-यशवंत सिंह-
गाजियाबाद और बुलंदशहर में पुलिसिंग की हालत बेहद खराब है. नेतृत्व के कमजोर होने के कारण फील्ड में अराजकता का माहौल है. जिसे जो मन हो रहा, वह कर रहा. न कोई दिमाग लगाने वाला, न कोई इनवेस्टीगेट करने वाला, न कोई पूछने वाला, न कोई क्लास लेने वाला. सब सरकारी कुर्सी तोड़ रहे. जनता मरे तो मरे. निर्दोष लोग फंसें तो फंसें.
गाजियाबाद और बुलंदशहर दोनों जिलों की पुलिस का नाकाबिलियत एक घटना ने खोल कर रख दिया है. सूटकेस में एक महिला की लाश मिली. उसे बुलंदशहर की किसी महिला का बताकर कइयों को हत्या के आरोप में जेल भेज दिया गया.
सूटकेस वाली लाश बुलंदशहर की जिस महिला का बताया गया, वो महिला एक दिन प्रकट हो गई. इसके बाद इन दोनों जिलों की पुलिस और इनके अफसर एक्सपोज हो गए. क्या यही है न्याय? क्या यही है जांच? सब कुछ तुरंत मौके पर ही रफादफा करने की प्रवृत्ति और सतही तरीके से केसों को ठिकाने लगाने की कार्यशैली के चलते हत्या के एक मामले में कई निर्दोष लोग जेल भेज दिए गए.
सवाल है कि आखिर एसएसपी, एसपी सिटी, एसपी देहात, सीओ, थानेदार, जांच अधिकारी की जो ये चेन है, उस चेन में किसी ने भी कायदे से दिमाग नहीं लगाया? सबने वर्दी के गुरुर में नीचे से जो फीडबैक आया, उसी को ओके मान आगे फाइल सरका दिया? ये सवाल गाजियाबाद और बुलंदशहर दोनों जिलों की पुलिस अफसरों के सामने है. ये केस दोनों जिलों के पुलिस अफसरों के दामन पर दाग की तरह चिपका रहेगा क्योंकि इनकी लापरवाही के चलते कई निर्दोष लोग जेल गए. सूटकेस में लाश किसकी थी और उसके हत्यारे कौन हैं, ये पता लगाना पुलिसवालों के लिए बड़ी चुनौती है. फर्जी तरीके से केस खोलने, फर्जी मुठभेड़ करने, पैसे लेकर धाराएं बढ़ाने हटाने और उगाही-धमकी के खेल में बुरी तरह फंसी यूपी पुलिस के लिए अब ये कहा जाने लगा है कि इसके कई अक्षम अफसर अपने रसूख-जोर-जुगाड़ के चलते फील्ड में तैनात होने में लगातार सफल हैं. इसका नतीजा सामने दिख रहा है.
लखनऊ से प्रकाशित चर्चित सांध्य दैनिक 4पीएम ने इस प्रकरण पर जोरशोर से खबर का प्रकाशन किया. चर्चित व बेबाक आईपीएस अफसर अमिताभ ठाकुर ने भी इस मामले को फेसबुक-ट्वीटर के जरिए सामने रखा. अखबारों में भी दोनों जिलों के पुलिस की लापरवाही पर खबरें छप रही हैं. पर योगी सरकार के गृह व पुलिस विभाग के बड़े हाकिमों को इससे कोई मतलब नहीं. न किसी फीडबैक से मतलब और न किसी घटना से. फिलहाल तो योगीराज में सब रामराज की खुशी में मगन हैं. ऐसे में ग्रासरूट लेवल पर जनता रोज दमन व अन्याय का शिकार हो तो हो, किसे इन गरीबों के लिए सोचने, वक्त निकालने, माथापच्ची करने की पड़ी है! आखिर गरीब तो होते ही हैं तन, मन, धन शोषित-उत्पीड़ित कराने के लिए… तभी तो इन्हें गरीब कहा जाता है… जिसे जी जाए, वो उगाह ले, मार दे, फंसा दे, जेल भेज दे! जनता के पैसे से लंबी चौड़ी सेलरी पाने वाले हाकिम-हुक्काम भला जनता के सेवक कब बने, ये जनता के वोट व धन से जनता का ही खून पीते रहे हैं!!
मामला गाजियाबाद जैसे हाईप्रोफाइल शहर का था, मर्डर मिस्ट्री में सूटकेस में युवती की लाश जैसा सनसनीखेज एंगल था, पड़ोस के बुलंदशहर से गायब एक युवती की पूर्व सूचना थी… इसलिए घटिया पुलिसिया कहानी निशाने पर आ गई… वरना ऐसे हालात तो यूपी के ढेरों जिले में हैं जहां पुलिस के मुखिया लोग आराम फरमा रहे हैं. नीचे ग्राउंड लेवल पर जनता पुलिस के हाथों उत्पीड़ित हो रही है, फर्जी केस लगाए जा रहे हैं, निर्दोषों को जेल भेजा जा रहा है, अपराधियों से मिलकर अवैध काम संचालित किए जा रहे हैं… सवाल बड़ा पुराना है कि कब सुधरेगी यूपी पुलिस? कब अक्षम अफसरों को फील्ड से हटाकर तेजतर्रार व ईमानदार अफसरों को फील्ड की तैनाती दी जाएगी?
देखें कुछ स्क्रीनशाट्स-
भड़ास एडिटर यशवंत सिंह की रिपोर्ट.
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