नवभारत टाइम्स में आज प्रकाशित इस खबर का यह शीर्षक घोर आपत्तिजनक है। “कुछ दिन भी नहीं गुजार सकते हैं गुजरात में?” शीर्षक “अपने देश में भी पराया होने का अहसास, सोमवार को भी पलायन” फ्लैग के साथ छापा गया है। इस शीर्षक में प्रश्नवाचक चिन्ह नहीं होता तो इसका मतलब बिल्कुल अलग होता। और तब यह माना जा सकता था कि विज्ञापन के प्रभाव में यह चूक हो गई है।
पर तथ्य यह है कि तब गुजरात में हिन्दीभाषियों को मारा जा रहा था, उनपर हमले हो रहे थे, उन्हें धमकाया जा रहा था, वे गुजरात छोड़कर भाग रहे थे, भागने को मजबूर थे तो खबर नहीं छप रही थी। प्रमुखता नहीं दी जा रही थी। अब यह सरकारी खबर योजनाबद्ध साजिश का हिस्सा लग रही है। ठीक है कि इस खबर को सियासी निशानेबाजी का रंग देने की कोशिश की गई है पर सियासत की आड़ में अखबार अपनी भूमिका नहीं भूल सकते हैं। और ना उन्हें सियासत करनी चाहिए।
अखबार ने योगी आदित्य नाथ के बयान, “गुजरात एक शांति प्रिय राज्य है जो लोग वहां का विकास मॉडल पसंद नहीं करते हैं वही अफवाह फैला रहे हैं” को इतनी प्रमुखता से तब छापा है जब अखबारों में खबर नहीं के बराबर छपी। दूसरी ओर खबर है कि धमकाने और मारपीट के आरोप में 450 लोग गिरफ्तार किए गए हैं। सवाल उठता है कि पलायन की खबरें और फोटो अफवाह कैसे है? और अगर योगी जी ने कहा तो संपादकीय दायित्व क्या है? यह साजिश है कि जब हिन्सा हो रही हो, तो चुप रहो जब डराना-धमकाना हो जाए तो नुकसान की भरपाई के लिए बताना शुरू करो कि क्या किया? क्या हुआ। उसमें कहा जाए कि 450 गिरफ्तार हुए हैं और फिर यह बयान प्रमुखता से छाप दो कि अफवाह फैलाई जा रही है।
यह उन दीन हीन और असहाय गरीबों का मजाक है जिनकी तकलीफ इस अखबार ने कल यहां नहीं छापी थी। उनके पलायन की खबर नहीं छापी और अब जब नुकसान हो चुका तो सरकारी खबर लीड। गौरतलब है कि यह खबर पीटीआई की है। और ऐसी खबर के साथ ऐसा मजाक? हद है।
वरिष्ठ पत्रकार और अनुवादक, संजय कुमार सिंह की रिपोर्ट। संपर्क : [email protected]