पत्रकारों के तबादले! दैनिक जागरण, अमर उजाला, हिंदुस्तान आदि अखबारों में संपादकों के तबादले तो अक्सर होते ही रहते हैं। हाल ही में जागरण में कई संपादक बदले गए हैं। चलिए इसमें कोई गलत नहीं है।
संपादकों को सैलरी भी अच्छी खासी मिलती है। फिर भी इतनी नहीं मिलती कि आईएएस, पीसीएस अफसरों की तरह हर साल उनके तबादले किए जाएं। सारा घर परिवार शिफ्ट कीजिए और बच्चों की पढ़ाई का हर्जा कीजिए। ये आसान नहीं है।
जब मैं दैनिक जागरण में था तो कई बार तबादला देखा, हालांकि ज्यादा दूर नहीं गया लेकिन फिर भी तबादला तो तबादला ही होता है। मेरे पिता जी कहा करते हैं कि ये तथाकथित बड़े अखबार पत्रकारों को सैलरी तो ठीक से दे नहीं पाते और तबादले ऐसे करते हैं जैसे वे आईपीएस या आईएएस हों। उनकी बात एकदम सही थी और है।
आज भी इन अखबारों में 7, 10, 12, 15 हजार रुपये की नौकरी कर रहे हैं पत्रकार और उनके भी तबादले करने से बाज नहीं आते ये संस्थान।
एक बार जब मेरा तबादला मेरठ हुआ था तो निदेशक महोदय ने कहा कि अपना परिवार क्यों नहीं शिफ्ट कर लेते ? मैंने कहा कि सैलरी अच्छी दे दीजिए और वायदा कीजिए कि कम से कम 5 साल ट्रांसफर नहीं करेंगे तो कर लूंगा। चुप हो गए।
अमर उजाला में मेरे एक साथी पत्रकार का मेरठ से आगरा यूनिट में तबादला हुआ और उन्होंने ये समय कैसे काटा मैं ही जानता हूं। शुगर की बीमारी पाल ली और मेरठ में अपना घर होते हुए भी किराए रहे सो अलग।
मेरी तमाम पत्रकार साथियों से अपील है कि कभी भी संस्थान के कहे में आकर फैमिली को डिस्टर्ब न करें। एक बार भास्कर के तत्कालीन संपादक श्रवण गर्ग ने मुझे चंडीगढ़ में एक बड़ी पोस्ट आफर की। दिल्ली आईएऩएस में इंटरव्यू हुआ और सब फाइनल हो गया। उन्होंने भी ये शर्त रख दी कि परिवार को शिफ्ट करना होगा चंडीगढ़।
मैंने मना किया तो उन्होंने कहा कि जल्दी मत करो सोच कर दो चार दिन में बता देना। पिताजी व पत्नी, सब ने मना कर दिया कि ये संभव नहीं है। आज सोचता हूं कि यदि मैंने जिद की होती तो कितना नुकसान उठाया होता। कभी भी ऐसा न करें।
परिवार के लिए नौकरी कर रहे हैं तो उसे प्राथमिकता पर रखें। आशा करता हूं पत्रकार भाई मेरी बात समझ रहे होंगे।
पत्रकार हर्ष कुमार की एफबी वॉल से.
Dushyant chaudhary
January 24, 2020 at 4:57 pm
जी हर्ष कुमार जी आपकी बात से मैं पूरी तरह सहमत हूं और आपके विचारों का समर्थन ता हूं क्योंकि जो लोग अखबार में 10 या 15 साल की नौकरी पूरा कर चुके हैं वह अखबारों के लिए बोज हो जाते हैं और बाद में ऐसे कई सीनियर साथियों को मैंने भविष्य के लिए रोता सुना है कि इससे तो अच्छा होता कि जवानी रहते कोई अपना काम कर लिया होता