-रविंद्र अग्रवाल-
आखिरकार मजीठिया वेज बोर्ड के तहत अपने हक की लड़ाई लड़ रहे अखबार कर्मियों को माननीय सर्वोच्च न्यायालय से एक बड़ा निर्णय हासिल हुआ है। अदालत में लंबित अवमानना याचिकाओं की 14 मार्च को हुई सुनवाई पर लंबे इंतजार के बाद आज अदालत का आर्डर सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड हो चुका है। इसमें माननीय अदालत ने जो आदेश दिए हैं, उन्हें देख कर अखबार मालिकों के होश उड़ गए होंगे। हालांकि अभी भी अदालत ने उन्हें अपनी गलती सुधारने का एक अवसर प्रदान किया है।
अदालत के आदेशों के अनुसार अब इस मामले की अंतिम सुनवाई 19 जुलाई, 2016 को होगी। माननीय न्यायाधीश ने अपने आदेशों में रजिस्ट्री को निर्देश दिया है कि अगली तारीख 19 जुलाई होगी और अखबार मालिकों के खिलाफ अवमानना के सभी मामले इस दिन सबसे पहले सूचीबद्ध किए जाएं। लिहाजा अब दूध का दूध और पानी का पानी होने वाला है।
कोर्ट ने अपने आदेशों में कहा है कि मजीठिया वेज बोर्ड को लागू करने को लेकर तलब की गई रिपोर्ट मेघालय, हिमाचल प्रदेश और पुडुचेरी ने प्रस्तुत की है। इसे कोर्ट ने रिकॉर्ड पर लिया है और इन राज्यों की स्थिति का अध्ययन किया गया है। कोर्ट ने कहा है कि जिन राज्यों और संघ शासित प्रदेशों से रिपेार्ट मिली है, जिनमें इस न्यायालय के आदेश की आंशिक अनुपालना की बात कही गई है। वहां से संबंधित पक्षों के प्रतिष्ठानों(समाचारपत्रों) को स्पष्ट किया जाता है कि वे न्यायालय के आदेश का पालन 19 जुलाई, 2016 से पहले करें।
कोर्ट ने अपने 28 अप्रैल, 2015 के आदेशों के तहत प्रदेश की स्टेट्स रिपोर्ट दाखिल न करने पर उत्तर प्रदेश (आंशिक), उत्तराखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, गोवा और असम राज्यों के रवैये पर चिंता जाहिर करते हुए निर्देश दिए हैं कि वे 5 जुलाई,2016 से पहले अपनी रिपोर्ट दाखिल करें। कोर्ट ने कहा है कि ऐसा न करने पर इन राज्यों के मुख्य सचिवों को 19 जुलाई, 2016 को में व्यक्ति तौर पर कोर्ट के समक्ष हाजिर होना होगा। साथ ही निर्देश दिए हैं कि इन राज्यों की रिपोर्ट आने पर अगर बचाव पक्ष की कोई आपत्ति होगी, तो वह 12 जुलाई, 2016 तक रिकार्ड में लाई जाएगी।
कोर्ट के आदेशों का सबसे अहम हिस्सा यह है कि कोर्ट ने मजीठिया वेज बोर्ड की लड़ाई लड़ रहे कर्मियों के उत्पीड़न को गंभीरता से लिया है। इसके तहत कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि कोर्ट ने उन सभी इंटरलोकेटरी एप्लिकेशन को रिकार्ड कर लिया गया है, जिसमें कोर्ट के आदेशों की अनुपालना के तहत अपनी देनदारियों से बचने के लिए संस्थानों ने अपने कर्मियों की सेवाओं को गलत तरीके से समाप्त किया है और वेतन बोर्ड की सिफारिशों के तहत अधिकारों को समाप्त करने के लिए धोखाधड़ी से आत्मसमर्पण करने को मजबूर किया गया है।
आदेशों ने लिखा है कि कोर्ट के पास इस तरह की शिकायतें भारी संख्या में प्राप्त हुई हैं। ऐसे में न्यायालय एक-एक शिकायत को व्यक्तिगत रूप से जांचने की स्थिति में नहीं है। लिहाजा प्रत्येक राज्य के श्रम आयुक्त को निर्देश दिए जाते हैं कि वह ऐसी सभी शिकायतों पर गौर करके न्यायालय के समक्ष एक ही आवश्यक फाइल बनाकर 12 जुलाई, 2016 से पहले अपनी जांच रिपोर्ट दायर करे। आगे कोर्ट ने एक और बड़ा निर्णय सुनाते हुए अपने इन आदेशों में लिखा है कि हम उन सभी कर्मचारियों को जिन्होंने उत्पीडऩ से जुड़ी इंटरलोकेटरी एप्लिकेशन दायर की है और उन सभी कर्मियों को जिन्होंने इस न्यायालय में याचिका दयर की है, मगर वे उत्पीडऩ की शिकायत नहीं कर पाए हैं उन सभी को अपने राज्य के श्रम आयुक्त के समक्ष शिकायत प्रस्तुत करने की स्वतंत्रता देते हैं।
यहां मैं एक बात यह भी जोड़ना चाहूंगा कि जो डरपोक लोग माननीय सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय के इंतजार में थे, अब उनके लिए कोई आसान रास्ता नहीं नजर आ रहा है। अब उनके लिए एक ही रास्ता है कि वे सीधे श्रम विभाग में शिकायत करके अपनी रिकवरी का केस फाइल करें, नहीं तो उन्हें अखबार मालिकों के गुलाम बनकर आधे टुकड़े पर पलते रहना होगा। बात भी अब साफ हो गई है कि जिन अखबारों ने 20 जे के तहत वेज बोर्ड न देने का रास्ता खोजा था, उन्हें इन ताजा आदेशों मे कोर्ट का फैसला नजर आ जाएगा।
वहीं इनसे भी ज्यादा चालाक उन अखबार मालिकों को भी इन आदेशों में आखिरी मौका मिला है, जिन्होंने मजीठिया वेज बोर्ड को तोड़ मरोड़ कर लागू किया और अदालत की अवमानना से बचने के सपने देख रहे थे। उन्हें कोर्ट ने इन आदेशों के जरिये अंतिम अवसर दे दिया है। साथ ही अखबार मालिकों से डरने वाले और मजीठिया वेजबोर्ड की शिकायतों पर आंखें मूंदे बैठे राज्यों के श्रम अधिकारियों को भी कोर्ट ने साफ संकेत दे दिया है कि अब उनकी लापरवाही नहीं चलेगी। कोर्ट ने इन आदेशों में श्रम आयुक्तों को शामिल करके श्रम विभाग को भी अंतिम अवसर और छदम चेतावनी दी है।
सुप्रीम कोर्ट का एक्चुवल आदेश पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें…
लेखक रविंद्र अग्रवाल हिमाचल प्रदेश के तेजतर्रार पत्रकार हैं और मजीठिया वेज बोर्ड मामले मेें लेबर कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में लड़ाई लड़ रहे हैं.
makera
March 17, 2016 at 4:05 pm
Bhai Ravindra Aggarwal ji ko sadhuwad. Aapney badaa hi sukoon dene wali baat likhi hai… 14th March ko to Dil hi baith gaya thha. Par apki baton se yahi lagta hai ki ab Majithia door nahi hai aur malikan ke liye salaakhein bhi door nahin hain. SC se dil baith sa gaya thha ki ab hamarey desh me kuchh bhi nahin raha. Punjipatiyon ki Sarkaar hai, jo humlogon ke liye kuchh ker nahin rahi aur ab ye Punjipati log SC ko bhi apney kabjey me le liya hai…
Iss Bhrasht Congress ke Netaon ko kya kahenge, jisney Majithia Laagoo kiya aur ab Unhin Malikon ke liye Humlogon ke khilaaf hain aur court mein Lad rahey hain…(Kapil Sibbal, Salman Khurshid, Abhishek Manu Singhvi etc.etc.).
Regards