Sudipti : जिस कैम्पस में मैं लगभग छह साल रही उसमें पिछले तीन-चार सालों में जो तमाम तरह की घटनाएं घट रही हैं वे सिर्फ दिल दहलाने वाली नहीं हैं। उससे मन का एक बड़ा हिस्सा बुझ जाता है कि सीमित संसाधनों वाले सामान्य ग्रामीण परिवारों की लड़कियाँ जिस सुकून और भरोसे से एक कायदे की जगह पढ़ लेती रहीं वह जगह नष्ट हो रही है।
जिस जगह पर सुरक्षा और सुकून दोनों था वह जगह एक युद्धक्षेत्र में बदल दी गई। जो अकादमिक श्रेष्ठता का विस्तार करने वाला था उसे नफरतों की राजनीति का अड्डा बना दिया। जो बौद्धिक नस्लों की खेप पैदा करता था उसे प्रतिपक्ष की राजनीति का मोहरा बना दिया गया। अव्वल तो देश में ऐसे शिक्षण-संस्थान ही नहीं के बराबर हैं जो आम लोगों की पहुँच के हों और स्तरीय भी हों। उसमें भी जो दुनिया भर के अकादमिक मानकों पर जैसे-तैसे बचा हुआ है उसे किसी न किसी तरह ध्वस्त कर देने की मानो यह प्लानिंग चल रही है।
दक्षिणपंथ सदा पढ़ने-लिखने, विचारने और वैज्ञानिक-तार्किक सोच को नष्ट कर देने के प्रण के साथ ही सत्ता में आता है। अंधभक्ति और प्रश्नाकुलता दोनों चल नहीं सकती। उनकी रणनीति ही होती है कि सब बेवकूफों की तरह हाँ में हाँ मिलाते रहें इसलिए शिक्षण संस्थानों को नष्ट कर दो। इसमें ज्यादा मेहनत नहीं लगती। किसी चीज़ को बनाना मेहनत का काम है, मिटाना तो चुटकियों में होता है।
जिन लोगों को अभी भी इस धार्मिक राजनीति में यकीन है, इसके द्वारा किए जा रहे देश के विकास की खोखली बातों पर भरोसा है वह सोच कर खुद को जवाब दे कि राजधानी की ही तीनों यूनिवर्सिटीज़ के साथ इस सत्ता के आने के बाद कैसा सलूक हो रहा है? क्या एक भी कायदे का शिक्षण संस्थान इस सरकार ने बनाया है? क्या विकास शिक्षा के प्रतिकूल जाकर होगा?
और इन सारे जरूरी सवालों से भी ज्यादा मैं परेशान यह सोच कर होती हूँ कि किसी का किसी भी वक़्त कहीं घुस आना? सोचती हूँ जब मैं देर रात लाइब्रेरी में पढ़ रही होती या शाम मेस से लौट अभी होस्टल के गलियारे में ही कमरे की ओर बढ़ रही होती उस निजी क्षण में कोई घुस आता हॉस्टल में तो मुझे कैसा लगा होता? अपने कमरे, अपने हॉस्टल में हम कैसे होते है। एकदम बेखबर और बेख़ौफ़। ऐसे में किसी का भी अंदर आने की बात ही सोचना असुरक्षा से भर देता है। अंदर आकर जो किया वह देखती हूँ तो भय और जुगुप्सा से भर उठती हूँ।
सबसे दुखद है कि जाने कितनों के सपनों और शिक्षा पर ताला लगाने वाले ये लोग समझेंगे नहीं। जैसे बहुत से लोग इसे सही ठहराते हुए अपनी ही भावी पीढ़ी के लिए अंधेरे का सौदा खुशी-खुशी कर रहे हैं।
Lal Bahadur Singh : हममें-आपमें कौन ऐसा अभिभावक होगा जिसकी यह हसरत न हो कि उसका बेटा/बेटी/भाई/बहन बड़ा होकर देश के सबसे अच्छे विश्वविद्यालय में पढ़े? लेकिन, तब तक यह JNU बचा रहेगा? आप सबसे हार्दिक अपील है कि अपने देश के सर्वोत्कृष्ठ शिक्षण संस्थान JNU को बचा लीजिये!
JNU ने दुनिया को अविजित बनर्जी दिया है! JNU ने देश को प्रकाश करात, चंद्रशेखर, कविता कृष्णन, योगेंद्र यादव दिया है तो मोदी सरकार को 2 प्रमुख मंत्री निर्मला सीतारमन और जयशंकर भी दिया है! JNU ने देश के दूर- दराज इलाकों से आने वाले सामान्य, अति सामान्य, वंचित परिवारों से आनेवाले अनगिनत युवक-युवतियों की ज़िंदगी को संवारा है, असंख्य प्रतिभाओं को निखारा है, न जाने कितने गुदड़ी के लाल दिए हैं।
जाहिर है, JNU के बर्बाद होने से नुकसान तो हमारे पूरे देश का होगा, सबका होगा, उनका भी जो उसे अपनी कुर्सी के लिए तबाह करने पर आमादा हैं। गौर करिये, पिछले 4-5 वर्ष से अनवरत JNU को बदनाम करने, उसे अलगाव में डालने, उसके नेतृत्व को कुचल देने, उसके शैक्षणिक ढाँचे को तहस-नहस कर देने और अंततः सामान्य, वंचित परिवारों से आने वाले छात्रों को प्रवेश से रोक देने के लिए फीस में अनाप-शनाप बढोत्तरी की साजिश की गईं।
लेकिन जब JNU को फतह करने की, उसे Tame करने की सारी साजिशें नाकाम हो गईं, जब JNU को वैचारिक-राजनैतिक मोर्चे पर पराजित नहीं किया जा सका, जब प्रशासनिक तिकड़मों से, आंदोलनों पर भीषण पुलिसिया जुल्म से नहीं जीता जा सका तब रात के अंधेरे में JNU पर बर्बरों का हमला आयोजित किया गया-हथियारबंद कायर नकाबपोशों ने छात्राओं, अध्यापिकाओं तक को नहीं बख्शा, विश्वविद्यालय प्रशासन और पुलिस के कवर में !
बचाव में वही बेशर्म, पुराना भोंथरा झूठ/ तर्क-उत्तर प्रदेश में लोग पुलिस की गोली से नहीं आपस में cross-firing में मरे, JNU में हमलावर वामपंथी छात्र थे जिन्होंने ने खुद ही हमला करके अपने लोगों को, अपनी अध्यक्ष आइशी घोष, महामंत्री सतीश यादव, अध्यापिका डॉ0 सुचित्रा सेन समेत अनेकों को लहूलुहान करके AIIMS ट्रामा सेंटर पहुंच दिया! और कैमरे के सामने जिन्होंने योगेंद्र यादव पर हमला किया, वे ?
देश के गृहमंत्री/दिल्ली के पुलिसमंत्री अमित शाह (कुछ विश्लेषकों के अनुसार आज देश के सबसे ताकतवर आदमी) ने दिन में JNU के कथित टुकड़े टुकड़े गैंग पर हमला बोला था। और शाम होते होते JNU पर हमला हो गया।
2 दिन पूर्व दिल्ली चुनाव के प्रभारी कैबिनेट मिनिस्टर प्रकाश जावड़ेकर ने घोषणा किया था कि चुनाव का केंद्रीय मुद्दा है-अराजकता बनाम राष्ट्रवाद !
तो यह चुनाव के लिए, जिसकी घोषणा बस होने ही वाली है, Agenda भी set किया जा रहा है!
याद रखिये, JNU सत्ता के आंख की किरकिरी इस लिए बना हुआ है क्योंकि वह आज देश में शिक्षा, रोजगार के अधिकार व फासीवाद के खिलाफ लोकतंत्र की लड़ाई का सबसे मजबूत दुर्ग है। Demigraphic dividend का सब्जबाग दिखाकर जिन युवाओं के साथ पिछले 6 साल में सबसे बड़ा छल हुआ है, उनके अंदर पूरे देश में जो बेचैनी है, जो एक विराट छात्र-युवा आंदोलन की आहट है, JNU के सचेतन, बहादुर युवक, युवतियां उसके वैचारिक-आंदोलनात्मक हिरावल हैं!
JNU को बचाने की लड़ाई में शामिल होइए!
जुल्म फिर जुल्म है, बढ़ता है तो मिट जाता है
ख़ून फिर ख़ून है, टपकेगा तो जम जाएगा !!
जेएनयू की छात्रा रहीं सुदीप्ति और इलाहाबाद विश्विद्यालय के अध्यक्ष रहे लाल बहादुर सिंह की एफबी वॉल से साभार.
देवेंद्र आलोक
January 6, 2020 at 10:14 pm
कौन सी वैज्ञानिकता यह भी तो बताएं? कह देने भर से कोई विचार वैज्ञानिक नहीं हो जाता।