क्या रागदरबारी ही आज का अंतिम सत्य है? क्या अलग सोच, अलग बोली, अलग खानपान, अलग वेशभूषा, अलग आस्था, अलग विश्वास रखना अपराध है? इसके लिए ऐसे लोग चाहे राज्यसत्ता द्वारा, चाहे समाज के मठाधीशों द्वारा दबाये जाने, उत्पीड़ित किये जाने के लिए अभिशप्त हैं? इस पर उच्चतम न्यायालय के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने गंभीर चिंता व्यक्त की है।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि विडंबना यह है कि एक वैश्विक रूप से जुड़े समाज ने हमें उन लोगों के प्रति असहिष्णु बना दिया है, जो हमारे अनुरूप नहीं हैं। स्वतंत्रता उन लोगों पर जहर उगलने का एक माध्यम बन गई है, जो अलग तरह से सोचते हैं, बोलते हैं, खाते हैं, कपड़े पहनते हैं और विश्वास करते हैं। एक अधिक समावेशी समाज बनाने के लिए कला की महत्ता को रेखांकित करते हुए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने शनिवार को कहा कि मानवता के समग्र विकास के लिए कला को स्वतंत्र रूप से सभी दिशाओं में विस्तारित करने की आवश्यक है। खतरा तब पैदा होता है जब आजादी को दबाया जाता है, चाहे वह राज्य के द्वारा हो, लोगों के द्वारा हो या खुद कला के द्वारा हो।
‘इमेजिनिंग फ्रीडम थ्रू आर्ट’ पर मुंबई में लिटरेचर लाइव इंडिपेंडेंस डे व्याख्यान देते हुए चंद्रचूड़ ने कहा कि उनकी समझ से सबसे अधिक परेशानी की बात राज्य द्वारा कला का दमन है. चाहे वह बैंडिट क्वीन हो, चाहे नाथूराम गोडसे बोलतोय, चाहे पद्मावत या दो महीने पहले पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा भोभिश्योतिर भूत पर लगाया गया प्रतिबंध हो, क्योंकि उसमें राजनेताओं के भूत का मजाक उड़ाया गया था। राजनेता इस बात से बहुत परेशान थे कि यहां एक निर्देशक है, जिसके पास राजनीति में मौजूद भूतों के बारे में बात करने की धृष्टता थी। हमें नहीं भूलना चाहिए कि सभी कलाएं राजनीतिक होती हैं. अगर ऐसा नहीं होता तो कला केवल रंगों, शब्दों या संगीत का गहना बनकर रह जाता।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि यथास्थिति को चुनौती देने वाली कला राज्य के दृष्टिकोण से आवश्यक रूप से कट्टरपंथी दिखाई दे सकती है, लेकिन यह कला को दबाने का कारण नहीं हो सकता है। हम आज तेजी से असहिष्णुता की दुनिया देख रहे हैं, जहां कला को दबाया या विरूपित किया जा रहा है। कला पर हमला सीधे स्वतंत्रता पर हमला है। कला उत्पीड़ित समुदायों को अधिकार जताने वाले बहुसंख्यक समुदाय के खिलाफ विरोध करने की आवाज देती है। इसे संरक्षित किए जाने की जरुरत है।
कानून, थियेटर और कला समुदाय के प्रतिष्ठित लोगों से भरे कमरे में लगभग 50 मिनट तक दिये अपने भाषण में उन्होंने कहा कि उत्पीड़ित समुदायों के जीवित अनुभव को अक्सर मुख्यधारा की कला से बाहर रखा जाता है। कुछ खास समुदायों को आवाज देने से इनकार करके कला खुद उत्पीड़ित बन जायेगी और एक दमनकारी संस्कृति विकसित कर सकती है।
सितंबर 2018 में आपसी सहमति वाले वयस्कों के बीच समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर करने वाला महत्वपूर्ण फैसला देने वाले उच्चतम न्यायालय के पांच जजों में से एक जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, जब एलजीबीटीक्यू अधिकारों के मुद्दे पर हमारे पहले के फैसले को चुनौती दी जा रही थी, तो वकीलों में से एक ने उल्लेख किया कि उच्चतम न्यायालय के पहले के दौर में, पीठ से आये सवालों में से एक था, क्या आपने कभी किसी समलैंगिक से मुलाकात की है? हमें कई दशकों के बाद एक गलत को सही करना था।