सचमुच में मुक्त हैं या मुक्त होने की ईमानदार कोशिशों में लगे हुए हैं। वे बचे हुए लोग डंके की चोट पर कहें कि मैं पत्रकार हूँ, केवल पत्रकार।

वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार के इस एफबी पोस्ट पर आए कुछ प्रमुख पठनीय कमेंट्स इस प्रकार हैं….

Advertisement. Scroll to continue reading.

Sunil Kumar जी, मैं सिर्फ पत्रकार हूं। लेकिन इसी प्रसंग में एक बड़े मीडिया संस्थान की बात कहता हूं। 2007 में मैं एक बड़े संस्थान में इंटरव्यू देने गया था। वहां मुझसे पहले सवाल पूछा गया कि सुनील जी, आपका पूरा नाम क्या है? मैंने कहा सुनील कुमार। उस सज्जन ने एचआर महोदया के सामने फिर से पूछा—नहीं, सुनील कुमार के बाद क्या? मैंने कहा- जी सिर्फ सुनील कुमार। फिर उन्होंने मेरे पिताजी का नाम देखा, उसमें भी उन्हें टाइटिल नहीं मिला, तो वहां भी पूछ दिया कि अच्छा आपके परिवार में कौन-कौन हैं, उनका क्या नाम है, क्या पेशा है, कुल मिलाकर वो मेरी जाति पूछना चाहते थे। चिढ़कर मैंने ही कहा, कि साब, सीधे-सीधे कहिए कि आप मेरी जाति जानना चाहते हैं, जो वह हड़बड़ा गये। कहा- नहीं, नहीं सुनील जी, ऐसी बात नहीं है। बहरहाल मैं उठकर चला आया। आपने लिखा परते खुलेंगी, मुझे नहीं लगता सर, क्योंकि इनके सिरमौर इतने घाघ है कि वो नये-नवेलों को तो पता तक नहीं चलने देते। यह जातिवाद स्पष्ट तौर पर दिखता है सर, खासतौर पर ब्राह्मणवाद और भूमिहारवाद। इससे एक बार फिर सामना हुआ अभी पिछले दिनों। जातिवादी चश्मे से सबको देखने वाला यह वर्ग हर चीज को सिर्फ उसी चश्मे से देखता है। पिछले दिनों एक संपादकजी से मुलाकात हुई, उन्होंने पूछा आजकल क्या कर रहे हैं, मैंने कहा सर, लोक कला परंपरा में दलितों की भूमिका पर रिसर्च कर रहा हूं। उन्होंने कुछ जानकारिया लीं और फिर उसी जानी-पहचानी लीक पर उतर गये कि सारी परंपराएं ब्राह्मणों द्वारा विकसित हैं और लोक तो उनका अनुकरण मात्र करता है। बहरहाल, मीडिया संस्थानों में जातीय पूर्वाग्रह किस प्रकार है, यह मैं क्या लिखूंगा सर, इस क्षेत्र में आपका लंबा अनुभव है और आप भली-भांति परिचित है।

Umesh Chaturvedi भाई साहब, आपकी आक्रामकता कड़वी है और अहम भी..लेकिन आप जिस जातिवाद के बहाने जिस वर्ग को उजागर कर रहे हैं..वह भी एकतरफा ही है..एक सज्जन हैं..काफी क्रांतिकारी पत्रकार हैं..फेसबुक पर भी आक्रामकता से ऐसे विमर्श उजागर करते रहते हैं..जैसा कि मेरे नाम से ही जाहिर है..जातिगत स्तर पर उनसे उंचा ही है ..एक दौर में उस सज्जन के टूटहे स्कूटर पर उनके अलावा मैं ही बैठता था..इससे भ्रम हो गया कि हम दोनों दोस्त हैं..इसलिए जब एक अच्छी जगह के वे प्रभारी बने और मेरे दुर्दिन थे तो मैं उनसे नौकरी मांगने गया..उन्होंने बढिया सी चाय पिलाई और टाल दिया…रही बात मीडिया की जातिवाद की तो भाई साहब, मुझे तो आजतक इसका फायदा नहीं मिला..ना तो मेरे जातिवालों ने मुझे उचित मौका दिया और ना ही कथित क्रांतिकारी-जातिविरोधियों ने..और यह कम से कम अब मैं नहीं मानता कि मैं मलाई खा रहे गधों की तुलना में अयोग्य हूं..हां छात्र जीवन में जातिविरोधी पढ़ाई के बाद विकसित सोच के चलते मानता था कि मैं ही अयोग्य रहा हूंगा जो मौका नहीं मिला..इसलिए एकतरफा आक्रामकता को छोड़िए और दूसरे तरफ के जातिविमर्श पर भी हमला बोलिए…

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

0 Comments

  1. arun sharma

    June 9, 2016 at 6:24 am

    sharma shabd pr lge prasnchinh ujala k naresh sharma ne 2011 me mujse tb ye saval pucha jb mai vaha tranee karne gaya tha kaha kaun sharma ho mujhe aascharya hua ki itne bade sanshan me jati , unhone kafi comment kiye aur kaha ab dobara office ki taraf palat kr ni dekna kaha chube banne chale h

  2. सचिन

    June 16, 2016 at 9:08 am

    मुकेश कुमार जी एक दम सही लिखा है…इस फील्ड में कुछ ज्यादा ही जातिवाद है…कुछ लोग इस क्षेत्र को बपौति समझ बैठे है इसिलिए काबिलियत की जगह जातियता ने ले ली है…

Leave a Reply

Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement