सावधान… आगे अंधा मोड़ है! : कस्तूरी जब असली हो तो गवाही के लिए साथ में हिरण लेकर घूमने की जरुरत नहीं होती। ये कहावत बेहद पुरानी है और मौजूदा दौर के लिए मौजू भी। राष्ट्रवाद अगर असली होता तो उसके लिए चीखने की ज़रुरत शायद नहीं पड़ती। असली राष्ट्रवाद या देशप्रेम कर्मों से परिलक्षित होता है नारों से नहीं। मौजूदा दौर में मैं देश की बड़ी आबादी को भावनाओं की लहरों पर बहता देख रहा हूं। ये लहर उस आबादी को कहां पहुंचाएगी उसे नहीं मालूम लेकिन जिस दिन किनारे लागाएगी वहां से रास्ता नहीं सूझेगा। देश भावुक हुआ जा रहा है। जवानों की शहादत पर सबको गर्व होना चाहिए। लेकिन क्या हम सिर्फ शहादत पर गर्व करते रहेंगे?
क्या हमारे देशप्रेम को प्रमाणित करने के लिए हमारे जवानों को मरते रहना होगा? वो मरते रहें और हम उनकी शहादत को लक्षणा-व्यंजना के साथ परोस कर देशभक्त होते रहें ? हमारी सेना महान है, हमारी सेना हमारा गौरव है लिहाजा हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम इस गौरव को बचाए रखें। हम भावुक हुए जा रहे हैं यही ग़लत है। क्या ये चिंता की बात नहीं है कि दो-चार लोग हमारी सेना की कैंप में घुस जाते हैं और हमारे कई जवानों की हत्या कर देते हैं? घर में घुसकर मारना इसे ही तो कहते हैं। बार-बार पाकिस्तानी सेना (जिसे हमारे यहां आतंकी कहा जाता है) हमारे घर में घुसकर हमें मार रही है और हम भावनाओं की लहरों पर हिचकोले खा रहे हैं।
क्या हमें हमारी सेना से ये नहीं पूछना चाहिए कि बताइए आप क्या कर रहे थे पठानकोट में? पाकिस्तान से आए आतंकी, हाथों में हथियार लहराते पहले एयरबेस तक पहुंचते हैं, फिर आराम से एयरबेस में दाखिल होते हैं, फिर जब वो आपके किचेन में घुसकर आपको मारने लगते हैं तब आपको पता चलता है कि आतंकी हमला हुआ है। क्या हमें ये सवाल नहीं उठाना चाहिए कि कैंप की सुरक्षा में इतनी बड़ी लापरवाही क्यों बरती गई? किचेन और बेडरूम तक पाकिस्तानी आतंकवादी पहुंचने लगे हैं और हम भावनाओं के ज्वार पर सवार हुए जा रहे हैं।
उरी हमले के बाद तो सवाल और गंभीर होने चाहिए। 19 जवान ज़िंदा जला दिए गए। कहा गया कि रात के अंधेरे में हमला हुआ, जवान सो रहे थे। जो लोग ये तर्क दे रहे हैं उनसे मेरा सवाल है कि क्या हमने ये मान लिया है कि दुश्मन देश पाकिस्तान सिर्फ दिन में हमले करेगा इसलिए हमारी देश की सेना रातों में देश की सुरक्षा तो छोड़िए अपने कैंप की सुरक्षा के लिए भी सतर्क नहीं रहती ? तो क्या ये मान लिया जाए कि अगर रात में हमला हुआ तो फिर हमारे सामने ज़िंदा जलने के अलावा और कोई रास्ता नहीं होगा ? हमें अपनी सेना पर गर्व होना चाहिए लेकिन अगर कहीं चूक हो रही है तो हमें सवाल भी तो उठाने चाहिए।
सवाल तो सर्जिकल स्ट्राइक के दावे पर भी खड़े हो रहे हैं। लोकतंत्र में जनता को ये अधिकार है कि वो अपनी सरकार से सवाल पूछे और अगर सरकार लोकतांत्रित मूल्यों का सम्मान करने वाली हो तो जवाब भी देती है। कुछ लोग इन सवालों को राष्ट्रवाद और राष्ट्रद्रोह के खांचे में धकेल रहे हैं। उनसे मेरा सवाल है कि क्या सरकार के दावे ही राष्ट्रवाद हैं? तो फिर क्यों नहीं मान लिया जाता कि हमने ग़रीबी, बेरोज़गोरी, भुखमरी, अशिक्षा बगैरह पर काबू लिया है। सरकारें तो ये दावे करती ही रही हैं। क्योंकर मीडिया के लोग इन दावों की पोल खोलने लगते हैं ? राष्ट्रवादी होइए और मान लीजिए कि सारी समस्याएं खत्म हो चुकी हैं। तो क्या ये मान कर अपनी हालत पर संतोष कर लिया जाए कि सरकार ही आखिरी सच है, सरकार ही राष्ट्र और सरकार की कही हर बात सिर झुका कर स्वीकार कर लेना ही राष्ट्रवाद है?
जिस देश ने अपने 19 जवानों को ज़िदा जलते हुए देखा है अगर वो देश अपनी सरकार से उसका जवाब नहीं पूछेगा तो क्या वो देश ज़िंदा माना जाएगा? कहा जा रहा है कि डीजीएमओ ने खुद कहा कि कार्रवाई हुई है। अच्छी बात है, हमें अपने अधिकारियों पर भरोसा करना चाहिए । जब किसी जिले का डीएम कहता है कि बाढ़ से बड़ा नुकसान नहीं हुआ है तब हम न जाने कहां-कहां से नुकसान की तस्वीरें, रोती महिलाओं के आंसू, सिसकियां खोज लाते हैं और फिर जिला प्रशासन और सरकार पर सर्जिकल स्ट्राइक से भी ज्यादा घातक हमला कर देते हैं। तब तो हम अपने अधिकारी पर आंख मूंद कर भरोसा नहीं करते।
हम ज़मीनी हक़ीक़त की पड़ताल करते हैं, ये हमारा काम है, हमारी जिम्मेदारी है, हमें करना चाहिए सो हम करते हैं। तो क्या सर्जीकल स्ट्राइक के दावों की पड़ताल नहीं होनी चाहिए? सेना के किसी अधिकारी के दावे के बाद देश चुप हो जाए? तो कल जब कोई सेना का अधिकारी ये कह दे कि भाई ये जो चुनी हुई सरकार है यही पाकिस्तान से मिली हुई है। तो क्या हम मान लेंगे? कल को वही डीजीएमओ साहब यह कह दें कि देखिए हम सीने पर गोलियां खा रहे हैं और पीएम साहब पाकिस्तान में जाकर बिरयानी खा रहे हैं, जब तक हम इन्हें नहीं हटाएंगे तब तक पाकिस्तान पर कब्जा नहीं होगा। तो क्या हम किसी को लोकतंत्र की हत्या करने की आज़ादी दे देंगे ? इतना भावुक मत होइए। आगे अंधा मोड़ है।
लेखक असित नाथ तिवारी टीवी पत्रकार / एंकर हैं. इनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.
Parkash C Sharma
October 6, 2016 at 3:36 am
तिवारी जी ,
आप ने जो लिखा है वो ही सच में दूरदर्शित है जिसको ये भक्त लोग नहीं समझ पा रहे है .
में किसे पार्टी विसेसे के पक्ष में नहीं हु . हम वो आम आदमी है जो अच्छा करे उसी की सरहाना करने लगते है ,
जो अब चल रहा है कही ऐसा तो देश छदम युद्ध या इमरजेंसी की तरफ बढ़ रहा है .
Sanjeev Singh Thakur
October 6, 2016 at 8:06 am
Tiwari saheb pichale 50 salon mein jitne civilians Kashmir mein mare ja punjab mein khalistan movement ke duraan mare Kitne logon ne tab sarkaar se jawab manga ? Baharhaal zanaab kaun se TV channel ke anchor hain ? U.P Bihar mein netagan safai mahostav mein heroins ke saath nachte hain police unki suraksha mein lagi rahti h. Pol.stn. mein daroga massage karwate hein. Unpar koi aawaz nahin uthata. Ab sena bachi h thodi raksha krne ke liye Unke piche pad kar unka bhi moral down kar do. Bihar mein gareeb janta ke ghar baadh aane par zoker neta Garibon ke ghar ganga aane ka nam lekar bewkoofi ki intaha krte hein. Patrakaar chatkaare lekar aisee khbar dikhate hein TRP ke chakkar mein !!
Sanjay Kumar
October 6, 2016 at 12:19 pm
कमाल है भाई तुम्हारा भी. अपनी अम्मा से अपने बप्पा के असली होने का सबूत मांगा था क्या, या वीडियो ही मांग लिया था उनकी सुहागरात का
Anip shah
October 27, 2016 at 2:39 am
EK DAM SAHI BAAT HAI JAWAB TO MANGNA HI CHAHIYE….KYU KE ISS SE PEHLE KI SUBHI SARKARO SE NA TO KISI NE PUCHA NA TO SARKAR NE KOI JAWABDARI LI JAWAB DENE KI KUCH BHI HOTA THA TO LOG CHUP REHTE THE….OR CHAHE LOG HO YAA SARKAR HO DEKH NE SIVAY KUCH NAHI KIYA…OR AB JAA KE LOGO KO LAGA KE YEHH EK MODI SARKAR HAI JO PAKISTAN KO JAWAB DEKE BHI AAI OR JO SAWAL KARTE THE UNKA BHI MUU BAND KAR DIYAA….JAI JAWAN JAI HIND