Vijay Shanker Singh : न्याय हुआ है यह तो महत्वपूर्ण है ही, पर न्याय होता दिखे, यह अधिक महत्वपूर्ण है. जस्टिस अरुण मिश्र को अब उन मुकदमों की सुनवाई से खुद को अलग कर लेना चाहिए, जिनमे सरकार से जुड़े सीधे नीतिगत मामलो में जनहित याचिकाएं दायर की गयी हैं। प्रधानमंत्री के बारे में उनका कथन निश्चित ही एक निजी बयान या उद्गार है, पर उनके फैसलों पर उनकी यह निजी धारणा का प्रभाव है या नहीं यह सदैव ही देखा जाता रहेगा।
जस्टिस अरुणमिश्र के बारे में Lakshmi Pratap Singh की यह पोस्ट पढ़े-
सुप्रीम कोर्ट के जज अरुण मिश्रा ने International Judicial Conference 2020 में कहा कि मोदी जी बहुमुखी जीनियस हैं। वो वैश्विक सोच कर स्थानीय करते हैं। ये वही मिश्रा हैं जिन्हीने जज लोया के केस की सुनवाई करने से साफ मना कर दिया था।
ये वही जज मिश्रा हैं जिन्होने टेलीकॉम कंपनियों पर 1.47 लाख करोड़ का जुर्माना ठोका था और समय भी नहीं बढ़ाया जबकी कम्पनियों ने साफ कर दिया कि समय ना दिया तो धन्धा बन्द कर देगी भारत में। (जियो को जिन्दा रखना है भले लाखों बेरोजगार हो जाएं)
2014 में सुप्रीम कोर्ट की बैंच ने जस्टिस लोधा की अध्यक्षता में फैसला दिया कि “यदि जमीन अधिकरण के 5 साल के अन्दर जमीन मलिक के अकाऊंट में पैसे नहीं पहुंचे तो अधिकरण निरस्त माना जायेगा”
ये वही मिश्रा हैं जिन्होने इसी केस में 2018 में दिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया। अब यदि कोई अंबानी अडानी जमीन लेकर आधा पैसा दे जिसे किसान लेने से इनकार कर दे फिर भी जमीन अडानी के पास ही रहेगी। सुनवाई के दौरान मिश्रा जी वकील शंकरन पे कांटेप्त की धमकी देते हुये अपना आपा खो बैठे और बाद में मांफी भी मांगी थी।
जब इस फैसले के खिलाफ याचिका दायर हुई तो मिश्रा जी खुद ही उस केस की सुनवाई करने बैंच में घुस गये। कानून है कि कोई जज अपने ही फैसले पे दायर याचिका की सुनवाई में खुद नहीं बैठ सकता तो मिश्रा जी ने इसे बदनाम करने की साजिष का बहाना दिया।
2019 में वरिष्ठ सुप्रीम कोर्ट वकील दुष्यंत दवे ने पत्र लिख कर CJI रंजन गोगोई से पूछा था की अडानी ग्रुप के हर केस में अरूण मिश्रा जज क्यों होते हैं। मिश्रा जी पर भाजपा के करीबी होने की भी खबरें सुनी गयी हैं।
मिश्रा जी अगले चीफ जस्टिस हैं, ये समझ लें।
पूर्व पुलिस अधिकारी विजय शंकर सिंह की एफबी वॉल से.
Krishna kant
February 25, 2020 at 9:44 pm
Personal opinion