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सुख-दुख

जगेंद्र को फूंकने में नेता, अपराधी, पुलिस और पत्रकार की साजिश

मृत्‍योपरान्‍त किसी व्‍यक्ति को वास्‍तविक पहचान दिलाते हुए शहीद के तौर पर सम्‍मानित करना और अपने पापों का सार्वजनिक क्षमा-याचना करते हुए पश्‍चाताप करना बड़ी बात माना जाती है। इतिहास तो ऐसे मामलों से भरा पड़ा हुआ है, जब सरकार या किसी समुदाय ने किसी को मार डाला, लेकिन बाद में उसके लिए माफी मांग ली। ठीक ऐसा ही मामला है शाहजहांपुर के जांबाज शहीद पत्रकार जागेन्‍द्र सिंह और उसके प्रति मीडिया के नजरिये का। इसी मीडिया ने पहले तो उसे ब्‍लैकमेलर और अपराध के तौर पर पेश किया था। फेसबुक आदि सोशल साइट पर अपना पेज बना कर खबरों की दुनिया में हंगामा करने वाले जागेन्‍द्र सिंह को शाहजहांपुर से लेकर बरेली और लखनऊ-दिल्‍ली तक की मीडिया ने उसे पत्रकार मानने से ही इनकार कर लिया था। लेकिन जब इस मामले ने तूल पकड़ लिया, तो मीडिया ने जागेन्‍द्र सिह को पत्रकार के तौर पर सम्‍बोधन दे दिया।

मृत्‍योपरान्‍त किसी व्‍यक्ति को वास्‍तविक पहचान दिलाते हुए शहीद के तौर पर सम्‍मानित करना और अपने पापों का सार्वजनिक क्षमा-याचना करते हुए पश्‍चाताप करना बड़ी बात माना जाती है। इतिहास तो ऐसे मामलों से भरा पड़ा हुआ है, जब सरकार या किसी समुदाय ने किसी को मार डाला, लेकिन बाद में उसके लिए माफी मांग ली। ठीक ऐसा ही मामला है शाहजहांपुर के जांबाज शहीद पत्रकार जागेन्‍द्र सिंह और उसके प्रति मीडिया के नजरिये का। इसी मीडिया ने पहले तो उसे ब्‍लैकमेलर और अपराध के तौर पर पेश किया था। फेसबुक आदि सोशल साइट पर अपना पेज बना कर खबरों की दुनिया में हंगामा करने वाले जागेन्‍द्र सिंह को शाहजहांपुर से लेकर बरेली और लखनऊ-दिल्‍ली तक की मीडिया ने उसे पत्रकार मानने से ही इनकार कर लिया था। लेकिन जब इस मामले ने तूल पकड़ लिया, तो मीडिया ने जागेन्‍द्र सिह को पत्रकार के तौर पर सम्‍बोधन दे दिया।

लेकिन इस प्रकरण पर मीडिया और सरकार का नजरिया निष्‍पाप नहीं है। मीडिया तो अब उन लोगों पर निशाना लगाने को तैयार है, जिन्‍होंने जागेन्‍द्र सिंह को पत्रकार मानने के लिए बाकायदा जेहाद छेड़ा है। खबर मिली है कि लखनऊ के ही कुछ स्‍वनामधन्‍य पत्रकारों का एक गिरोह मुझ पर भी हमला करने की साजिश कर रहा है। बहरहाल, उधर सरकार ने जागेन्‍द्र की हत्‍या के 8 दिनों तक मुकदमा तक दर्ज नहीं कराया। बाद में नौ जून को एफआईआर दर्ज हो गयी, लेकिन उसके पांच दिन कोतवाल समेत पाचं पुलिसवालों को मुअत्‍तल किया गया। लेकिन आज तक न राज्‍यमंत्री राममूर्ति वर्मा को बर्खास्‍त कर उसे जेल भेजा गया और न ही अन्‍य अपराधियों पर कोई ठोस कार्रवाई हुई। पत्रकार बिरादरी की यूनियनें तो इस मसले पर बिलकुल चुप्‍पी साधे हुए हैं।

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अब आइये हम दिखाते हैं ऐसे शहीदों को मृत्‍योपरान्‍त सम्‍मान दिलाने की चन्‍द घटनाएं

मामला एक:- 

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30 मई 1431 को जॉन ऑन ऑर्क की उम्र सिर्फ 19 साल थी, जब फ्रांस पर काबिज अंग्रेजी हुकूमत ने उसे डायन करार देते हुए उसे जिन्‍दा जला दिया था।

वह अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बाकायदा जेहाद छेड़े हुए थी। वह चार्ल्स सप्तम के राज्याभिषेक के दौरान पकड़ी गयी और कॉम्पियैन में इन्हें अंग्रेजों ने पकड़ा था। लेकिन २४ साल बाद चार्ल्स सप्तम के अनुरोध पर पोप कॅलिक्स्टस तृतीय ने इन्हें निर्दोष ठहराया और शहीद की उपाधि से सम्मानित किया। 1909 में इन्हें धन्य घोषित किया गया और 1920 में संत की उपाधि प्रदान की गई।

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मामला दो:- 

कोपरनिकस 16वीं शताब्दी में बाल्टिक सागर के तट पर स्थित फ़ॉर्मबोर्क गिरजा घर में रह कर काम किया करते थे। ब्रह्माण्‍ड की धुरी पर काम कर रहे कोपरनिकस पूर्वोत्तर पोलैंड के एक चर्च में काम कर रहे थे, लेकिन चर्च को उनके सिद्धांत बेहद नागवार लगे, सो उसे चर्च में ही दफ्न करने की साजिश की थी। बाद में 70 साल की उम्र में कॉपरनिकस के देहांत के बाद उन्‍हें चर्च द्वारा सम्‍मानित किया गया। .

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मामला तीन: 

यही हालत थी गैलीलियो की, जब उन्‍होंने ऐलान किया कि यह ब्रह्माण्‍ड पृथ्‍वी की धुरी पर नहीं, बल्‍िक सूरज की धुरी पर घूमता है। इस पर चर्च खफा हो गया और सन-1633 में 69 वर्षीय वृद्व गैलीलियो को हुक्‍म दिया कि वह अपने इस जघन्‍य अपराध की माफी मांगे। अपने सिद्धांत पर अड़े गैलीलियो ने यह हुक्‍म नहीं माना तो चर्च ने उन्हें जेल में डाल दिया। यहीं पर उनकी मौत हो गयी। लेकिन इसके बाद चर्च ने उनकी मौत को अपराध माना और चर्च ने इसके लिए बाकायदा माफीनामा जारी कर दिया।

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ताजा मामला:- 

अब बताइये ना, कि क्‍या जॉन ऑफ ऑर्क, कोपरनिकस और गैलिलियो से कम निकला हमारे शाहजहांपुर का जांबाज पत्रकार जागेन्‍द्र सिंह ?

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अब तो इन लोगां के खिलाफ पूरा का पूरा चर्च और ईसाई बिरादरी खडी हुई थी, लेकिन यहां शाहजहांपुर में तो उत्‍तर प्रदेश और शाहजहांपुर के रहने वाले उप्र सरकार के दबंग मंत्री, जोरदार नेता, जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक-काेतवाल ही नहीं, बल्कि जिले की पूरी की पूरी पत्रकार बिरादरी ही उसके हत्‍या पर आमादा करते और साजिश करती दिखी। पत्रकारिता-बिरादरी ने तो यह जानते हुए भी जागेन्‍द्र की हत्‍या की साजिश चल रही है, उसे पत्रकार मानने से ही इनकार कर दिया और उसे केवल दलाल और ब्‍लैकमेलर ही ढिंढोरा मचाया। इसी साजिश के तहत श्रमजीवी पत्रकार संघ के सदस्‍यों ने 30 मई-15 को पत्रकारिता दिवस के नाम पर एक भव्‍य समारोह आयाेजित किया, जिसमें उप्र सरकार के मंत्री राममूर्ति वर्मा को मुख्‍य अतिथि बनवा लिया, जिस पर हत्‍या, बलात्‍कार और दीगर बेहिसाब आरोप आयद हैं।

इतना भी होता तो भी गनीमत थी। इन लोगों ने जागेन्‍द्र सिंह को पत्रकार तक मानने से इनकार कर दिया था। 

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लेकिन जागेन्‍द्र सिंह ने खुद की हत्‍या को बर्दाश्‍त कर तो लिया, लेकिन सत्‍य को किसी भी कीमत पर नहीं ठुकराया। नतीजा, उसे नेता-अपराधी-पुलिस और पत्रकार की साजिश में पेट्रोल डाल कर फूंक डाला गया।

मगर मेरी सबसे बडी चिन्‍ता और घृणा का विषय तो हमारी पत्रकार बिरादरी ही है। कुत्‍ते भी अपने लोगों पर होने वाले हमलों पर पुरजोर हमला करते हैं, लेकिन हमारे पत्रकार तो कुत्‍तों से भी शर्मनाक हरकत कर गये। जो जांबाज था, उसे पत्रकार ही नहीं माना। चाहें वह शाहजहांपुर के पत्रकार रहे हों, या फिर लखनऊ और दिल्‍ली के पत्रकार। बेहिसाब पैसा डकार चुके इन पत्रकारों ने तो खुल कर ऐलान तक कर दिया था कि जागेन्‍द्र सिंह पत्रकार नहीं, बल्कि फेसबुक का धंधेबाज था। 

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लेकिन लोकतंत्र के चौथे खम्‍भा माने जानने वाले इन लोगों की आंख तो तब खुली, जब मैंने इस पूरे मामले में हस्‍तक्षेप किया और इस रोंगटे खडे कर देने वाले इस दाह-काण्‍ड का खुलासा करते हुए साबित करने की कोशिश की कि जागेंन्‍द्र सिंह अगर पत्रकार नहीं था, तो देश और दुनिया का कोई भी पत्रकार खुद को पत्रकार कहलाने का दावा नहीं कर सकता है। 

देश-विदेश के पत्रकारों ने इस पर हस्‍तक्षेप किया और फिर मामला खुल ही गया। हालांकि मेरे प्रयास के चलते किसी की भी जान वापस नहीं आ सकती थी, लेकिन जागेन्‍द्र सिंह के दाह-काण्‍ड को लेकर हुई मेरी कोशिशें रंग लायीं और आखिरकार लोगों ने जागेन्‍द्र सिंह को पत्रकार मान ही लिया। मुझे सर्वाधिक खुशी तो अपने इन प्रयासों को फलीफूत होते हुए महसूस हो रही है, जब कल टाइम्‍स ऑफ इण्डिया और आज हिन्‍दुस्‍तान व दैनिक जागरण समेत कई अखबारों ने जागेन्‍द्र सिंह को बाकायदा एक जुझारू पत्रकार के तौर पर मान्‍यता दे दी है। ठीक वैसे ही जैसे जॉन आफ ऑर्क, कॉपरनिकस और गैलिलियो जैसे महान सत्‍य-विन्‍वेषकों के साथ उनके विरोधियों ने अपने झूठ को स्‍वीकर कर उन्‍हें जुझारू विज्ञानी के तौर पर स्‍वीकार कर लिया था। 

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दोस्‍तों, यह इन पराम्‍परागत समाचार संस्‍थान यानी अखबार और न्‍यूज चैनलों की जीत नहीं है। अगर आप समझ रहे हों कि यह सफलता मेरे प्रयासों की भी जीत है तो यह भी ऐसा नहीं है। बल्कि यह तो आप की जीत है, आपके प्रयासों की जीत है, आपके हौसलों की जीत है, आपके समर्थन की जीत है, आपके प्रश्रय की जीत है, आपकी सर्वांगीण कोशिशें की जीत है।

मतलब यह कि, मेरे अजीज दोस्‍त, तुम जीत चुके हो। चलो, इसी जीत के जश्‍न में एक कप कॉपी पिला दो मेरे दोस्‍त….।

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कुमार सौवीर के एफबी वाल से

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0 Comments

  1. pankaj kumar mishra

    June 16, 2015 at 6:53 am

    Hamirpur ke yamuna pull ki loading band krane ke sambnadh me kuchh thos kadam uthane ka kast kre. jisse aane jaane valo ko jo samasyao ka samna na krna pade. ?Hamirpur ke patrakar jago aur kuchh yamuna pul ke liye kr gujro.

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