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सुख-दुख

ईमानदार पत्रकार कैसे काटेंगे बुढ़ापा!

Amrendra Rai : पहले पत्रकारों की भले ही इज्जत रही हो और समाज में रुतबा रहा हो पर अब ये दोनों ही नहीं हैं। अब तो ज्यादातर लोग पत्रकारों को ब्लैकमेलर ही समझते हैं। और इसके जिम्मेदार भी हम पत्रकार ही हैं।

इसके अलावा ज्यादातर पत्रकारों की आर्थिक स्थिति भी दयनीय ही होती है। घर का खर्चा चलाने, बच्चों की शिक्षा और शादी के बाद इतना नहीं बचता कि वृद्धावस्था आराम से कट सके।

अपना अनुभव तो यही है। बाकियों का पता नहीं। अगर बच्चे कमाने लगें और बोझ उठाने लगे तो बात अलग है। लेकिन आज के जमाने में नौकरी मिल कहां रही है। मिलती भी है तो 15 हजार की। ऊपर से कभी भी जाने का खतरा। मेरे जानकार जितने भी पत्रकार हैं किसी को 2000 से ज्यादा पेंशन पाते भी नहीं देखा।

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कुछ अफवाहें जरूर सुनता हूं कि अमुक को 20, 000 पेंशन मिल रही है। हो सकता है कुछ लोगों को मिलती भी हो। पर इससे भी मुश्किल से ही घर चल सकता है। यह स्थिति सिर्फ पत्रकारों की नहीं है। निजी क्षेत्र में काम करने वाले 90% लोगों की है। निजी क्षेत्र में काम करने वाले 85% लोगों का वेतन 15 हजार से कम है।

ऐसे में समझ में नहीं आता कि कैसे लोग अपना वृद्धावस्था काटते होंगे। यह एक गंभीर समस्या है। रोजगार के साथ ही इस बारे में भी कुछ सोचना चाहिए। क्योंकि आने वाला समय और कठिन है।

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जनसत्ता, अमर उजाला समेत कई अखबारों में काम कर चुके वरिष्ठ पत्रकार अमरेंद्र राय की एफबी वॉल से.

कुछ चुनिंदा कमेंट्स-

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Arun Dixit यह कडवा सच है भाई! मुझे 2863 रुपये पेंशन मिलती है। रहने को घर बना नहीं पाया सो गांव लौट रहा हूँ। लेकिन हम उस दौर के पत्रकार थे जब पत्रकारिता का सम्मान था।

Harsh Deo पत्रकारों की तथाकथित पेंशन भी मोर्चा सरकार जिसमें वामपंथी भी थे, की बदौलत है। पीलियों की पहली सरकार ने सरकारी कर्मचारियों से पेंशन छीनी थी और अब दूसरी सरकार नौकरियां ही छीनती जा रही है.

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Sushil Sharma कभी पत्रकारों के प्रति सम्मान और बुरे लोगों को उनसे डरते भी देखा है। पीत- पत्रकारिता ने सब खत्म कर दिया।अब तो हास्यपद स्थिति है। पत्रकार का परिचय देने वाले को लोग हीन भावना से देखते हैं। जिनकी उम्र अखबारों की नौकरी में बीत गयी कुछ तो अकूत सम्पत्ति के मालिक बन गये और जो ईमानदार रहें उनके सेवानिवृत्त होने पर वही हाल है जिसका आप जिक्र कर रहे हैं।

S Pramod बिलकुल सही। पत्रकार ही नहीं पेंशन का सवाल अब सरकारी और ग़ैर सरकारी सभी का है।स्थिति विकट है।लाखों पानेवाला भी रिटायर होकर ग़ुरबत में जीने को मजबूर हों रहा है।

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Abhimanyu Pandey पत्रकार नहीं दलाल हैं । संस्थान सिर्फ आई कार्ड देते हैं ,जो ATM की तरह लेकर घूम रहे हैं अधिकांश दलाल।

Tejvir Singh थाने कचहरी से जीवन यापन करने वालों की कहानी आपने बता दी। अब उनका भी जिक्र जिन्हें पीआईबी कार्ड मिले हैं जिनके प्रेस क्लब का खर्च कारपोरेट के जिम्मे हैं जिनका मोटा खर्च राज्यों के मुख्यमंत्रियों की मेहरबानी से आता है .. जो प्रेस क्लब में धमक रखते हैं

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Amrendra Rai पीआईबी तो मेरे पास भी है, पर सारा ख़र्चा खुद ही उठाना पड़ता है। न कोई कॉरपोरेट देता है न मुख्यमंत्री। होंगे कुछ लोग पर ज्यादातर अफवाह।

Tejvir Singh कुल जमा 100 के करीब हमेशा से रहे हैं दिल्ली में और आज भी हैं. निष्पक्ष पत्रकारिता को नहीं गांठ लगाने और खोलने वालों को पैसा मिलता है. हथियारों के सौदों, दूतावासों से लेकर सुई शराब साबुन तेल तक सबके रैकेट दिल्ली में हैं राजनैतिक लोग सरकारी लोग और पत्रकार इनके आवश्यक अंग हैं मामूली सी दिखने वाली एक खबर का सौदा लाखों में होता है । मामूली सा प्रश्न पत्रकार मित्र अपने सांसद को देते हैं राज्यसभा लोकसभा में पूछने के लिए और लाखों का खेल हो जाता है। इस हुनर के कई खिलाड़ी पत्रकार हैं

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Sudeep Sahu अटल सरकार ने पेंशन बंद करने का प्रस्ताव किया था और कांग्रेस ने उसको माना आज की सरकार ने तो पेंशन तक किसी को छोड़ा ही नहीं .अब रेलवे में वरिष्ट नागरिकों को मिलने वाली छूट को भी समाप्त करने की सोच रहा है .जब से कैग की रिपोर्ट रेलवे के घाटे से सम्बंधित आई है तब से किराया बढ़ाने का चक्कर चलने वाला है .

Sunil Thapliyal करीब करीब “सम्पूर्ण समाज” की यही स्थिति हैं,,पत्रकार-ज़गत भी उसका एक अंग ही है !! आजकल सब पैसे वाले ( उनको भ्रष्ट ज़ानते हुए भी ) रिश्तेदारों-दोस्तों की ही इज्ज़त करते हैं , ईमान्दार गरीब रिश्तेदारों-दोस्तों की खिल्लियां उड़ाते फिरते हैं , चारों ओर ???

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Uma Tripathi फिर वे कौन से पत्रकार है जीने पास कोठी, फार्महाउस , गाड़ियों का बेड़ा, शॉप मॉल है।

Indu Shekhawat आज जो जितना बड़ा लाइजनर है उतना बड़ा पत्रकार है , बाकी कहने की जरूरत नही, पत्रकारिता में पत्रकारिता के अलावा सब कुछ हो रहा है

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DrRajeev Kant वेतन में असमानता से देश में एक दोयम दर्जे का वर्ग तैयार होगा, जो हमेशा आज्ञाकारी वोटर बनकर पालतू कुत्ते की तरह अपने आका के पीछे दुम हिलाता फिरेगा।

Sanjay Saagar भाई, अगर आप आगरा से नए नए भगवान पत्रकार है तो हमें माफ़ करें, मुझें किसी भी ग्रुप में एड ना करें,क्योंकि में नास्तिक हूँ नए नए भगवानों से मुझे कुछ नहीं चाहिए।मैंने कसम ली हैं कि मैं किसी भी आगरा के पत्रकार ग्रुप से कोई भी संबंद नहीं रखूंगा,इस लिए मुझसेे पत्रकार व पत्रकारों से जुड़ी सभी संस्था व ग्रुप दूर रहें।क्योंकि कहीं भी कौआ कोए का मांस नही खाता पर आगरा के नए नए पत्रकार खाके भी निष्पक्ष और आर्थिक रूप से कमजोर पुराने कलमकारों की काट करते हैं।

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Rakesh Sharma राय साहब आपने तो दुखती नस पर हाथ रख दिया। अधिकतरों का यही हॉल है।

Vijay Krishna सर पत्रकारिता में 10% मोटी तनख्वाह वाले लोग 90% का शोषण कर रहे हैं…लेकिन आवाज़ उठाने की हिम्मत किसी में नहीं है…और ये कांग्रेस, बीजेपी, वामपंथ समेत सभी के शासन में हुआ है… कभी कोई तो आगे आएगा?

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3 Comments

3 Comments

  1. प्रकाश

    December 13, 2019 at 11:16 am

    बिल्कुल सही कहा है मगर आज की तारीख में जो जितना बड़ा दलाल वो इतना बड़ा इमानदार पत्रकार आज कल तो वो अपनी तारीफ भी करते नहीं थकते कहते हैं कि रेल्वे स्टेशन की लाईट के नीचे पढ़ाई की कैई सारे भाई-बहन थे बहुत गरीबी रेखा में थे मगर आज हजारों करोड़ कामा रहे हैं मगर कैसे ये फार्मूला नहीं बताते वो भी पत्रकार हैं। ऐसे ही बहुत सारे पत्रकार हैं जो पत्रकारिता को धंदा बना दिया है उन वजह से पत्रकारिता को गलत नजर से देखा जाता है। अब इनसे कौन पूछे पैसा कहां से आया। अब इमानदार पत्रकार को ऐसे लोग कहां जीने देते हैं और अपने संस्थान में भी ऐसे ही लोगों की जमात रखते हैं। भाई साहब इमानदार तो हमेशा पिस्ता आया है। आजकल तो पत्रकार कहने में भी डर लगता है आगेवाला ये ही कहता है अच्छा दलाल हो उस संस्थान के।

  2. KK chauhan

    December 13, 2019 at 4:49 pm

    सांसदों विधायकों की डबल पेंशन से कुछ बचेगा तभी तो पत्रकारों या अन्य को पेंशन मिलेगी। सरकार से उम्मीद करना बंद करें।

  3. Sanjay kumar rohtak

    December 24, 2019 at 9:58 pm

    बिल्कुल सही कहा यही स्थिति है ईमानदार पत्रकारों की 3 या 4 महीने हो जाते हैं बच्चों की फीस भी नहीं दी जाती

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