राकेश कायस्थ-
ट्विटर ने जैसे ही कांग्रेस टूलकिट मामले में संबित पात्रा की ट्वीट को फर्जी बताया, केंद्र सरकार मैदान में कूद पड़ी। सरकार ने ट्विटर इंडिया के कर्ता-धर्ताओं को अच्छी तरह हड़काया। मत पूछियेगा कि सरकार ऐसी तत्परता टीके और ऑक्सीजन सिलेंडर उपलब्ध कराने में क्यों नहीं दिखाती? प्राथमिकताएं बहुत स्पष्ट हैं।
आमतौर पर पार्टी और सरकार में फर्क होता है लेकिन इस दौर में कोई फर्क नहीं है। जो बीजेपी है, वही केंद्र सरकार है। बीजेपी तमाम दायित्वों से मुक्त चुनाव लड़ने वाली एक महामशीन का नाम है। केंद्र सरकार और इसके अंतर्गत आनेवाली तमाम संस्थाएं चुनावी महामशीन बीजेपी का एक पुर्जा भर हैं।
चुनावी महामशीन फिर से घरघरानी शुरू हो गई है। सामने उत्तर प्रदेश का चुनाव है। पार्टी ने साफ संकेत दे दिये हैं कि यूपी में वही खेल होगा जो बंगाल या बाकी राज्यों के चुनावों में खेलने की कोशिश की गई- यानी उग्र सांप्रादायिक विभाजन।
इसके अलावा बीजेपी को कुछ और आता नहीं है। कई लोग कह रहे हैं कि हिंदू-मुस्लिम कार्ड बंगाल में नहीं चला। मैं इस बात से सहमत नहीं हूं। अगर बीजेपी गर्वनेंस के नाम पर चुनाव लड़ती तो क्या उसकी सीटें 3 से 77 तक पहुँच पातीं?
यूपी का चुनाव भी बीजेपी इसी सांप्रादायिक विभाजन पर लड़ेगी और संकेत बता रहे हैं कि ये चुनाव बंगाल से भी ज्यादा घृणित और अनैतिक होगा।
फर्जी तौर पर तैयार किया गया कांग्रेस का टूलकिट बीजेपी की इसी चुनावी तैयारी का हिस्सा था। बीजेपी येन-केन-प्रकारेण यह साबित करने की कोशिश करेगी कि उसके तमाम राजनीतिक विरोधी मुस्लिम परस्त हैं और वही हिंदुओं की एकमात्र हितैषी है।
जब गंगा में बहती लाशों के बारे में पूछा जाएगा तो जवाब में बीजेपी कुंभ बनाम रमज़ान का मुद्दा खड़ा करेगी। बाराबंकी से आई उस ख़बर पर ज्यादा लोगों ने ध्यान नहीं दिया जहां सौ साल पुरानी एक मस्जिद को प्रशासन ने तुड़वा दिया।
मैं मामले के विस्तार में नहीं जा रहा हूँ और ना ही किसी पक्ष का समर्थन या विरोध कर रहा हूँ। मान लीजिये अगर मस्जिद गैर-कानूनी ढंग से बनाई गई हो, तब भी ऐसी कौन सी आफत आ गई थी कि कोरोना के इस ऐतिहासिक संकट के दौरान बाकी काम छोड़कर प्रशासन बुलडोजर चलाने पहुँच जाये?
हाईकोर्ट ने बकायदा आदेश दिया था कि किसी भी विवादित धार्मिक स्थल को लॉक डाउन के दौरान हाथ नहीं लगाया जाएगा। मगर कोर्ट के आदेश की अनदेखी करते हुए यूपी प्रशासन ने ऐसा किया। धार्मिक ध्रुवीकरण के अलावा उदेश्य और क्या हो सकता है?
बहुत मुमकिन है कि आनेवाले दिनों में यूपी के बाकी शहरों से भी उकसावे वाली ख़बरें मिलें। किसी ज़माने में गुजरात को संघ की प्रयोगशाला कहा जाता था। गुजरात प्रयोग सफल रहा और बीजेपी समाज को स्थायी रूप से बांटने में कामयाब हो गई।
अब बारी यूपी की है। उत्तर प्रदेश की स्थितियां गुजरात से अलग है। यूपी सांप्रादायिक आधार पर स्थायी रूप से बंटेगा या नहीं, इससे 2024 में नरेंद्र मोदी की किस्मत ही तय नहीं होगा बल्कि भारत के भाग्य का फैसला भी होगा।
राजनीतिक नतीजों से परे हर शांतिप्रिय नागरिक की यह जिम्मेदारी है कि वो अपने-अपने इलाकों में पीस कमेटी बनाये और समाज में सांप्रादायिकता के ज़हर को फैलने से रोके।
अनप्रिडेक्टेबल आंसू!
पहली बार मैंने मोदीजी के रोने की भविष्यवाणी तब की जब गोरखपुर के अस्पताल में बिना इलाज और ऑक्सीजन 60 से ज्यादा बच्चे मर गये थे।
मगर मोदीजी नहीं रोये
फिर मैंने उनके रोने की भविष्यवाणी की जब साहेब वाराणसी यात्रा पर थे। उसी दौरान बीचएयू में पुलिस ने असामाजिक तत्वों से सुरक्षा मांग रही लड़कियों पर लाठियां बरसाई।
मगर बेटी बचाने वाले प्रधानमंत्री नहीं रोये
मैंने उन्हें अनगिनत बार रोते देखा। इसलिए उम्मीद थी कि आँसू उन्होंने सही मौके के लिए बचाकर रखा होगा।
देश की राजधानी में दंगा हुआ। मोदीजी अमेरिकी राष्ट्रपति की अगवानी मेंं व्यस्त थे। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की राजधानी में तीन दिन तक कत्ल-ए-आम होता रहा। मुझे लगा कि तमाम काम निपटाने के बाद मोदीजी फुर्सत से रोएंगे। मगर अफसोस…
मोदीजी नहीं रोये
कांग्रेस नेता गुलाम नबी आज़ाद जब राज्यसभा से विदा हो रहे थे, तब मोदीजी का गला भर आया। वो संसद में रो पड़े।
उसके बाद मुझे समझ में आया कि मोदी जी के आँसू भी उनके फैसलों की तरह अनप्रिडेक्टेबल है। उनकी रूलाई में भी एक मास्टर स्ट्रोक है। आज लंबे समय बाद उन्होंने मास्टर स्ट्रोक खेला है…
ऐसे समय जब अपनों के शवों पर विलाप करके देशवासियों के आँसू सूख चुके हैं, मोदीजी रो रहे हैं। अब तमाम एंकर भी रो रहे हैं और पीछे-पीछे भक्त भी।
Shantanu Saxena
June 10, 2021 at 9:36 pm
A very informative article highlighting the points which have not in the limelight of national media.