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मध्य प्रदेश

सिंधिया मंत्री नहीं, प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं!

अपूर्व भारद्वाज

आपको अगर लग रहा है कि केवल एक राज्य सभा की सीट और केंद्रीय मंत्री पद या मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कारण सिंधिया ने कांग्रेस को छोड़ दिया है तो माफ कीजिएगा। आप राजनीति के कच्चे खिलाड़ी हैं। राजनीति सिंधिया के खून में है। वो यह सब एक तय योजना के मुताबिक कर रहे हैं।

सिंधिया ने जो इतना बड़ा फैसला लिया है वो बहुत बड़ी दूरदर्शीता से चला गया एक बड़ा दांव है जो भविष्य की राजनीति की तस्वीर को ध्यान में रखकर चला गया है.

बीजेपी में मोदी के बाद प्रधानमंत्री के तीन ही उम्मीदवार दिखते हैं। एक अमित शाह, दूसरे योगी और तीसरे देवेन्द्र फडणवीस। अमित शाह राजनीतिक रूप से सिंधिया से बहुत कुशल हैं लेकिन प्रशासन औऱ कम्युनिकेशन में सिंधिया अमित शाह से इक्कीस हैं। अमित शाह का बैकग्राउंड भी उनके आड़े आ सकता है। इसलिए सिंधिया को अपनी सम्भावना उजली लगती है। सिंधिया अमित शाह को कड़ी टक्कर दे सकते हैं।

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योगी से हर मामले में सिंधिया आगे हैं। योगी को देश प्रधानमंत्री के रूप में केवल प्रचंड हिंदू आँधी के रूप में ही स्वीकार कर सकता है जो 10 साल के आगे की राजनीति में एक मुश्किल कार्य है। आगे की राजनीति केवल व्यक्तित्व पर होगी और उसमें सिंधिया योगी से मीलों आगे हैं।

सिंधिया का मुख्य मुकाबला देवेन्द्र फडणवीस से है। फडणवीस उनसे हर बात में बराबर हैं लेकिन राजनीति में उनसे उन्नीस हैं। इसलिए उन्हें शाह ने महराष्ट्र में मात दे दी थी। महाराष्ट्र में फडणवीस को ठाकरे कभी उभरने नहीं देंगे। इसलिए महाराज को यहां भी अपनी सम्भावना अच्छी लगती है।

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सिंधिया राजनीति का एक युवा और चॉकलेटी चेहरा है औऱ गुजरात से लेकर उत्तर प्रदेश तक उनकी पहचान है। वो पूरे गाय पट्टी में एक बड़े खिलाड़ी बनना चाहते हैं। सिंधिया शुरू से दक्षिपंथ के प्रति झुके हुए थे। इसलिए वो 370 से लेकर caa तक हर मुद्दे पर बड़े ही सॉफ्ट रहे हैं। सिंधिया की राजनीति हमेशा सवर्णों, किसानों और मध्यम वर्ग के आस पास रही है। इसीलिए वो बड़े शहरों के इंफ्लुएंसेर ऑडियंस के साथ ठेठ देहाती को भी हमेशा आकर्षित करते रहे हैं।

आज जो लोग ज्योतिरादित्य सिंधिया को धोबी का कुत्ता और अवसरवादी जैसी तमाम तरह की उपमाओं से विभूषित कर के उनकी आगे की राजनीति को खारिज कर रहे हैं, वो क्यो भूल जाते हैं कि अगर उनके पिता माधवराव सिंधिया आज जीवित होते तो वो इस देश के प्रधानमंत्री होते। ज्योतिरादित्य को अपने पिता के सपने को पूरा करना है और वो इसके लिए पहला कदम बढ़ा चुके हैं।

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इंदौर के डाटा एनालिस्ट और डाटावाणी के संस्थापक अपूर्व भारद्वाज की एफबी वॉल से.

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2 Comments

2 Comments

  1. Umesh Shukla

    March 13, 2020 at 1:01 pm

    ज्योतिरादित्य सिंधिया ही क्यों बहुत से लोग पीएम बनना चाहते हैं। लेकिन केवल उनके चाहने से यह पद तो मिलने वाला नहीं। पीएम बनने का ख्वाब तो राहुल गांधी और सोनिया गांधी भी देखते रहे लेकिन उनको यह कुर्सी नसीब नहीं हुई न आगे बीस साल तक होनी है। अगले बीस साल का मैप क्लीयर है। 29 तक नमो, फिर अमित शाह 29 तक यानी कम से कम दो टर्म। तब तक कई और सूरमा भाजपा में करवट ले रहे होंगे। फडणवीस का तो नंबर ही नहीं लगना। वे खद्योत हैं सियासत के चंद्र नहीं। आपका आकलन भावनाओं की लहर में बह गया है। उसमें वोटों की गणित और भाजपा की सियासी परिवेश की अनदेखी की गई है। मैं ये तो मान सकता हूं कि भाजपा के मंच पर ज्योतिरादित्य अच्छी सम्मानजनक स्थिति में होंगे पर इतने नहीं कि पीएम पद के दावेदार बन जाएं।

  2. अरविंद के सिंह

    March 13, 2020 at 3:29 pm

    समझ से परे है आपका आँकलन। आपकी की प्रथम लाइन से ही ‘आप कच्चे ही नहीं बल्कि बहुत ही टुच्चे से आँकलन को थोप रहें हैं। पंद्रह करोड़ की सदस्य वाली पार्टी एक केवल दूसरी पार्टी से आए भगोड़े को अपना पीएम मान लेगी। क्या आप होली की खुमारी में ये लिख गएँ हैं साहब! आरएसएस जैसे इंतज़ार कर रही है की कब सिंधिया जी आएँगे और उनका नायक आएगा। और सबसे बड़ी बात यसवंत आप छाप भी दिए इस चंडु खाने KI गप्प को। एक उपलब्धि गिना दीजिए सिवाय पैसे के इनके नाम अपनी सीट तक तो बचा नहीं पाए।सिंधिया जैसे लोग केवल अपनी राजसी ऐंठ के पोषक के रूप में जाने जाएँगे । आपको एक बात बात समझ लेनी होगी की राजनीति के विकल्प बताए बनाए नहीं जाते बल्कि राजनीति अपने विकल्प खुद तय कर लेती है।

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