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सुख-दुख

एनडीटीवी के तेजतर्रार कैमरामैन जितिन भूटानी का निधन

Ravish Kumar : कैमरामैन जितिन भूटानी के साथ रवीश कुमार… शुरुआती दिनों की मेरी अनगिनत रिपोर्ट इसी बाइलाइन से ख़त्म होती थी। स्टोरी सामान्य हो या विशिष्ट कैमरामैन सबमें बराबर काम करता है। इसलिए मैं उसके साथ शूट की हुई हर स्टोरी में उसका नाम ज़रूर जोड़ता था। जितिन के साथ जाने कहाँ कहाँ गया।

वो मेरे पेशेवर ज़िंदगी का गवाह था। मैं उसकी ज़िंदगी का। रिपोर्टिंग का कोई भी क़िस्सा याद करता हूँ जितिन भूटानी ही दिख जाता है। अपनी स्टोरी में इतनी बार उसका नाम लेता था कि लोग मुझे आकर जितिन बुलाते थे और उसे रवीश।

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वह मुझे लेकर काफ़ी ग़ुरूर में रहता था। किसी दूसरे के साथ जाता तो उसे लेक्चर देने लगता था कि स्टोरी ऐसे की जाती है। कैमरे का काम सबको लेने नहीं आता है। जब मुझे कोई नहीं जानता था तब भी होटल के कमरे में मिलने आने वालों को भाषण देने लगता था कि ये सबके जैसा रूटीन रिपोर्टर नहीं है।

जितिन भूटानी

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मैं कई बार डाँट देता था कि बंदे को पता तक नहीं कि मैं कौन हूँ और तुम उसे ऐसे बताने लग जाते हो जैसे कोई मेरे जैसा हुआ ही नहीं। आज मुझे दुनिया जैसे भी जानती है, मगर जितिन भूटानी शुरू से ही वैसे ही जानता था कि दुनिया ऐसे ही जानेगी। दूसरे रिपोर्टर को बताने लग जाता था कि कैसे मेरी तरह तैयार होकर रिपोर्टिंग पर जाना चाहिए। दूसरे रिपोर्टर कई बार चट जाते थे, सुन लेते थे। मुझे बताते भी थे कि आपका नाम लेकर झेला देता है। मैं हर बार कहता था कि तुम कब बंद करेगा मेरे बारे में बोलना। वह हमेशा कहता था कि कभी नहीं। मैं जानता हूँ आप क्या हो, आपको पता नहीं कि आप क्या हैं।

जब भी शूट का रिक्वेस्ट डालता था, जितिन भूटानी मिल जाता था। उसका संतुलित कंधा कमाल का था। तब भारी भरकम कैमरे को वह अपने कंधे पर जमा लेता था और घंटों शूट करता था। शूट पर जाने से पहले वह पूरी तरह तैयार होकर निकलता था। बस शाम उसके बस में नहीं होती थी। शाम ने उसे अपने बस में कर लिया था। फिर भी काम में कोई कमी नहीं। जब भी किसी दूसरे के साथ शूट पर गया, उसे बुरा लगता था। एक बार टोक ज़रूर देता था। मैं समझाता रहता था कि जीवन कई तरह के रिश्तों में जाया जाता है। एक ही के साथ जाना बाक़ी दूसरों का अनादर लगता था और वह भी इस बात को समझता था।

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काफ़ी देर लग गई इस बात को स्वीकार करने में कि जितिन भूटानी नहीं है। हम धूप और साये की तरह देखे जाते थे। अब वह धूप चली गई है। ज़िंदगी हमें ज़िंदगी रहते ही दूर कर देती है। बहुत कुछ पहले ही छूट जाता है। फिर सबकुछ छूट जाता है। जैसे कोई चुपके से बग़ल की सीट से उठकर हमेशा के लिए चला गया है वैसे ही जितिन भूटानी चला गया है। हम सब अपनी अपनी सीमाओं में सीमित हैं। अब तुम असीमित हो गए। अलविदा दोस्त।

Sushil Mohapatra : If possible pls assign jiten Bhutani… ये लाइन मेरे मेल का हमेशा एक हिस्सा हुया करता था। जब भी हम प्राइम टाइम शूट के लिए जाते थे तब pcontrol को यही लिखते थे कि “अगर हो सके तो जितिन भूटानी को असाइन कर दें”। जितिन एक शानदार cameraperson थे। रवीश जी के साथ साथ शूट करते करते जितिन को पता चल गया था कि उनको क्या क्या चाहिए। जितिन बहुत भावुक भी थे। जब भी उन्हें पता चलता था कि प्राइम टाइम शूट में उन्हें साथ लेकर नहीं गए हैं तो नाराज़ हो जाते थे और भावुक भी। वीकली ऑफ के दिन भी प्राइम टाइम शूट के लिए आने के लिए तैयार रहते थे। जितिन भूटानी नहीं रहे। कल उनका देहांत हो गया। कुछ दिनों से अस्पताल में थे। We will miss you jiten…

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एनडीटीवी के पत्रकार द्वय रवीश कुमार और सुशील महापात्रा की एफबी वॉल से.

https://www.youtube.com/watch?v=nMezhrUB1cU

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