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हिक्की की परंपरा के ही अखबारनवीस हैं जित्तू सोनी!

जेम्स आगस्टस हिक्की और लोकस्वामी वाले जित्तू सोनी… आप जानना चाहेंगे कि 1779 में भारत का पहला अखबार हिक्की गजट/बंगाल एडवरटाइजर निकालने वाले मिस्टर हिक्की का इंदौर के संझा लोकस्वामी वाले जित्तू सोनी से क्या कनेक्शन हो सकता है..? कनेक्शन हैं..परंपरा का हिक्की की पत्रकारिता की स्टाइल का..जो जाने/अनजाने जीतू सोनी आगे बढ़ा रहे हैं…।

हिक्की ईस्ट इंडिया कंपनी के एक छोटे मुलाजिम थे। वे भी इंग्लैंड से कोलकाता(तब कलकत्ता) आए थे। कुछ महीने नौकरी करने के बाद उन्होंने देखा कि कंपनी के अफसर तो यहां ऐय्याशी करते हैं, दारूखोरी के साथ रातें रंगीन होती हैं।

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बेचारे हिक्की तो साधारण क्लर्क थे, हैसियत के हिसाब से क्लब में उसकी इंट्री थी नहीं। सो ईष्यावश उन्होंने वहां अपने जासूस लगा दिए और पूरा ब्योरा हाँसिल किया। और एक दिन एक पर्चे में कंपनी के अफसरों की ऐय्याशी का कच्चे चिट्ठे छाप दिया। पर्चे ने अभिजात्य वर्ग में तहलका मचा दिया। पर्चे की धूम से उत्साहित हिक्की ने घोषणा की कि वह अब हर हफ्ते ऐसा ही पर्चा जारी किया करेगा।

बस यह पर्चा ही ‘हिक्की गजट अथवा बंगाल एडवरटाइजर’ बनकर भारतीयत अखबारों के पुरखे के तौर पर इतिहास में दर्ज हो गया। यह अखबार बिना नागा हर हफ्ते कंपनी बहादुरों की हमाम की नंगई को आम करने लगा।

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हिक्की जल्दी ही अफसरों की नजरों पर चढ़े और औने-पौने किसी भी आरोप में जेल भेज दिए गए। हिक्की तो हिक्की उन्होंने ऐसे जासूस व जुगाड़ सेट किए कि जेल में रहते हुए ही हिक्की गजट हर हफ्ते छपकर तहलका मचाता रहा।

कई डरपोक अफसरों ने उन्हें रुपये देने शुरू किए ताकि वे नंगे होने से बचे रहें..हिक्की ने नमक का लिहाज रखा। ऐसे लोगों को वे बख्श देते थे जो कुछ ले देकर उसकी छतरी के नीचे आ जाते थे। आखिर अखबार खर्चा भी माँगता है..न।

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हिक्की का आतंक इतना बढ़ गया कि कंपनी के अफसरों ने उनपर लगाम कसने के लिए वायसराय से गुहार लगाई। वायसराय भी डरे थे कि न जाने किस दिन ये कमबख्त हिक्की मेरी भी पोल खोल दे। सो भारत के प्रथम ब्लैकमेलर पत्रकार के खिलाफ ईस्ट इंडिया कंपनी के सभी व्यभिचारी, भ्रष्ट और चोर अफसर मौसेरे भाइयों की भाँति एक जुट हो गए।

हिक्की गजट 1782 तक निकला लेकिन इन तीन सालों में जेम्स आगस्टस हिक्की ने तीस बार से ज्यादा जेल की हवा खाई। उनका छापाखाना जब्त कर लिया गया। और अंततः थक हार कर हिक्की साहब को जबरिया लंदन लौटने वाले जहाज में बैठाकर इंग्लैंड भेज दिया गया।

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जित्तू सोनी हिक्की की परंपरा के ही अखबारनवीस हैं। फर्क यह हो सकता है कि जहां हिक्की सिर्फ़ अखबार निकालने के जुगाड़ में रहता था, वहीं जित्तू भाई होटल भी चलाते हैं, जिमीदारी भी करते हैं और बार बालाओं की रंगीन रातों के सौदागर भी हैं, इंदौर में ऐसी उनकी ख्याति है।

और हाँ अफसर तो अफसर हैं, चाहे वे तब ईस्ट इंडिया कंपनी के रहे हों या अब ‘रिपब्लिक आफ इंडिया’ के हों..! ये कलयुग के इंद्र हैं..भोगी और ढ़ोंगी, जो आड़े आएगा वृत्तासुर की तरह मारा जाएगा।

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लेखक जयराम शुक्ला मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं.

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