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सियासत

योगी के रूप में हिन्दू राज लौटने से कबीलाई नृत्य कर रहे सवर्णों, जरा ये भी सुनो

Ashwini Kumar Srivastava : हिन्दू राज की आड़ लेकर ऊंच-नीच, छुआ-छूत वाली वर्णव्यवस्था को लाकर भारत को तलवारों/तीरों और राजा-सामंतों के युग सरीखी मानसिकता में वापस ले जाने में लगे बुद्धिमानों… क्या तुम्हें यह भी पता है कि नासा के जरिये अमेरिका इन दिनों बहुत ही जोरों शोरों से इस संसार में सबसे तेज चलने वाले प्रकाश यानी लाइट से भी तेज गति से चलने वाले रॉकेट बनाने में जुटा हुआ है?

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Ashwini Kumar Srivastava : हिन्दू राज की आड़ लेकर ऊंच-नीच, छुआ-छूत वाली वर्णव्यवस्था को लाकर भारत को तलवारों/तीरों और राजा-सामंतों के युग सरीखी मानसिकता में वापस ले जाने में लगे बुद्धिमानों… क्या तुम्हें यह भी पता है कि नासा के जरिये अमेरिका इन दिनों बहुत ही जोरों शोरों से इस संसार में सबसे तेज चलने वाले प्रकाश यानी लाइट से भी तेज गति से चलने वाले रॉकेट बनाने में जुटा हुआ है?

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वार्प इंजन की मदद से चलने वाले इस राकेट से स्पेस-टाइम में हलचल पैदा करके अमेरिका अब इंसानी सभ्यता के सामने खड़ी सबसे बड़ी रुकावट को आइंस्टाइन के सापेक्षवाद के सिद्धान्त के जरिये दूर करने में लगा हुआ है। इससे पहले भी जब हम जातीय अहंकार और भेदभाव में डूबकर तीर-तलवार में ही अपनी वीरता और धार्मिक ग्रंथों में विज्ञान खोजने में लगे थे तो पश्चिमी-इस्लामी सभ्यता तोप-बंदूकें लाकर हमें कीड़े मकोड़ों की तरह कुचलने और गुलाम बनाने में कामयाब रही थी।

आज जब हमारा इसरो दुनिया के बाकी देशों से मुकाबले में आगे चल रहा है तो हम अपने ही इतिहास में दफ़न अपने जातीय अहंकार की कब्रें खोदकर हिन्दू गौरव के कागजी महल बनाने में लगे हुए हैं… क्षत्रिय राज करेगा, ब्राह्मण पुरोहिती करेगा, कायस्थ प्रशासनिक लिखापढ़ी करेगा, पिछड़ा वर्ग खेती करेगा, वैश्य व्यापार करेगा, शूद्र सेवा करेगा… तो नासा या इसरो जैसे वैज्ञानिक कहाँ से लाओगे? आज हमारे इसरो में क्या सिर्फ ब्राह्मण, कायस्थ ही वैज्ञानिक हैं? वहां मुस्लिम, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध, पिछड़ा, दलित सभी मौजूद हैं… और जो सवर्ण हैं भी, वे धार्मिक ग्रंथों को पढ़कर या गुरुकुल से नहीं निकले हैं। उन्होंने भी वही पढ़ाई पढ़ी है, जिसको पढ़कर बाकी सभी जाति-धर्म के लोग उनके जैसे काबिल वैज्ञानिक बने हैं।

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योगी के रूप में हिन्दू राज लौटने से कबीलाई नृत्य कर रहे सवर्णों को क्या यह नहीं पता है कि क्षत्रिय के डीएनए में अगर राज करना लिखा भी हो तो क्या यह जितनी आसानी से यूपी में सत्ता पा गए, क्या उतनी ही आसानी से दुनियाभर के बेमिसाल वैज्ञानिकों और उनकी बेजोड़ वैज्ञानिक खोजों-हथियारों से लैस अमेरिका-चीन जैसी ताकतवर फौजों के सैनिकों के सामने ये क्षत्रिय क्या सिर्फ अपनी जाति बताकर ही युद्ध जीत लेंगे?

बाकी जातियों को कायर, सेवक, पुरोहित बनाकर या करार देकर महज क्षत्रियों के प्राचीन युद्ध कौशल के भरोसे दुनिया से मुकाबला करके क्या हम फिर उसी तरह गुलाम नहीं हो जायेंगे, जैसे कि हजारों बरस से पहले भी रह चुके हैं?

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दुनिया आगे बढ़ रही है। पश्चिमी सभ्यता का हर देश, हर समाज अपने यहाँ बराबरी ला रहा है। हालांकि उनके यहाँ कभी भी हमारे यहाँ जैसे वर्ण व्यवस्था का शोषणकारी सिस्टम रहा भी नहीं। फिर भी वे अपने यहाँ हर किसी को समान अधिकार, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं, सबको न्याय, संसाधनों का समान बंटवारा, राजनीति-प्रशासन-सेना-पुलिस में बराबरी की भागीदारी दे रहे हैं… कोई वर्ग, क्षेत्र या समूह अगर उनके विकास के कार्यक्रम से छूट जाता है तो वे एड़ी-चोटी का जोर लगाकर उन्हें अपने बराबर लाते हैं।

यहां तो सरकार ही इस लालच में बन रही है कि हमारी जाति सबसे आगे निकल जाए। हमारी जाति ही सब कुछ ज्यादा से ज्यादा हड़प ले।

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जिस समाज में बराबरी नहीं होती, और ज्यादा से ज्यादा संसाधन हड़पने की लूट होती है, वह समाज इसी तरह अतीत के पन्नों में जीता है… और गुलाम होकर या लड़ झगड़ कर ख़त्म हो जाता है। जबकि बराबरी वाले समाज पश्चिमी समाज की ही तरह आकाश-पाताल-जमीन-अंतरिक्ष-समुद्र… हर कहीं अपना कब्जा कर लेते हैं…तभी तो दुनिया का हर देश आज पश्चिमी सभ्यता के ही दिए अविष्कारों-उपकरणों, राजनीतिक- वैज्ञानिक सिद्धान्तों के नक़्शे कदम पर चलने को मजबूर है।

इतना कुछ करने के बाद भी आज भी पश्चिमी सभ्यता दुनिया को हर रोज चौंकाने में लगी है। फिलहाल वार्प इंजन के जरिये लाइट से भी तेज रफ़्तार पाने की कोशिश करने में अगर अमेरिका को कामयाबी मिल गयी तो इसके सैनिक-असैनिक नतीजे कल्पना से परे होंगे।

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पलक झपकते ही का मुहावरा फिर अमेरिका विकास और विनाश, दोनों में ही चरितार्थ करने में सक्षम हो जाएगा।

सकारात्मक पहलू देखें तो सबसे ज्यादा ख़ुशी की बात तो यह होगी कि अंतरिक्ष में भी इंसानी सभ्यता वहां भी जा सकेगी, जहाँ जा पाना मौजूद तकनीक की सीमाओं के कारण सैकड़ों बरसों में ही संभव हो पाता।

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मसलन, हमारे सौरमंडल के सबसे नजदीकी तारा मंडल अल्फ़ा सेंटोरी, जो कि 4.3 प्रकाश वर्ष दूर है, वहां भी इस इंजन के जरिये महज दो हफ्ते में ही पहुंचा जा सकता है। हमारे सूर्य, बुध, शुक्र, बृहस्पति तो फिर कुछ मिनटों की ही दूरी पर रह जाएंगे।

चलिये हटाइये, इस फ़ालतू की बात को… आप तो यह बताइये कि योगी के राज में हिन्दू राज तो आ गया… अब सवर्णों के दिन बहुरेंगे या नहीं? म्लेच्छ-शूद्र तो अब फिर से औकात में आ ही जायेंगे… है न? तो फिर लगाइये नारा… योगी योगी योगी

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0 Comments

  1. fb

    March 21, 2017 at 8:52 am

    murkh lekhak,,,,,

    ganwar hai kya bilkul

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